संविधान के किस आर्टिकल के कारण नहीं होती राष्ट्रपति और राज्यपाल की गिरफ्तारी, देखिए पूरी रिपोर्ट

punjabkesari.in Tuesday, Jul 23, 2024 - 03:44 PM (IST)

नेशनल डेस्क : सुप्रीम कोर्ट में एक महिला संविदा कर्मचारी ने आर्टिकल 361 के तहत राज्यपाल के खिलाफ जांच की मांग की है। इस मामले में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर उन्होंने छेड़छाड़ का आरोप लगाया है। उनकी याचिका में यह भी कहा गया है कि आर्टिकल 361(2) के तहत राज्यपालों को जांच में छूट नहीं दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से सलाह ली है और राजभवन की महिला कर्मचारी को अपनी याचिका में केंद्र सरकार को भी पार्टी बनाने का निर्देश दिया है। यह मामला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच में सुनवाई होगी।

क्या है मामला
मई में राजभवन में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी ने राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। उनका दावा है कि 24 अप्रैल और 2 मई को राज्यपाल ने उनके साथ छेड़छाड़ की थी। महिला ने कोलकाता पुलिस में राज्यपाल के खिलाफ मामला दर्ज करवाया था, परंतु आर्टिकल 361 के तहत राज्यपाल के खिलाफ जांच शुरू नहीं होती। इसलिए, महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और तर्क दिया कि आर्टिकल 361 तहत मिली छूट में छेड़छाड़ जैसे आपराधिक कृत्यों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे पीड़ितों को न्याय दिलाने में देरी हो सकती है। हालांकि, राजभवन की आंतरिक जांच में राज्यपाल सीवी आनंद बोस को शुद्धि मिली है। इस जांच को पुडुचेरी के रिटायर्ड जज डी. रामाबथिरन ने की थी, और रिपोर्ट में महिला के आरोपों को निराधार बताया गया है। जांच रिपोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि शिकायतकर्ता के आरोप संदेहमय हैं।

कैसे आया ये आर्टिकल
संविधान सभा ने 8 सितंबर 1949 को आर्टिकल 361 पर चर्चा की थी। हालांकि, इस पर बहुत ज्यादा बहस नहीं हुई और इसे संविधान में शामिल कर लिया गया। इस विषय पर सवाल उठते रहे हैं कि आर्टिकल 361(2) के अंतर्गत आपराधिक कार्रवाई से मिलने वाली छूट की सीमा क्या होनी चाहिए। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने कल्याण सिंह मामले में निर्णय दिया था, जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल को छूट तब तक मिलती है, जब तक वे पद पर रहते हैं। उनके पद से हटने के बाद, उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू हो सकती है। पहले 2015 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भी इस विषय में अपनी राय दी थी, जहां उन्होंने बताया कि आर्टिकल 361(2) राज्यपाल को पद की सुरक्षा की गारंटी देता है, ताकि पद की गरीमा बनी रहे। यह टिप्पणी व्यापमं घोटाले से जुड़े मामले में दी गई थी। उस मामले में मध्य प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल राम नरेश यादव भी आरोपी थे।

क्या है आर्टिकल 361 
संविधान के आर्टिकल 361 के अनुसार, राष्ट्रपति और राज्यपालों को पद पर रहते हुए किसी भी अदालत के सामने जवाबदेही नहीं होती। आर्टिकल 361(2) के तहत, राष्ट्रपति या राज्यपाल के खिलाफ कोई भी अदालती कार्रवाई शुरू नहीं कर सकती। इसके अतिरिक्त, उन्हें पद पर रहते हुए न तो गिरफ्तार किया जा सकता है और न ही हिरासत में लिया जा सकता है, और न ही कोई अदालत किसी भी प्रकार का आदेश जारी कर सकती है। राष्ट्रपति और राज्यपाल को सिविल और क्रिमिनल, दोनों प्रकार के मामलों में छूट मिलती है। पद से हटने के बाद ही उन्हें गिरफ्तार या हिरासत में लिया जा सकता है।


आगे क्या होगा
एक महिला कर्मचारी ने बंगाल के गवर्नर के खिलाफ जांच की मांग की है, वह कहती हैं कि अगर उनके पद छोड़ने तक कोई कार्रवाई नहीं होती है, तो इससे अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है और सबूत प्रभावित हो सकते हैं। इस मामले पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच तय करेगी कि गवर्नर के खिलाफ जांच शुरू की जाए या नहीं।


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News Editor

Rahul Rana

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