अब संपत्ति की नीलामी में भाग नहीं ले सकेंगे जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले!

punjabkesari.in Thursday, Nov 23, 2017 - 05:52 PM (IST)

नई दिल्ली: दिवाला संहिता को और धारदार बनाने के लिए लाए गए अध्यादेश पर आज राष्ट्रपति ने अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी। इसके तहत जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले तथा जिनके खातों को फंसे कर्ज (एनपीए) की श्रेणी में डाला गया है, उन्हें ऐसी संपत्तियों की नीलामी में बोली लगाने से रोकने का प्रावधान किया गया है। एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘राष्ट्रपति ने दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता, 2016 में संशोधन के लिए अध्यादेश को अपनी मंजूरी दे दी।’’   

अध्यादेश का मकसद गलत इरादा रखने वाले लोगों को संहिता के प्रावधानों का उल्लंघन करने से रोकने के लिये एहतियाती उपाय करना है।  विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘संशोधन का उद्देश्य ऐसे लोगों को अलग-थलग करना है जिन्होंने जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाए और गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) खातों से जुड़े हैं अथवा आदतन नियमों का अनुपालन नहीं करते हैं। ऐसे लोग कंपनी के ऋण शोधन के सफल समाधान में जोखिम बन सकते हैं।’’  इसके तहत वे इकाइयां भी बोली लगाने के लिए अपात्र होंगी जिनके खातों को एक साल या उससे अधिक समय से गैर-निष्पादित परिसपंत्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया और वे समाधान योजना लाए जाने से पहले ब्याज समेत बकाया राशि का निपटान नहीं कर पायी।  

अध्यादेश के अनुसार संहिता के अंतर्गत ऋण शोधन या परिसमापन प्रक्रिया से गुजर रही कंपनियां, उनके प्रवर्तक तथा संबद्ध कंपनियां दबाव वाली संपत्तियों के लिए बोली नहीं लगा सकेंगी। संशोधित संहिता यह भी कहती है कि ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) को समाधान योजना की मंजूरी से पहले उसकी व्यवाहार्यता सुनिश्चित करनी चाहिए। विज्ञप्ति के अनुसार सीओसी को वैसी समाधान योजना को खारिज करना चाहिए जिसे अध्यादेश से पहले जमा किया गया और उसे अभी मंजूरी नहीं मिली है। 

 संहिता पिछले साल दिसंबर में परिचालन में आ गई। इस कानून के तहत कर्ज में फंसी संपत्तियों के लिए बाजार मूल्य आधारित तथा समयबद्ध ऋण शोधन के समाधान की प्रक्रिया उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है। तीन सौ से अधिक मामलों को इस कानून के तहत सुनवाई के लिये राष्ट्रीय कंपनी विधि प्राधिकरण (एनसीएलटी) से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है।  


 


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