Big Update On Cancer: कैंसर की दुश्मन बनी ये दवा, वैज्ञानिकों की नई खोज से जगी बड़ी उम्मीद
punjabkesari.in Friday, Jun 27, 2025 - 12:05 PM (IST)

नेशनल डेस्क: कैंसर एक ऐसा नाम है जो सुनते ही डर पैदा करता है। दुनिया भर में लाखों लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं और हर दिन इसके बेहतर इलाज की तलाश चल रही है। अब इसी तलाश को एक नई दिशा दी है अमेरिका के वैज्ञानिकों ने, जिन्होंने एक जहरीली फंगस से कैंसर की दवा तैयार की है। यह वही फंगस है जिसे पहले खेतों की फसलें खराब करने वाला और इंसान की सेहत के लिए खतरनाक माना जाता था। लेकिन अब यही फंगस कैंसर से लड़ने वाली एक कारगर औषधि बनकर उभरी है।
क्या है यह जहरीली फंगस?
इस फंगस का नाम है एस्परगिलस फ्लेवस (Aspergillus Flavus)। यह फसलों में पाया जाता है और 'अफ्लाटॉक्सिन' नामक ज़हर बनाता है जो मनुष्य के लीवर और शरीर के अन्य अंगों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। यह फंगस पहले खेती और स्वास्थ्य दोनों के लिए खतरे के रूप में देखा जाता था। लेकिन वैज्ञानिकों ने इसी फंगस से एक ऐसा यौगिक निकाला है, जो कैंसर की कोशिकाओं को मार सकता है। इस खोज ने न केवल मेडिकल साइंस में एक नई उम्मीद जगा दी है बल्कि यह भी दिखाया है कि प्रकृति में मौजूद जहरीले तत्व भी जीवनदायिनी बन सकते हैं।
कैसे काम करती है ये दवा?
वैज्ञानिकों की टीम ने इस फंगस से एक प्राकृतिक रासायनिक यौगिक को अलग किया है। यह यौगिक खासतौर पर कैंसर कोशिकाओं के DNA में बदलाव करता है और उन्हें नष्ट कर देता है। सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह दवा सिर्फ कैंसर की कोशिकाओं पर असर करती है और शरीर की सामान्य कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती। इसका मतलब यह है कि इस दवा से इलाज कराने पर साइड इफेक्ट्स की संभावना बहुत कम होगी।
दर्द रहित और प्रभावी इलाज की ओर एक कदम
आज कैंसर का इलाज कीमोथेरेपी, रेडिएशन और सर्जरी जैसे तरीकों से किया जाता है। हालांकि ये सभी तरीके असरदार होते हैं लेकिन इनसे मरीजों को कई तरह की शारीरिक और मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। अगर यह नई दवा क्लीनिकल ट्रायल में भी सफल साबित होती है तो यह इलाज न केवल असरदार बल्कि कम दर्द वाला भी होगा। इससे मरीजों की जीवनशैली और रिकवरी दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
शुरुआती नतीजे दिला रहे हैं भरोसा
यह दवा फिलहाल प्री-क्लिनिकल ट्रायल में है यानी अभी तक इसका परीक्षण सिर्फ लैब में और जानवरों पर किया गया है। लेकिन शुरुआती नतीजे इतने सकारात्मक हैं कि वैज्ञानिकों को पूरा विश्वास है कि यह इंसानों पर भी काम करेगी। अगले दो से तीन सालों में इस दवा के क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो सकते हैं। अगर सब कुछ सही रहा तो आने वाले वर्षों में यह दवा बाजार में उपलब्ध हो सकती है।