दिल्ली में आवारा कुत्तों का आतंक, रोजाना 2000 लोग बन रहे शिकार

punjabkesari.in Monday, May 19, 2025 - 10:23 AM (IST)

नेशनल डेस्क. देश की राजधानी दिल्ली में आवारा कुत्तों की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। चौंकाने वाली बात यह है कि हर दिन लगभग दो हजार लोग इन आवारा कुत्तों का शिकार बन रहे हैं, यानी उन्हें काट रहे हैं। इसके बावजूद दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) इस समस्या को गंभीरता से लेता हुआ नहीं दिख रहा है।

इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि दिल्ली में कुत्तों की आखिरी गिनती (सर्वे) साल 2016 में हुई थी। इतने बड़े शहर में आवारा कुत्तों को नियंत्रित करने के लिए केवल 20 एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) केंद्र ही मौजूद हैं। नतीजतन कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और उन्हें नियंत्रित करने के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।

आवारा कुत्तों का खतरा अब सिर्फ सड़कों तक ही सीमित नहीं रह गया है। ये कुत्ते अब शैक्षणिक संस्थानों में भी छात्रों को निशाना बना रहे हैं। हाल ही में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में आवारा कुत्तों ने कई दृष्टिबाधित छात्रों पर हमला किया, जिससे छात्रों में दहशत का माहौल है।

आँकड़ों की नज़र से समस्या

रोजाना काटने के मामले (दिल्ली): 2,000

देशभर में कुत्तों के काटने के मामले: 20,000 (जिसमें से 10% दिल्ली में)

वर्षवार आँकड़े

2023 में कुत्तों के काटने के केस: 57,173

2024 (अगस्त तक): 44,995

आखिरी सर्वे और कुत्तों की संख्या

अंतिम सर्वे: 2016 (कुत्तों की जनगणना के लिए)

कुल आवारा कुत्ते (दक्षिण निगम के चार जोन में): 1,89,285

नर कुत्ते: 1,14,587

मादा कुत्ते: 74,698

नसबंदी के प्रयास और उनकी स्थिति

एमसीडी के पास आवारा कुत्तों की नसबंदी के लिए कुल 20 एबीसी केंद्र हैं। इन केंद्रों का संचालन 11 गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) और चार पशु चिकित्सक मिलकर कर रहे हैं। इन केंद्रों पर दिल्ली के 250 वार्डों से कुत्तों को लाया जाता है।

नसबंदी के आँकड़े

2020-21: 51,990

2021-22: 91,326

2022-23: 59,076

2023-24: 79,959

अप्रैल 2024 - फरवरी 2025: 1,20,264

इन आँकड़ों से पता चलता है कि नसबंदी के प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन बढ़ती हुई कुत्तों की आबादी के मुकाबले ये प्रयास अभी भी कम हैं।

बढ़ती जरूरत और एमसीडी की योजनाएं

चार नए केनल (कुत्ता शरणालय) बनाए जा रहे हैं।

शाहदरा क्षेत्र में दो नए एबीसी केंद्र खोलने की योजना है (भूमि मिलने पर)।

नसबंदी की प्रक्रिया को तेज करने के लिए 12 जोनल वैन एनजीओ को उपलब्ध कराई गई हैं, ताकि वे हर जोन में जाकर कुत्तों को ला सकें।

जनता की परेशानी

बच्चे अब बाहर खेलने से डरते हैं।

महिलाएं, बुजुर्ग और घरेलू काम करने वाले लोग हमेशा डर के साये में जीते हैं।

नसबंदी अभियान चलाने के बावजूद आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

समस्याओं के मुख्य कारण

नियमित जनगणना का अभाव: कुत्तों की सही संख्या जानने के लिए कोई नियमित सर्वे नहीं होता। आखिरी सर्वे 2016 में हुआ था।

सीमित संसाधन: एमसीडी और एनजीओ के पास संसाधन सीमित हैं। कई कर्मचारियों को तो सालों से वेतन भी नहीं मिला है।

अस्पष्ट नियम: हिंसक कुत्तों को हटाने के लिए एबीसी नियम स्पष्ट नहीं हैं, जिसके कारण कानूनी अड़चनें आती हैं।

प्रशासनिक प्रतिक्रिया

एमसीडी का कहना है कि इस साल उनका लक्ष्य 1.1 लाख कुत्तों की नसबंदी करना है। इसके अलावा शाहदरा क्षेत्र में नए एबीसी केंद्र बनाने का प्रस्ताव भी है। मुख्यमंत्री ने भी इस समस्या पर ध्यान देते हुए "व्यवस्थित पुनर्वास और कार्य योजना" बनाने के निर्देश दिए हैं।

जनता की मांग

सुरक्षित सार्वजनिक स्थान सुनिश्चित किए जाएं।

वार्ड स्तर पर लक्षित नसबंदी अभियान चलाए जाएं।

हिंसक कुत्तों की पहचान करने और उनके प्रबंधन के लिए स्पष्ट नीति बनाई जाए।


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Content Editor

Parminder Kaur

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