नजरिया: संसद में देश के अहम मुद्दों पर बहस हो

punjabkesari.in Tuesday, Jul 17, 2018 - 12:43 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): बुधवार से संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है। इसे लेकर सत्तापक्ष और विरोधी पक्षों द्वारा  अंतिम रणनीति तैयार की जा रही है। जो ख़बरें छनकर आ रही हैं उनके मुताबिक विपक्ष सत्र में हंगामा करने के पूरे मूड में है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर किस लिए? संसद का सत्र देश के अहम मसलों, कानूनों और समस्याओं पर मंथन और उनका कोई हल निकालने के लिहाज़ से काफी अहम होता है। ऐसे में सदन में जनता से जुड़े मसले उठाए जाने जरूरी हैं।
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इन मसलों पर चिंतन की जरूरत
आज देश के सामने बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि बागवानी से जुड़े अनेकों मसले हैं जिन पर गहन चिंतन की जरूरत है। जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में पड़ोसी देशों की आव्रजन की कोशिशें और सीमा पार से हो रही हरकतें एक अहम मसला है। ख़ास तौर पर जिस तरह से जम्मू-कश्मीर में रोज़ शाहदतें हो रही हैं यह पूरे देश की चिंता का सबब है। देश के बीस शहर पानी की किल्लत के कारण डे जीरो के कगार पर हैं तो इतने ही शहर बाढ़ से बेहाल हैं। भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई की हाल ही की बारिश ने जो गत्त बनाई है वो भी सबके सामने है। तो क्या इन मसलों पर बहस होगी? 
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क्या हिन्दू मुसलमान ही होगा अहम मुद्दा
क्या विपक्ष इन मसलों पर चिंतन नहीं करने पर संसद में सरकार को घेरेगा? क्या भीड़तंत्र की बढ़ती गुंडई को लेकर कोई सख्त कानून की मांग सदन के भीतर होगी? क्या बच्चियों संग दुराचार को लेकर कोई चर्चा और उसका कोई समाधान खोजने की संजीदा कोशिश होगी? यदि हां तो फिर उस दौरान हंगामे की जरूरत क्यों है? इन पर तो गंभीर चर्चा होनी चाहिए और यदि ये मुद्दे नहीं उठेंगे तो फिर किस बात को लेकर हंगामा होगा? जैसा कि स्पष्ट दिखाई दे रहा है संसद सत्र के दौरान हिन्दू पाकिस्तान, हिन्दुओं की पार्टी, मुसलमानों की पार्टी जैसे मसलों पर ही एक दूसरे को खींचा जायेगा। क्या यही हैं सबसे अहम मुद्दे ? 
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इस बार भी हसे सकती है सत्र की इतिश्री 
कमोबेश हर सत्र से पहले हमारे सियासी दल जानबूझकर ऐसे मसले उठाते हैं जिनका आम जनता की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं होता। बस तू काला और मैं गोरा की राजनीती होती है। इस बहाने संसद ठप की जाती है और मीडिया को माध्यम बनाकर खुद को ऐसे पेश किया जाता है मानो इनके बिना हिंदुस्तान फिर से गुलाम हो जायेगा। दो महीने पहले  फैले निपाह वायरस को लेकर क्या हुआ इसकी फ़िक्र शायद किसी को नहीं है। देश भर में डेंगू से कितने लोग मर चुके हैं इसकी भी चिंता किसी को नहीं है। बस हिन्दू पाकिस्तान और मुस्लिम तुष्टिकरण जैसे छद्द्म मसले उछालकर ही इस बार भी सत्र की इतिश्री की जाने वाली है ( फ़िलहाल तो यही लगता है )। 
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बरसों से लटक रहा महिला आरक्षण का मसला 
दिलचस्प ढंग से जिस पाकिस्तान के नाम पर हमारे नेता बरसों से अपनी सियासी रोटियां सेंक रहे हैं उसी पाकिस्तान में  नेशनल असेम्ब्ली में महिलाओं के लिए 60 सीटें आरक्षित हैं। लेकिन हमारे यहां महिला आरक्षण का मसला कबसे लटका  है किसी को याद है क्या? संसद के स्तर का एक मिनट अढ़ाई लाख रुपये का पड़ता है। यह सारा खर्च आम जनता की जेब से जाता है। ऐसे में क्या यह नेताओं की नैतिक जिम्मेदारी नहीं है की उसी आम जनता से जुड़े मसले सामने रखकर  उनपर मंथन हो ? 
 


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vasudha

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