ये हैं ''चमकी बुखार'' के लक्षण, ऐसे कर सकते हैं अपने बच्‍चे का बचाव

punjabkesari.in Saturday, Jun 22, 2019 - 09:19 AM (IST)

नई दिल्ली: बिहार में ‘चमकी बुखार’ से अब तक 165 बच्चों की मौत हो चुकी है। चमकी बुखार को दिमागी और जापानी बुखार के नाम से भी जाना जाता है। चमकी बुखार को डाक्टरी भाषा में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (ए.ई.एस.) कहा जाता है। अब तक उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और उसके आसपास जिलों से दिमागी बुखार से बच्चों की मौत होने के मामले सामने आते थे लेकिन पहली बार बिहार के मुजफ्फरपुर एवं अन्य जिलों में चमकी बुखार ने अपना विकराल रूप दिखाया है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया के अनुसार कुपोषित बच्चों में ए.ई.एस. जानलेवा हो सकता है। जागरूकता ही इसका असरदार इलाज हो सकता है।
 

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ऐसे फैलता है
इंसेफेलाइटिस बैक्टीरिया, फुंगी, परजीवी, रसायन, टॉक्सिन से भी फैलता है।

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देश में स्थिति
भारत मे एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की मुख्य वजह जापानी वायरस को माना जाता है। इसके अलावा निपाह और जीका वायरस भी इंसेफेलाइटिस की वजह बन सकते हैं।

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लक्षण
दिमाग में ज्वर होने पर यह बीमारी बच्चों को अपनी चपेट में ले लेती है। मस्तिष्क की कोशिकाओं एवं तंत्रिकाओं में सूजन आ जाने पर दिमागी बुखार आता है। मस्तिष्क का ज्वर संक्रमण नहीं होता है लेकिन ज्वर पैदा करने वाला वायरस संक्रमण हो सकता है। एक्यूट इंसेफेलाइटिस की मुख्य वजह वायरस माना जाता है। इनमें से कुछ वायरस के नाम हरप्स वायरस, इंट्रोवायरस, वेस्ट नाइल, जापानी इंसेफेलाइटिस, ईस्टर्न एक्विन वायरस, टिक-बोर्न वायरस हैं।

बच्चों, किशोरों में ज्यादा 
यह बीमारी आमतौर पर गर्मी एवं उमस के दौरान 0 से 15 साल के बच्चों को अपनी चपेट में लेती है। यह बीमारी ज्यादातर उन बच्चों को अपनी चपेट में लेती है जो कुपोषित होते हैं। कई मामलों में इस चमकी बुखार का कारण लीची खाना भी बताया गया है। आयुर्विज्ञान क्षेत्र में इस बीमारी के कारणों की कोई ठोस वजह नहीं है। मैडीकल जनरल में यह रैफ्रैंस जरूर मिलता है कि चमकी या दिमागी बुखार होने पर बच्चों में शूगर और सोडियम की कमी हो जाती है। इलाज में देरी मृत्यु की वजह हो सकती है।

इलाज

  •  चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों को बिना देर किए अस्पताल पहुंचाना चाहिए। कोशिश होनी चाहिए कि बच्चे का इलाज आई.सी.यू. में हो।
  • मस्तिष्क में सूजन को फैलने से रोकने के लिए बच्चे की बराबर निगरानी होती रहनी चाहिए। डाक्टर को बच्चे का ब्लड प्रैशर, हार्ट रेट, श्वास की जांच करते रहना चाहिए।
  •  कुछ इंसेफेलाइटिस का इलाज एंटीवायरल ड्रग्स से किया जा सकता है।
  •  बच्चे के शरीर में पानी की कमी न होने दें, उन्हें ओ.आर.एस. का घोल पिलाते रहें।
  • तेज बुखार होने पर पूरे शरीर को ताजे पानी से पोंछें।
  • बेहोशी आने पर बच्चों को हवादार जगह पर ले जाएं।
     

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Anil dev

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