दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई गुहार, गाड़ियों की उम्र नहीं, प्रदूषण हो बैन का आधार
punjabkesari.in Saturday, Jul 26, 2025 - 01:54 PM (IST)

नेशनल डेस्क : दिल्ली सरकार ने राजधानी में पुरानी गाड़ियों पर लगे प्रतिबंध को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सरकार ने 10 साल से अधिक पुरानी डीजल और 15 साल से अधिक पुरानी पेट्रोल गाड़ियों पर पूरी तरह से लगे प्रतिबंध को गैर-व्यावहारिक और वैज्ञानिक आधार से दूर बताया है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच, जिसकी अध्यक्षता चीफ जस्टिस भूषण आर. गवई कर रहे हैं, 28 जुलाई को सुनवाई कर सकती है। दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में कोर्ट से 29 अक्टूबर 2018 के उस आदेश को वापस लेने की मांग की है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के फैसले को सही ठहराया था।
दिल्ली सरकार की दलील: ‘उम्र नहीं, एमिशन देखो’
सरकार का कहना है कि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सिर्फ गाड़ियों की उम्र के आधार पर पाबंदी लगाना न्यायसंगत और प्रभावी नहीं है। इसके बजाय, गाड़ियों की वास्तविक उत्सर्जन (एमिशन) क्षमता को वैज्ञानिक ढंग से जांचना अधिक उचित होगा। सरकार ने सुझाव दिया है कि वाहनों की फिटनेस की जांच वैज्ञानिक तरीकों से की जाए, न कि केवल उनकी आयु के आधार पर। दिल्ली सरकार ने इसके लिए केंद्र सरकार और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से एक व्यापक अध्ययन की मांग की है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि उम्र आधारित पाबंदी ज्यादा असरदार है या उत्सर्जन आधारित नियम।
क्या था NGT का आदेश?
NGT ने 26 नवंबर 2014 को अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि 15 साल से अधिक पुरानी कोई भी गाड़ी – चाहे वह डीजल हो या पेट्रोल – सड़कों पर नहीं चल सकेगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को 2018 में बरकरार रखते हुए NCR के सभी परिवहन विभागों को निर्देश दिए थे कि वे इस पर सख्ती से अमल करें। NGT ने यह भी कहा था कि ऐसी पुरानी गाड़ियों को किसी भी सार्वजनिक स्थल पर पार्क नहीं किया जा सकता, और यदि वे पाई जाती हैं तो पुलिस उन्हें जब्त कर सकती है। यह आदेश सभी प्रकार के वाहनों – दोपहिया, तिपहिया, चारपहिया, हल्के व भारी, निजी या व्यावसायिक – पर लागू होता है।
दिल्ली सरकार की अपील: व्यवहारिक और संतुलित नीति बने
दिल्ली सरकार का कहना है कि उम्र के आधार पर पाबंदी लगाने की नीति न तो व्यवहारिक है और न ही पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त। सरकार चाहती है कि ऐसी नीति बनाई जाए जो वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हो और आम नागरिकों की जरूरतों का भी ख्याल रखे।