क्या आपको भी है 786 नंबर इकट्ठा करने का शौक? जानिए इसे इस्लाम में क्यों माना जाता है खास
punjabkesari.in Monday, Jun 09, 2025 - 04:28 PM (IST)

नेशनल डेस्क। शौक हर इंसान के अलग-अलग होते हैं। कोई कपड़ों का दीवाना होता है तो किसी को जूतों का कलेक्शन पसंद होता है। कुछ लोग मेकअप के शौकीन होते है तो कुछ माचिस की डिब्बी या पुराने सिक्के और नोट इकट्ठा करने का शौक रखते हैं। इन्हीं में से एक खास शौक है स्पेशल सीरीज के नोट जमा करना खासकर 786 सीरीज वाले नोट। यह संख्या सिर्फ नोट संग्रह करने वालों के लिए ही नहीं बल्कि इस्लाम धर्म में भी बेहद पवित्र और शुभ मानी जाती है।
आपने अक्सर बसों और ट्रकों पर सामने की ओर बड़े अक्षरों में 786 लिखा देखा होगा। बॉलीवुड फिल्मों में भी इस अंक का खास महत्व रहा है। अमिताभ बच्चन ने जंजीर और कुली में 786 नंबर बिल्ले वाले कुली का यादगार किरदार निभाया था तो वहीं शाहरुख खान की फिल्म वीर जारा में उनका कैदी नंबर भी 786 था।
कई लोग 786 सीरीज वाले नोट को अपने पास रखना सौभाग्यशाली मानते हैं चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम। उनका मानना है कि ऐसे नोट उनके लिए किस्मत लेकर आते हैं लेकिन आखिर क्यों इस अंक को इस्लाम में इतना पवित्र माना जाता है? आइए जानते हैं इसका रहस्य।
786 क्यों है पवित्र?
जब 786 नंबर की बात आती है तो पहला ख्याल यही आता है कि यह एक इस्लामिक नंबर है और इसे मुसलमान इस्तेमाल करते हैं। कई लोग इसे अपने धर्म का शुभ चिह्न मानकर अपनी दुकान या घर के बाहर भी लगाते हैं लेकिन क्या इसका संबंध अल्लाह से है या यह सिर्फ एक अंक मात्र है?
दरअसल इस्लाम धर्म के लोग 786 अंक को बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम का गणितीय योग मानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अरबी में 'बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम' लिखने पर इसके अक्षरों का संख्यात्मक मान 786 आता है। इसीलिए इस अंक को इतना पवित्र माना जाता है। 'बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम' का अर्थ है "अल्लाह के नाम पर जो अत्यंत पवित्र, दयालु और नेक दिल हैं।"
अंकों का गणित और इस्लाम में अलग-अलग मत
अंकगणित के अनुसार 7+8+6 का योग 21 होता है और 21 का योग (2+1) 3 होता है। कई धर्मों में 3 को भी शुभ अंक माना जाता है। हालांकि इस्लाम में अंक ज्योतिष में इस योग का कहीं कोई सीधा जिक्र नहीं मिलता है। कुछ जानकारों का मानना है कि लोगों ने कुछ अरबी अक्षरों को जोड़कर 786 को इस्लाम में प्रचलन में लाने की बात कही है।
मुस्लिम धर्म में कई लोग अल्लाह के नाम 'बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम' की जगह 786 लिखते हैं और इसे बहुत पवित्र मानते हैं। मुस्लिम शादियों और अन्य शुभ अवसरों पर दिए जाने वाले निमंत्रण कार्ड के सबसे ऊपर भी कई लोग 786 नंबर ही लिखवाते हैं।
विद्वानों में अलग-अलग राय
हालांकि इस्लाम धर्म के जानकार और विद्वानों के बीच 786 के इस्तेमाल को लेकर अलग-अलग मत हैं।कुछ विद्वानों का कहना है कि अल्लाह के नाम की बजाय 786 का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है क्योंकि यह अल्लाह के नाम का सीधा विकल्प नहीं हो सकता। वहीं कुछ का मानना है कि 786 का इस्तेमाल करना गुनाह तो नहीं है लेकिन यह सुन्नत (पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं) के खिलाफ है। उनका तर्क है कि अल्लाह के नाम का उच्चारण या लेखन सीधे तौर पर ही होना चाहिए न कि किसी संख्यात्मक कोड के रूप में।