बांके बिहारी से अवध बिहारी तक की दिव्य यात्रा, बृजभूषण शरण सिंह की मौजूदगी में राष्ट्रकथा
punjabkesari.in Wednesday, Dec 31, 2025 - 07:18 PM (IST)
नेशनल डेस्कः जब देश नए वर्ष की दहलीज़ पर खड़ा होता है, तब अयोध्या में समय मानो थोड़ा ठहर जाता है। यहाँ नए साल का स्वागत आतिशबाज़ी या शोर के साथ नहीं, बल्कि भाव, श्रद्धा और आत्मिक गहराई के साथ किया जाता है। 1 से 8 जनवरी के बीच आयोजित होने वाली दिव्य ऐतिहासिक राष्ट्रकथा इसी परंपरा को आगे बढ़ाने जा रही है—एक ऐसी यात्रा के रूप में, जो “बांके बिहारी से अवध बिहारी” तक केवल स्थान नहीं, बल्कि भावनाओं और चेतना को जोड़ती है।
इस आयोजन की विशेष पहचान है बृजभूषण शरण सिंह की उपस्थिति और संरक्षण। आयोजन से जुड़े लोगों का कहना है कि बृजभूषण शरण सिंह के लिए यह केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि संस्कृति और राष्ट्रभाव से जुड़ा एक भावनात्मक संकल्प है। उनकी मौजूदगी आयोजन को एक स्थिरता, अनुशासन और गरिमा प्रदान करती है—जिसका असर व्यवस्थाओं से लेकर पूरे वातावरण में महसूस किया जा सकता है।
इस राष्ट्रकथा की आत्मा हैं परम पूज्य सद्गुरु श्री ऋतेश्वर जी, जिनकी वाणी श्रोताओं को केवल सुनने का अनुभव नहीं देती, बल्कि भीतर तक छू जाती है। उनकी कथा शैली में शास्त्र और जीवन एक साथ चलते हैं। कथा के दौरान जब राम की मर्यादा, कृष्ण की करुणा और हनुमान का समर्पण सामने आता है, तो श्रोता केवल कथा नहीं सुनता—वह स्वयं को उस यात्रा का हिस्सा महसूस करने लगता है।
यह आयोजन नंदिनी निकेतन में हो रहा है, लेकिन इसका प्रभाव केवल एक परिसर तक सीमित नहीं है। इन दिनों अयोध्या की गलियों, मंदिरों और चौराहों पर भी इस राष्ट्रकथा की चर्चा सुनाई देती है। दुकानदार हों या साधु-संत, स्थानीय निवासी हों या बाहर से आए श्रद्धालु—हर कोई इस आयोजन को लेकर एक अलग जुड़ाव महसूस कर रहा है। “बांके बिहारी से अवध बिहारी” की अवधारणा अपने आप में भावनात्मक है। यह उस यात्रा का प्रतीक है, जहाँ वृंदावन की निष्काम भक्ति अयोध्या की मर्यादा से मिलती है। यह संदेश देती है कि भक्ति और कर्तव्य, प्रेम और अनुशासन—ये विरोधी नहीं, बल्कि एक ही जीवन-दृष्टि के दो पहलू हैं। राष्ट्रकथा इसी संतुलन को सामने लाने का प्रयास है।
आयोजन से पहले की तैयारियाँ भी इसी भावना को दर्शाती हैं। व्यवस्थाओं में केवल सुविधा नहीं, बल्कि संवेदनशीलता दिखाई देती है। स्वयंसेवक श्रद्धालुओं को केवल मार्ग नहीं दिखा रहे, बल्कि मुस्कान और अपनत्व के साथ उनका स्वागत कर रहे हैं। चिकित्सा, स्वच्छता और सुरक्षा की व्यवस्थाएँ इस तरह की गई हैं कि श्रद्धालु निश्चिंत होकर कथा में डूब सकें। देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले लोग इस राष्ट्रकथा को एक व्यक्तिगत अनुभव के रूप में देख रहे हैं। कई लोगों के लिए यह नए वर्ष की पहली प्रार्थना है, तो कुछ के लिए जीवन को नई दिशा देने का अवसर। युवा वर्ग इसे समझने और जुड़ने का माध्यम मान रहा है, वहीं बुज़ुर्ग इसे परंपरा और स्मृतियों से जोड़कर देख रहे हैं।
पवित्र नगरी अयोध्या पहले भी कई ऐतिहासिक क्षणों की साक्षी रही है, लेकिन यह राष्ट्रकथा उसे एक भावनात्मक पहचान भी दे रही है। बृजभूषण शरण सिंह की उपस्थिति और सद्गुरु श्री ऋतेश्वर जी की वाणी के साथ यह आयोजन केवल एक कार्यक्रम नहीं रह जाता—यह एक ऐसा अनुभव बन जाता है, जिसे लोग अपने भीतर लेकर लौटते हैं।
अंततः, यह दिव्य यात्रा किसी मंच पर समाप्त नहीं होती। यह हर उस व्यक्ति के भीतर आगे बढ़ती है, जो यहाँ से कुछ सोच, कुछ शांति और कुछ प्रेरणा लेकर लौटता है। नए वर्ष की शुरुआत यदि ऐसी हो, तो वह केवल कैलेंडर का बदलाव नहीं, बल्कि जीवन की दिशा बदलने वाला क्षण बन जाती है।
