नागरिकता रद्द होने से समस्या हल हो जाएगी ?

punjabkesari.in Friday, May 27, 2016 - 01:12 PM (IST)

लंदन पर आतंकी हमले की आशंका से ब्रिटेन ने एक नाइजीरियाई की ब्रिटिश नागरिकता को समाप्त कर दिया गया है। इस व्यक्ति को तीन साल पहले ही यानि 2013 में ब्रिटेन की नागरिकता मिली थी। कोर्ट में बताया गया कि वह प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन अल मुहाजिरन का सदस्य था। यह नागरिक जिन दोस्तों के संपर्क में था और उसकी गतिविधियों के आधार पर उसकी नागरिकता को रद्द करने का फैसला करना पड़ा। यही समस्या अन्य देशों की भी है। इसमें जर्मनी, आस्ट्रेलिया और कुछ एशियाई देश भी शामिल हैं। इस कार्रवाई से ब्रिटेन तो बच गया, लेकिन क्या यह समस्या हल जाएगी ?

यह सवाल चर्चा का केंद्र बना हुआ है कि सभी पश्चिमी और अन्य देशों को क्या इसका अनुसरण करना चाहिए। आलोचना की जा रही है कि बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पहले इन देशों में नागरिकता प्राप्त की फिर ये आईएसआईएस में शामिल होने के लिए इराक और सीरिया की ओर रुख करने लगे। इनकी लड़ाई भी उन्हीं पश्चिमी देश के खिलाफ है जिसे ये छोड़ कर गए थे। अब ये उनके भी नागरिक नहीं रहे हैं। सुझाव दिया गया कि सभी पश्चिमी देशों को इनकी नागरिकता को समाप्त ​कर देना चाहिए। 

आॅस्ट्रेलिया की बात करें तो वहां से 100 से भी ज्यादा लोग आईएसआईएस में शामिल होने के लिए चले गए। सबसे पहले सरकार ने उनके पासपोर्ट को रद्द किए। इस बारे में पिछले वर्ष उसने नियम भी पारित कर दिया। आॅस्ट्रेलिया इमीग्रेशन मंत्री पीटर दट्टन के अनुसार इस समय 110 लोग मिडिल ईस्ट में आतंकी संगठन में शामिल हो चुके हैं। इसलिए उनकी नागरिकता रद्द कर दी गई है। इस मामले को सरकार बहुत गंभीरता से हल कर रही है। उनमें से जो आॅस्ट्रेलिया के नागरिकों के लिए अधिक खतरनाक थे उन पर तुरंत कार्रवाई की गई। सरकार ने बहुत जल्द जिहादियों के विरुद्ध पासपोर्ट और नागरिकता रद्द करने की कार्रवाई भी की। उसने पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि जिनके पास दोहरी नागरिकता हे यदि वे आतंकी गतिविधियों में संलिप्त पाए गए अथवा इन संगठनों के देशों की ओर जाते दिखे तो इनकी नागरिकता रद्द कर दी जाएगी।

यदि इस सिलसिले में जापान की बात करें तो वहां की राष्ट्रीयता के बारे में गलत सूचनाएं दी जा रही थीं। जो लोग मूल रूप से जापान के नहीं थे तो उन्हें जापानी, कोरियाई और चीनी भाषा के अलावा अन्य भाषाओं में ऐसी सूचनाएं दी जा रही थीं। एक पोस्ट इंटरनेट के माध्यम से वायरल की गई ​जिसमें इस्लाम के समर्थन और इसके विरोध में प्रचार किया गया था। इस बात पर बहस की जा रही थी कि क्या जापान की सरकार, उसका संविधान और वहां के कानून धर्म के आधार इमीग्रेशन को प्रतिबंधित कर दिया है। यह पूरी तरह झूठ था। इस प्रचार सामग्री का शीर्षक था कि सिर्फ जापान ही एक ऐसा देश है मुसलमानों को नागरिकता नहीं देता है। 

जापान के नागरिकता संबंधी आंकड़े देखे जाएं तो ऐसे सैकडों उदाहरण मिल सकते हैं कि इंडोनेशिया, ईरान और पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देशों के लोग भी वहां रहते हैं। जापान में चीन, कोरिया और बड़ी संख्या में इस्लाम को मानने वाले भी रहते हैं। वहां से आतंकी सगठनों से जुड़ने वालों की जानकारी नहीं मिली है।

यूरोप में फ्रांस के बाद जर्मनी ऐसा दूसरा देश है जहां मुस्लिम आबादी बहुत अधिक है। करीब 3.5 मिलियन मुस्लिम जर्मनी में रह रहे हैं। इनमें से 80 प्रतिशत के पास वहां की नागरिकता नहीं हे। वहां करीब 608,000 जर्मनी के नागरिक हैं और लगभग 100,000 लोगों ने मुस्लिम धर्म को स्वीकार कर लिया है। दूसरा, ताजा आंकड़ों के अनुसार ऐसे लोगों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। जर्मनी में बोसनिया, ईरान, मोरक्को, अफगानिस्तान, लेबनान, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, सीरिया, ट्यूनिशिया, अल्जीरिया, जोर्डन, फिलीस्तीन के शरणार्थी भी रहते हैं। यहां कुर्द लोग भी कम नहीं हैं। पिछले दिनों के वहां बड़ी संख्या में युवाओं में आईएसआईएस में शामिल होने का जुनून देखा गया था।

 अपनी सुरक्षा के लिए संबंधित देश आतंकी संगठनों से जुड़ने वालों की नागरिकता रद्द कर देते हैं तो क्या इस कार्रवाई से समस्या का हल हो जाएगा ? यदि वहां से इनका बहिष्कार कर दिया जाएगा तो स्वदेश लौटने पर ऐसे लोगों का उनकी सरकार क्या करेगी ? इनमें से कितने लोग वापस आएंगे, यदि वे जीवित बचेंगे तभी यह संभव हे। आतंकी संगठन से उनका मोहभंग हो जाए तो भागने में सफल होने पर ही वे वापस आ सकते हैं। इन बिंदुओं पर भी चिंतन की जरुरत है। 

 

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