नजरिया : अविश्वास मत की सियासत, एक वोट से गिर गई थी अटल सरकार

punjabkesari.in Thursday, Jul 19, 2018 - 01:37 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): मोदी सरकार के खिलाफ तेलगू देशम पार्टी के अविश्वास मत को लेकर देश की सियासत गरमाई हुई है। हालांकि सबको मालूम है कि इस प्रस्ताव का हश्र क्या होना है तथापि दोनों चांस नहीं लिया जा रहा।  सोनिआ गांधी ने वीरवार सुबह नाश्ता सियासत के जरिये विपक्ष को साधने की कोशिश की तो मोदी भी खुद मंत्रियों से मिले। बीजेपी बुधवार को ही अपने सभी सांसदों को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान हर हाल में उपस्थित रहने का व्हिप जारी कर चुकी है। 
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जब अम्मा ने समर्थन ले लिया था वापस 
अब सवाल यह कि अगर बीजेपी के पास पर्याप्त संख्या बल है तो फिर इतनी एहतियात की जरूरत क्यों? दरअसल इसके पीछे बीजेपी की सरकारों का इतिहास है। या यूं कह लें कि बीजेपी इस मामले में दूध की जली है इसलिए छाछ को फूंका मार रही है। बात 1999 की है। ज्यादा स्पेसिफिक होना हो तो 17 अप्रैल 1999 की। अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होनी थी। 1996 में विश्वास हासिल न कर पाने पर महज 13 दिन बाद सरकार गंवाने वाले अटल बिहारी ने इस बार एआईएडीएमके के समर्थन से सरकार बनाई थी। लेकिन 13 माह बाद अम्मा ने समर्थन वापस ले लिया तो अटल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश हो गया। सरकार को नंबर गेम पर भरोसा था इसलिए प्रस्ताव स्वीकार हो गया। 
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मायावती ने अटल सरकार के खिलाफ दिया था वोट 
उधर मायावती ने भी वोटिंग में हिस्सा नहीं लेने की घोषणा की थी। लेकिन ऐन वक्त पर मायावती ने माया दिखाई और  उनके सांसदों ने अटल सरकार के खिलाफ वोट दिया। जब वोटिंग हुई तो अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार एक वोट से हार गयी। जी हां एक वोट से और यह वोट था गिरधर गमांग का जो उस वक्त उड़ीसा (अब ओडीशा) के मुख्यमंत्री थे। अटल बिहारी बाजपेयी इससे इतने हतप्रभ हुए थे कि काफी देर तक चुपचाप सदन में अपनी सीट पर बैठे रहे थे और  उसके बाद बाहर निकल गए थे। दरअसल उन्हें विश्वास ही नहीं था कि उनकी सरकार अविश्वास प्रस्ताव हार जाएगी।
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बाजपेयी को था सरकार के बच जाने का भरोसा 
मायावती की वादाखिलाफी के बावजूद उन्हें सरकार बचा ले जाने का भरोसा था। लेकिन गिरधर गमांग की अंतिम समय में हुई एंट्री ने पासा पलट दिया। दरअसल गमांग बतौर सांसद उड़ीसा के मुख्यमंत्री बनकर जा चुके थे। उन्हें छह महीने में  विधायक बनना था। लेकिन उन्होंने संसद की सीट नहीं छोड़ी थी। इसलिए कांग्रेस उन्हें वोटिंग के लिए विशेष तौर पर लाई। हालांकि उनके इस तरह से वोट करने की काफी आलोचना हुई थी लेकिन चूंकि नियम स्पष्ट नहीं थे तो उनका वोट  वैध माना गया और वही निर्णायक साबित हुआ। अन्यथा बराबर रहने पर स्पीकर के वोट से भी बीजेपी सरकार बच जाती।  यही गणित पार्टी ने लगाया भी था। लेकिन गमांग ने सारा खेल बिगाड़ दिया।  
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जब शाह ने गमांग को गले लगाया 
सियासत के दिलचस्प रंग देखिये। ..गिरधर गमांग जिन्होंने अटल सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाई थी वही  गमांग बाद में भाजपा के चहेते बन गए।  वर्ष 2015 में उन्होंने अमित शाह के साथ मुलाकात करके बीजेपी ज्वाइन कर ली थी। उस वक्त इसके लिए बीजेपी की आलोचना भी खूब हुई थी। खैर अब जबकि एकबार फिर से बीजेपी की सरकार  अविश्वास प्रस्ताव के मुकाबिल है तो यादों के झरोखे से गिरधर गमांग एक बार फिर से बाहर निकल आये हैं।  


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vasudha

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