साम्बा के गांवों की बदहाली :आजादी के सात दशक बाद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित

Monday, Nov 19, 2018 - 05:50 PM (IST)

साम्बा (अजय सिंह) : देश को आजाद हुए सात दशक बीत गए और इसमें कई प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बने और देश को तरक्की की राह पर लाने के लिए काम करते थे, लेकिन इन सब तरक्की की राह में विकास का दौर सिर्फ शहरों तक ही समीति रहा। सच्चाई यह है कि आज भी देश में कुछ ऐसे गांव हैं जो आजाद तो हैं पर विकसित नहीं। इन गांवों को अब भी गुलामी का दौर देखना पड़ रहा है। साम्बा जिला में भी ऐसे कई गांव है, जिन्हें अधुनिक भारत के बारे में तो कुछ पता ही नहीं है, क्योंकि उनका अधुनिक समय तो दस किलोमीटर पैदल चलकर बनता है यां फिर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मरीज को पालकी में बैठाकर लम्बा सफर तय करने के बाद बनता है, अगर रास्ते में मरीज ने दम तोड़ दिया तो सिर्फ भगवान को कोसते रहेंगे।


 ऐसी ही कड़वी सच्चाई का उदहारण जिला साम्बा के दूर-दराज का पहाड़ी गांव लैयान बगुन का। गांव में सुविधओं के अभाव के दर्जनों उदहारण है, क्योंकि जहां पर सरकार और प्रशासन के नुमाइंदे तो पहुंच नहीं पाते है, जिससे गांव की मुशिकले सिर्फ लोग ही समझ सकते हैं। कहने तो तो यह गांव तीन जिलों का वार्डर पर बना हुआ है, लेकिन कहीं से भी सुविधा नहीं मिलती।  गांव में जाने के लिए तीन जिलों का दायरा पार करना पड़ता है और फिर लैयान बगुन आता है। न पीने को पानी मिलता है और न ही बिजली के लिए खंभे मिलते है, हर सुविधा सिर्फ राम भरोसे ही चलती है, जिससे यह गांव पूरी तरह से पिछड़ता हुआ दिख रहा है।

92 लाख की इमारत में लगा ताला और खंडकर कमरे में चल रहा हैल्थ सब-सैंटर                           
 गांव में इस समय सबसे बड़ी परेशानी यह आ रही है कि कड़ी मशक्कतों के बाद लोगों की दश्कों पूरानी मांग पूरी हुई थी और जहां पर 92 लाख की लागत से स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए एक शानदार इमारत बनी है, लेकिन किस्मत के अभावी इन लोगों के लिए यह  इमारत 2 साल से मात्र देखने तक को ही दिख रही है। वर्ष 2016 में यह लैयान बगुन सब-सैंटर की इमारत बनकर तैयार हो गई, लेकिन स्वास्थ्य विभाग साम्बा अभी तक इसमें अपने कामकाग को शुरू ही नहीं कर पाया है और पिछले ढाई साल से इमारत में ताला लगा हुआ है। सबसे दुखद सच्चाई यह है कि इस इमारत को छोडक़र स्वास्थ्य विभाग अपना सब-सैंटर किराए की एक खंडखर कमरे में चला रहा है जो कभी भी गिर सकती है। इस खंडहर कमरे की हालत देखकर वहां पर काम कर रहे स्वास्थ कर्मियों की हालत पर भी दुख होता है, क्योंकि न ही बिजली और न पानी की सुविधा है, बारिश हो गई तो समझों सारा पानी ही अंदर आ जाता है। इसके लिए बाथरुम व गभवर्ती महिलाओं को ठहरने के लिए भी नीचे ही बैठना पड़ता है, कभी चार मरीज एक साथ आ जाएं तो समझो कमरे में जगह ही नहीं बच पाती है।


  मरीजों को पालकी में बिठाकर जाना पड़ता 10 किलोमीटर दूर
एक तो गांव में सडक़ नाम की कोई चीज नहीं है, हालांकि सडक़ बनाने के लिए कुछ राशि तो जरूर आई है, लेकिन उसमें सिर्फ रास्ते की कटाई का काम ही संभव हो सकता है और ऐसे में यह सब-सैंटर लोगों के लिए एक संजीवनी का काम कर सकता था, परंतु ढ़ाई साल से जिला प्रशासन और विभाग की लापरवाही से यह इमारत अब खंडहर की बन सकती है। एक कमरे के सब सैंटर में स्वास्थ्य सेवाओं की बहुत कमी है, सिर्फ गर्भवती महिलाओ का टीकाकरण हो सकता है। गांव में अगर कोई भी बिमार हो जाए तो उसे तुंरत पालकी में लैटाकर दस किलोमीटर सफर तय करके अस्पताल में पहुंचाया जाता है, लेकिन ज्यादतर मामलों में मरीज रास्ते में दम तोड़ देते हैं, जिसमें सबसे ज्यादा उदहारण सर्पदश के दौरान हुए। वहीं अगर नई इमारत में हैल्थ सब-सैंटर शुरू हो जाए तो वहां पर डाक्टरों की संख्या में भी इजाफा होगा और हर सुविधा उपकरण वहां पर मिल सकते हैं।


