गर्भपात से जुड़े फैसले में वैवाहिक बलात्कार को लेकर न्यायालय की टिप्पणी स्वागत योग्य : कार्यकर्ता

punjabkesari.in Thursday, Sep 29, 2022 - 11:23 PM (IST)

नेशनल डेस्क : अधिवक्ताओं और कार्यकर्ताओं ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी का स्वागत किया कि बलात्कार के अपराध की व्याख्या में वैवाहिक बलात्कार को भी शामिल किया जाए, ताकि गर्भ का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम का मकसद पूरा हो सके। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह फैसला वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं लाता, जो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-375 के दायरे को व्यापक बनाकर ही संभव है।

शीर्ष अदालत ने महिलाओं के प्रजनन अधिकारों के संबंध में बृहस्पतिवार को दिए गए एक अहम फैसले में कहा कि एमटीपी अधिनियम के तहत विवाहित या अविवाहित, सभी महिलाओं को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक सुरक्षित व कानूनी रूप से गर्भपात कराने का अधिकार है और महिलाओं की वैवाहिक स्थिति के आधार पर कोई भी पक्षपात ‘संवैधानिक रूप से सही नहीं है।' उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि बलात्कार के अपराध की व्याख्या में वैवाहिक बलात्कार को शामिल किया जाए, ताकि एमटीपी अधिनियम का मकसद पूरा हो सके।

शीर्ष अदालत की टिप्पणी पर वरिष्ठ अधिवक्ता शिल्पी जैन ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, “यह एक बेहद प्रगतिशील फैसला है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार पर टिप्पणी इसे अपराध नहीं बनाती है। यह फैसला केवल उन परिस्थितियों में लागू होता है, जहां एक महिला गर्भवती हो सकती है और इनमें से एक परिस्थिति यह है कि एक पुरुष विवाह के तहत एक महिला के साथ संभोग करता है... यह वैवाहिक बलात्कार को कहीं से भी अपराध नहीं बनाता है।” उन्होंने कहा, “वैवाहिक बलात्कार तभी अपराध की श्रेणी में आएगा, जब इसे आईपीसी में शामिल किया जाएगा।

यह फैसला बलात्कार के अपराध की व्याख्या को व्यापक बनाकर उन मामलों को शामिल करने के बारे में कुछ नहीं कहता, जिनमें एक पति अपनी पत्नी की सहमति के बगैर उसके साथ यौन संबंध बनाता है। यह फैसला धारा-375 के दायरे को विस्तार नहीं देता, जो इसका आपराधिक पहलू है।” लैंगिक समानता और सुरक्षित गर्भपात के अधिकार की दिशा में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन प्रतिज्ञा कैंपेन की सदस्य एवं अधिवक्ता अनुभा रस्तोगी ने कहा कि यह फैसला एमटीपी अधिनियम के प्रावधानों की पुन:व्याख्या करता है, जो अन्यथा महिलाओं को उनकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर 20 से 24 सप्ताह की अवधि के बीच प्रगतिशील तरीके से गर्भ के चिकित्सकीय समापन के अधिकार तक पहुंच हासिल करने से रोकता है।

उन्होंने कहा, “यह फैसला इस कानून के तहत किए गए अनुचित वर्गीकरण पर भी सवाल उठाता है। यह व्याख्या देश के कानून के संबंध में है और इससे सुनिश्चित होगा कि गर्भधारण के 20 सप्ताह के बाद गर्भ के चिकित्सकीय समापन की इच्छुक महिलाओं को कानून की संकीर्णता के आधार पर उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाता है।” सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक एवं सामाजिक कार्यकर्ता रंजना कुमारी ने कहा कि इस फैसले ने भारतीय महिलाओं के गर्भपात के अधिकार की पुष्टि की है और पूरे फैसले का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा वैवाहिक बलात्कार का जिक्र किया जाना है।

कुमारी ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, “वे बलात्कार और वैवाहिक बलात्कार के बारे में बात कर रहे हैं, इसलिए यह फैसले का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एक प्रगतिशील रुख है, जिसे सरकार ने अपनाया है और उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं की एक बड़ी बाधा को दूर किया है। अब जबकि शीर्ष अदालत ने वैवाहिक बलात्कार का जिक्र किया है तो संसद को भी कानून बनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।” महिला अधिकार कार्यकर्ता और परी (पीपल अगेंस्ट रेप्स इन इंडिया) की संस्थापक योगिता भयाना ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक फैसला और सर्वोच्च न्यायालय का बेहद प्रगतिशील कदम है।

उन्होंने कहा, “यह एक शुरुआत है और उन्हें वैवाहिक बलात्कार पर अधिक से अधिक प्रगतिशील कानूनों के साथ आना चाहिए, क्योंकि यह एक हकीकत है।” ऑक्सफैम इंडिया की लैंगिक न्याय मामलों की कार्यक्रम समन्वयक अनुश्री जैरथ ने कहा कि ऐसे समय में जब देश प्रतिगामी गर्भपात कानूनों की ओर बढ़ रहे हैं और महिलाओं के शारीरिक अधिकारों को ताक पर रख रहे हैं, यह फैसला बहुत स्वागत योग्य है।


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News Editor

Parveen Kumar

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