नवजात बच्चों को मां का दूध उपलब्ध करा रही BSIM संस्था, अब तक 3.5 लाख से अधिक लोगों की कर चुकी मदद
punjabkesari.in Monday, Jan 20, 2025 - 10:46 AM (IST)
नेशनल डेस्क. यह घटना 2021 की है, जब कोविड-19 की दूसरी लहर भारत में लोगों को अपनी चपेट में ले रही थी। एक दिन हमारे पास फोन आया। सामने एक घबराई हुई महिला शानू प्रसाद थीं। वह अपने नवजात भतीजे के लिए मिल्क डोनर खोज रही थीं। शिशु का जन्म सातवें महीने में हुआ था और उसकी मां डिलीवरी के दौरान नहीं बच पाई थीं। ऐसे में उस बच्चे को बचाने के लिए मां का दूध बेहद जरूरी था, क्योंकि वह डिब्बे का दूध नहीं पचा पा रहा था। किसी महिला ने शानू को हमारी संस्था से संपर्क करने की सलाह दी थी।
हमारी नेटवर्क की मदद से उस बच्चे को 6 महीने तक मां का दूध मिल सका। यही हमारी ताकत है। हमारी संस्था BSIM (ब्रेस्ट फीडिंग सपोर्ट फॉर इंडियन मदर्स) अब एक बड़े अभियान का रूप ले चुकी है। अब तक हम 3.5 लाख से अधिक लोगों की मदद कर चुके हैं। हम केवल महिलाओं को स्तनपान के लिए जागरूक ही नहीं करते, बल्कि एक्सपर्ट्स की मदद से पहली बार मां बनने वाली महिलाओं को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का भी समर्थन देते हैं।
BSIM की शुरुआत 2013 में हुई थी, जब मैं आयरलैंड में रह रही थी और पहली बार मां बनी थी। अजनबी देश में मुझे कई समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिनमें से एक प्रमुख समस्या स्तनपान थी। इन परेशानियों के बीच मुझे खुद को अकेला महसूस हुआ और यहीं से BSIM का विचार उत्पन्न हुआ। शुरुआत में यह अभियान सिर्फ पुणे तक सीमित था, लेकिन अब यह दुनियाभर में फैल चुका है। आज यह दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाइन नेटवर्क बन चुका है, जहां हजारों माएं एक दूसरे से जुड़ी हैं।
हमारे फेसबुक ग्रुप पर लगभग 1.5 लाख महिलाएं जुड़ी हैं, जो अपनी समस्याओं को साझा करती हैं और हम उन्हें समाधान प्रदान करते हैं। इसके अलावा फेसबुक पेज पर 50 हजार और इंस्टाग्राम पर 10 हजार से अधिक महिलाएं इस अभियान का हिस्सा हैं। 2018 में मुझे फेसबुक द्वारा दुनिया की शीर्ष 5 कम्युनिटी लीडर्स में चुना गया था। लोगों की मदद करने के लिए फेसबुक ने हमें 8.65 करोड़ रुपए की मदद भी दी है।
हमने अपने नेटवर्क के माध्यम से कई ऐसे बच्चों के लिए मां का दूध उपलब्ध कराया है, जो जन्म के समय गंभीर थे। इस काम को लेकर कई बार हमारी आलोचना भी हुई और ट्रोलिंग का सामना भी करना पड़ा, लेकिन हमारा मिशन कभी नहीं रुका। हम इसे आगे बढ़ाते रहेंगे और इस अभियान को कभी थमने नहीं देंगे।