जलवायु परिवर्तन से भारत में जनसामान्य का जीवन स्तर घटेगा: विश्व बैंक

punjabkesari.in Thursday, Jun 28, 2018 - 07:57 PM (IST)

नई दिल्ली: धरती के बढ़ते तापमान और बारिश के समयचक्र में बदलाव के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव दक्षिण एशियाई देशों, खासकर भारत में जनसामान्य के जीवन में गिरावट के तौर पर देखने को मिलेगा। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर विश्व बैक की गुरुवार को जारी की गई ताजा रिपोर्ट में यह आशंका जाहिर की गई है।

2050 तक तापमान में एक से दो डिग्री का होगा इजाफा
विश्व बैंक के दक्षिण एशिया मामलों के आर्थिक विशेषज्ञ मुथुकुमार मणि द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में साल 2050 तक तापमान में सालाना एक से दो डिग्री सेल्सियस का इजाफा होगा। इससे कृषि, श्रम क्षेत्र और छोटे उद्योगों पर असर पडऩे के कारण किसानों, श्रमिकों और छोटे कारोबारियों सहित भारत की लगभग आधी आबादी के जीवन स्तर में गिरावट आएगी।
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जीवन स्तर में बदलाव की भयावह तस्वीर दिखेगी
मणि ने रिपोर्ट के हवाले से बताया कि तापमान में बढ़ोतरी की वजह से जलवायु परिवर्तन के कारण जीवन स्तर में बदलाव की भयावह तस्वीर भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका के तमाम इलाकों में देखने को मिलेगी। रिपोर्ट में उन्होंने इस असर से इन चारों देशों के सर्वाधिक प्रभावित दस-दस जिलों को चिन्हित कर इन्हें जलवायु परिवर्तन से प्रभावित दक्षिण एशिया के ‘हॉटस्पॉट’ इलाके बताया है।

इनमें भारत के सूखा प्रभावित विदर्भ, मराठवाड़ा और छत्तीसगढ़ के दस जिलों के अलावा बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहे कॉक्स बाजार और बांदरबन सहित दस जिले शामिल हैं। जबकि इस आसन्न संकट से प्रभावित होने वाले श्रीलंका और पाकिस्तान के दस जिलों में जाफना और ङ्क्षत्रकोमाली के अलावा फैसलाबाद एवं लाहौर शामिल हैं।
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रिपोर्ट में समाधान के तौर पर  सुझाए तीन उपाय
मणि ने रिपोर्ट में समस्या के तात्कालिक समाधान के तौर पर भारत के लिए तीन उपाय सुझाए हैं। इनमें जलसंकट का स्थाई उपाय खोजना, गैरकृषि रोजगारों को बढ़ावा देना तथा शिक्षा के प्रसार की मदद से लोगों को जलवायु परिवर्तन के संकट के प्रति आगाह करते हुये जागरूक करना शामिल है। उन्होंने कहा कि इस संभावित समस्या का खेती के पारंपरिक तरीकों पर सीधा असर पडऩा तय है। इसलिए भारत में उन इलाकों में रोजगार के वैकल्पिक तरीकों का प्रसार करना होगा जिनमें खेतीयोग्य जमीन की अनुपलब्धता है या जिनमें अभी भी अनुपजाऊ जमीन पर पारंपरिक तरीके से खेती की जा रही है जो कि साल दर साल घाटे का सौदा साबित हो रही है।

इसके अलावा मणि ने रिपोर्ट में ‘हॉटस्पॉट’ जिलों में सड़क, बिजली, पानी और शिक्षा सहित अन्य आधारभूत ढांचागत मौलिक सुविधाएं विकसित करने का सुझाव दिया है क्योंकि जलवायु परिवर्तन से जीवन स्तर में बदलाव के संकट के दायरे में मुख्य रूप से किसान ही होंगे।  


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shukdev

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