S-400 से आगे अब S-500 की तैयारी में भारत, रूस के साथ हो सकता है बड़ा समझौता
punjabkesari.in Monday, May 12, 2025 - 01:38 PM (IST)

नेशनल डेस्क: जब देश की सीमाएं खतरे में हों और आसमान से मिसाइलें या ड्रोन हमला करें, तब सिर्फ सैनिकों का हौसला नहीं बल्कि तकनीक भी दुश्मन को जवाब देती है। हाल ही में भारत पर हुए ड्रोन और मिसाइल हमलों की कोशिशों को भारतीय वायु रक्षा प्रणाली ने नाकाम कर दिया। इसमें सबसे अहम भूमिका निभाई रूस से हासिल की गई अत्याधुनिक मिसाइल प्रणाली S-400 ट्रायम्फ ने। भारत की हवाई सुरक्षा अब और मजबूत होने की दिशा में बढ़ रही है। रूस से मिले अत्याधुनिक S-400 ट्रायम्फ सिस्टम की तैनाती के बाद अब भारत की नजर उससे भी एक कदम आगे की तकनीक पर है S-500 मिसाइल डिफेंस सिस्टम। रूस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया मास्को यात्रा के दौरान इस नई पीढ़ी की वायु रक्षा प्रणाली के संयुक्त उत्पादन का प्रस्ताव दोबारा रखा है। अगर यह समझौता होता है तो भारत न केवल अपनी सीमाओं को और सुरक्षित कर सकेगा, बल्कि अत्याधुनिक रक्षा तकनीक के निर्माण में भी आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाएगा।
क्या हुआ था हाल ही में?
7 मई 2025 की सुबह भारत ने पाकिस्तान और पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) के 9 ठिकानों पर सर्जिकल हमले किए। इसके जवाब में पाकिस्तान की ओर से ड्रोन और मिसाइल के ज़रिए भारत के सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की कोशिश हुई। लेकिन ये हमले S-400 ट्रायम्फ और एकीकृत काउंटर यूएएस सिस्टम की वजह से सफल नहीं हो पाए।
S-400 ट्रायम्फ: दुश्मन के लिए 'सुदर्शन चक्र'
S-400 ट्रायम्फ रूस द्वारा विकसित एक मोबाइल सरफेस-टू-एयर डिफेंस सिस्टम है। इसे साल 2007 में रूस ने पहली बार अपनी सेना में शामिल किया था। यह प्रणाली विमान, ड्रोन, क्रूज मिसाइल और यहां तक कि बैलिस्टिक मिसाइल जैसे हवाई खतरों को 400 किलोमीटर दूर से पहचान सकती है और उन्हें मार गिरा सकती है। भारत ने इस प्रणाली को ‘सुदर्शन चक्र’ नाम दिया है, जो अपने आप में एक संकेत है कि यह कितनी घातक और बहुस्तरीय सुरक्षा प्रदान करती है।
भारत और रूस के बीच हुआ था बड़ा सौदा
भारत ने अक्टूबर 2018 में रूस से 5.43 अरब डॉलर की लागत से पांच S-400 रेजिमेंट खरीदने का समझौता किया था। अब तक तीन रेजिमेंट भारत को मिल चुकी हैं और दो और 2026 तक आने की उम्मीद है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इसमें कुछ देरी हुई।
-
पहला स्क्वाड्रन 2021 में भारत पहुंचा था
-
ये आदमपुर और हलवारा एयरबेस पर तैनात हैं
-
एक स्क्वाड्रन में दो बैटरियां होती हैं
-
एक बैटरी में 8 लॉन्चर वाहन (TEL), 2 रडार और एक कमांड पोस्ट होता है
कैसे करता है S-400 काम?
यह सिस्टम बेहद तेज और सटीक है। इसे तैनात करने में केवल 5 मिनट लगते हैं। एक साथ यह 300 हवाई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकता है और उनमें से 36 को एक साथ निशाना भी बना सकता है।
S-400 चार तरह की मिसाइलें इस्तेमाल करता है:
-
40N6E – 400 किमी रेंज
-
48N6E3 – 250 किमी रेंज
-
9M96E2 – 120 किमी रेंज
-
9M96E – 40 किमी रेंज
इन मिसाइलों की मदद से ये सिस्टम अलग-अलग दूरी और ऊंचाई से आने वाले खतरों को ढूंढता है और खत्म करता है।
S-400 की भारत में तैनाती
भारत ने इस सिस्टम को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों में तैनात किया है, जैसे:
-
सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) – पश्चिम बंगाल में स्थित यह इलाका भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को जोड़ता है और चीन-बांग्लादेश की गतिविधियों के लिहाज से संवेदनशील है
-
पंजाब का सीमावर्ती इलाका – पाकिस्तान से होने वाली घुसपैठ और आतंकी गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए
रूस फिलहाल अपने नए S-500 वायु रक्षा सिस्टम पर काम कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2024 में रूस यात्रा के दौरान रूस ने S-500 को भारत के साथ मिलकर बनाने का प्रस्ताव फिर से रखा। यदि यह समझौता होता है तो भारत दुनिया की सबसे आधुनिक वायु रक्षा तकनीक विकसित करने वाले देशों में शामिल हो जाएगा।
क्यों है S-400 इतना जरूरी?
-
दुश्मन के विमान या ड्रोन को पहले ही ट्रैक कर लेता है
-
अत्यधिक ऊंचाई और लंबी दूरी से हमला कर सकता है
-
इलेक्ट्रॉनिक जामिंग (जैसे GPS ब्लॉक करना) से प्रभावित नहीं होता
-
एक ही समय में कई खतरों से निपट सकता है
-
किसी भी दिशा से आने वाले हमले को रोक सकता है