चीन का भारत को चौतरफा घेरने का प्लान: ड्रैगन की साजिश में बांग्लादेश हुआ बर्बाद, पाकिस्तान दे रहा साथ

punjabkesari.in Tuesday, Aug 06, 2024 - 11:50 AM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः  बांग्लादेश में  तख्तापलट के बाद प्रदर्शनकारियों ने पीएम आवास में घुसकर खूब तोड़फोड़ की । इस बीच पीएम शेख हसीना इस्तीफा देने के बाद भारत आईं और फिर वहां से लंदन रवाना हो गईं। वह अपनी बहन के साथ देश छोड़कर  आई हैं।  बांग्लादेश के पूर्व भारतीय उच्चायुक्त और विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला (Harsh Vardhan Shringla) ने कहा कि शेख हसीना (Sheikh Hasina) के खिलाफ आंदोलन के पीछे विदेशी हाथ होने की आशंका है।  उनके इस बयान के बाद  सवाल उठ रहा है कि 1975 के बाद 2024 हुए तख्तापलट में कहीं चीन और पाकिस्तान का हाथ तो नहीं है? 

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भारत के पड़ोसी मुल्कों में बांग्लादेश ही अकेला राष्ट्र है जहां भारत  की मदद से अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ रही है। जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश एक राजनीतिक पार्टी है, जिसे वहां पर कट्टरपंथी संगठन और  भारत विरोधी माना जाता है ।   इसके पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से मदद लेने का दावा किया जाता रहा है। बांग्लादेश मामलों के विशेषज्ञ का कहना है कि चीन और पाकिस्तान तो लंबे समय से बांग्लादेश में अपनी स्थिति मजबूत करने की फिराक में लगे हुए हैं।   विदेश मामलों के विशेषज्ञ कमर आगा ने कहा कि जमात-ए-इस्लामी और वहां के कई अन्य आतंकी संगठन हैं, वो इस तरह की हरकतें करने में माहिर हैं। उन्हें पाकिस्तान से काफी ट्रेंड किया गया है। उन्हें वहां से ट्रेनिंग दी गई है। सभी को पता है कि पाकिस्तान और चीन की ओर से यह साजिश रची जा गई है। 

 

उन्होंने आगे कहा कि ये दोनों देश लंबे समय से इस कोशिश में लगे थे कि बांग्लादेश में इनका वर्चस्व बन जाए। पाकिस्तान और चीन समर्थित सरकार वहां पर बन जाए। चीन जहां भी जाता है, साथ में पाकिस्तान को भी ले आता है। चीन का असली मकसद भारत को चौतरफा घेरना है। इसलिए ड्रैगन भारत के सभी पड़ोसी देशों को मोहरा बना रहा है । खास बात यह कि चीन पाकिस्तान का इस्तेमाल करके इस साजिश को अंजाम दे रहा है। पाक से जुड़े जमात जैसे ज्यादातर संगठन अल्पसंख्यकों के खिलाफ हैं। ऐसे में बांग्लादेश से  बड़ी संख्या में पलायन  हो सकता है लोग भारत का रुख कर सकते हैं। अगर सेना वहां पर तुरंत एक्शन नहीं लेती है तो स्थिति खराब हो सकती है।

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खुफिया सूचनाओं से खुला भारत के खिलाफ साजिश का राज
खुफिया सूचनाओं से पता चला है कि ICS सदस्यों ने कई महीनों पहले राष्ट्रव्यापी हिंसा भड़काने की साजिश रची थी। "ISI समर्थित जमात-ए-इस्लामी को इस साल की शुरुआत में हसीना सरकार को अस्थिर करने के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता मिली थी। एक अधिकारी ने बताया kf इस फंड का एक बड़ा हिस्सा चीन की पाकिस्तानी इकाइयों से आया था"। हालांकि हसीना ने चीन को खुश रखने की कोशिश की, लेकिन वह भारत के हितों के प्रति भी संवेदनशील थीं, जो चीन को पसंद नहीं आया। दिलचस्प बात यह है कि कई प्रमुख इस्लामी छात्र संगठन के नेता लोकतंत्र और अधिकारों की भाषा का उपयोग करके पश्चिमी संगठनों को आकर्षित करने में सफल रहे।

 

ICS लंबे समय से भारतीय खुफिया एजेंसियों की नजर में है, क्योंकि यह भारत विरोधी गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल है, जिसमें भारत के बांग्लादेश से सटे क्षेत्रों में जिहादी एजेंडा का प्रचार भी शामिल है। ICS आईएसआई समर्थित हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (हुजी) के साथ मिलकर काम करता है, जो एक पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह है जिसका एक सहयोगी बांग्लादेश में भी है। ICS सदस्यों के अफगानिस्तान और पाकिस्तान में प्रशिक्षण लेने के दृश्य प्रमाण भी हैं। "जमात या ICS का अंतिम उद्देश्य बांग्लादेश में एक तालिबान-प्रकार की सरकार स्थापित करना है, और ISI उन्हें इस लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थन देने का आश्वासन दे रहा है।


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ये देश हो चुके चीन की साजिश के शिकार
इससे पहले  म्यांमार, श्रीलंका और अफगानिस्तान भी  चीन की साजिश का शिकार हो चुके हैं। भारत का पड़ोसी देश म्यांमार भी तख्तापलट का दृष्य देख चुका है।साल 2015 में म्यांमार में चुनाव हुए थे, जिसमें आंग सान सू की की पार्टी ने  एकतरफा जीत दर्ज की थी। हालांकि, वो राष्ट्रपति नहीं बन सकीं। इसके बाद 2020 के चुनाव में उन्होंने फिर सफलता हासिल की। हालांकि म्यांमार की सेना ने उनकी जीत पर सवाल खड़े कर दिए। फरवरी 2021 में म्यांमार सेना ने आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और सत्ता अपने साथ में ले ली थी।  इस सैन्य तख्तापलट के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन हुए  जिसमें कई लोगों की जान भी गई थी।

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श्रीलंका में भी चीन के ऋण की शतरंज बिछी

श्रीलंका में भी चीन के ऋण की शतरंज बिछी और यह देश भी बर्बादी के कगार पर पहुंच गया। श्रीलंका ने   चीन से बड़ा लोन लिया और फिर इनसे जो परियोजनाएं शुरू की वह सफेद हाथी साबित हुई।दक्षिणी हंबनटोटा जिले में बंदरगाह पर परिचालन शुरू होने के बाद ही पैसों की बर्बादी होने लगी।6 सालों में $300 मिलियन का नुकसान हुआ।यहां एक बड़ा कॉन्फ्रेंस सेंटर खुला जो किसी काम नहीं आया, $200 मिलियन की लागत से तैयार हवाई अड्डा भी किसी तरह से लाभकारी नहीं हो सका।राजपक्षे परिवार दो दशकों से श्रीलंका की राजनीति में प्रभाव बनाए हुए था। श्रीलंका के इतिहास में सबसे बड़ी कर कटौती की घोषणा की, जिसके कारण सरकार के बजट घाटे जबरदस्त वृद्धि हुई।इसके बाद अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने जल्द ही श्रीलंका की रेटिंग को डाउनग्रेड कर दिया। 


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Content Writer

Tanuja

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