2 विभागों के पैच के बीच फंस गई हैल्थ सब सैंटर की इमारत
वर्ष 2000 से लैयान बगुन के लोगों ने दिन-रात दौड़ धुप करके स्वास्थ्य सुविधओं के लिए अपनी जदोजहद शुरु की थी और वर्ष 2009 में उनके गांव में सब सैंटर बनाने का प्रस्ताव पास हो गया था। इसके बाद वर्ष 2015 में एक बेहतरीन इमारत बनाने का पी.डब्ल्यू.डी. विभाग टैंडर निकल गया। दूर-दराज का क्षेत्र होने के चलते कोई भी ठेकेदार जहां पर काम करने के लिए सहमित नहीं बना पा रहा था और अखिरकार एक ठेकेदार ने जहां पर काम करने की शुरूआत की तो लोगों ने उनसे जल्द से जल्द काम करने की मांग उठाई और नतीजा यह रहा कि ठेकेदार ने काम एक साल के दौरान ही पूरा कर दिया और उसके कंप्लीट होने का लैटर भी दे दिया। 93 लाख के टैंडर में ठेकेदार को अभी तक 50 प्रतिशत पैसे का भुगतान ही मिल पाया है, जबकि उसके आधे पैसे अधर में लटके हुए है। अब हैल्थ विभाग को पी.डब्ल्यू.डी. विभाग को इस इमारत को बनाने के लिए पैसे देने थे, परंतु विभाग ने आधे पैसे नहीं होने का रोना रो दिया, जिसमें चलते पी.डब्ल्यू.डी. विभाग को पैसे नहीं मिले और न ही विभाग ठेकेदार का भुगतान कर पाया। आलम है कि विभाग की इस लड़ाई के बीच फंस ठेकेदार गया, जिसने अपनी मेहनत लगाकर सारे पैसे खर्च कर दिए, लेकिन साल से पैसे के लिए दर दर भटक रहा है। यही कारण है कि हैल्थ विभाग पैसे नहीं होने के चलते इस इमारत को अपने पास नहीं रख रहा है और गरीब लोगों को परेशानी में धकेल रहा है। इसके इलावा स्वास्थ्य विभाग इस गांव के लिए गम्भीर नहीं दिखा, जिसके चलते 2 साल से यह इमारत इस तरह से है।
पानी से लिए जाना पड़ता है ढाई किलोमीटर दूर, पी.एच.ई विभाग की नीतियां सुस्त
इस बात की सबसे अच्छी बात यह है कि जहां पर ङ्क्षहदु-मुस्लिम समुदाय के लोग देश में होने वाली टकराव की बातों को छोडक़र आपस में प्यार से रहते हैं और दुख-सुख में एक दूसरे का साथ देते हैं। वहीं पिछड़ा गांव होने के चलते हर विभाग के लोग इस गांव को दरकिनार करते हैं और न कोई देखने आता है। पी.एच.ई. विभाग की हालत बहुत ही खराब है, न कभी पानी दिया और न ही पाइपे लगाई। मात्र औचपारिकता पूरी करने के लिए ओज, ढगवैल बना दिए , लेकिन सुविधा कोई नहीं दी और न पानी मिला। जहां पर रहने वाले एक समुदाय विशेष के लोगों को ढाई किलोमीटर दूर पहाड़ी उतकर नीचे से एक नाले से पानी लाना पड़ता है और उससे ही अपना गुजारा करना पड़ता है, जबकि उसी नाले का पानी जानवर भी पिते हैं। इसके इलावा दफ्तारों में बैठकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले पी.एच.ई. विभाग ने इस गांव की तरफ कभी देखा भी नहीं होगा, लेकिन कागजों में बेहतर सुविधा के दावें किए होंगे। स्थानी निवासी नुर हुसैन, आरिफ अली, अंजर अली और आंचल सिंह ने विभाग की टूटी हुई पाइपे दिखाते हुए कहा कि यह हालत हो गई है इस विभाग की। उन्होंने कहा कि सुबह उठते ही सबसे पहले पूरा परिवार बच्चो सहित बर्तन लेकर नाले में जाता है और वहां से अपने दिनचर्या के लिए पानी लेकर आता है। उन्होंने कहा कि उनके लिए यह विभाग तो सिर्फ नाममात्र का ही है।


लोगों की जिला प्रशासन और सरकार के प्रति गहरा रोष, चुनाव बायकाट की नीति पर कायम
पंजाब केसरी के बात करते हुए गांव निवासी विरेंद्र कुमार, चमन लाल, रोहित शर्मा, हरदीश शर्मा ने कहा कि उनकी सबसे ज्यादा किसमत तो यही खराब है कि हैल्थ सब-सैंटर की इमारत 2 साल से तैयार होने के बाद भी ताले लटके दौर से गुजर रही है। उन्होंने कहा कि सिर्फ कागजों और टी.वी. पर ही नेताओं और मंत्रियों के भाषण अच्छे दिखते हैं, लेकिन इन गरीब गांवों की तरफ कोई सुनवाई नहीं होती है। लोगों ने कहा कि जहां पर अन्य सुविधाओं का तो नाम ही नहीं है, जबकि जो सुविधाएं मिली थी उसकी सच्चाई भी सबके सामने हैं। वर्ष 2015 में अपनी खेतीबाड़ी छोडक़र 2 कनाल जमीन सब सैंटर बनाने के लिए दी, लेकिन अब जमीन पर खेती भी नहीं कर सकते और न ही इस इमारत में अपना ईजाल करवा सकते। उन्होंने कहा कि प्रशासन और सरकारें अगर इस गांव की तरफ ध्यान देती तो आज इसकी यह हालत नहीं हो पाती है और अब उनके पास एकमात्र उपाय यही बचा है कि आने वाले पंचायती चुनावों को बायकाट किया जाए। लोगों ने राज्यपाल से मांग करते हुए कहा कि उनके गांव में बने इस हैल्थ सब सैंटर के मामले पर 10 दिन के भीतर फैसला किया जाए, नहीं तो लोकतंत्र के दौर में लोग चुनावों का बायकाट करेंगे, क्योंकि वर्ष 2014 में भी यही नीति अपनाई थी।
 

Monika Jamwal

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