असम में भाजपा को झटका, AGP ने तोड़ा एनडीए से नाता

punjabkesari.in Monday, Jan 07, 2019 - 06:40 PM (IST)

नेशनल डेस्कः भारतीय जनता पार्टी वाली एनडीए में शामिल घटक दल अब उससे दूरी बनाते दिख रहे हैं। इस लिस्ट में ताजा नाम असम गण परिषद (एजीपी) का है, जिसने बीजेपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ लिया है। पार्टी अध्यक्ष अतुल बोरा ने यह घोषणा की है। दिल्ली में सोमवार को गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात के बाद अतुल बोरा ने बीजेपी से गठबंधन खत्म करने का ऐलान किया। दरअसल, नागरिकता संसोधन विधेयक को लेकर वह बीजेपी से नाराज चल रहे थे।
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एजीपी ने यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के ठीक एक दिन बाद उठाया है। प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को कहा था कि उनकी सरकार प्रस्तावित नागरिकता (संसोधन) विधेयक, 2016 को संसद में मंजूरी दिलाने के लिए काम कर रही है।
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कृषक मुक्ति संग्राम समिति (KMSS) के नेतृत्व में करीब 70 संगठनों ने पीएम मोदी के इस बयान के विरोध में जगह-जगह प्रदर्शन किए, जिसमें एजीपी पर दबाव डाला गया कि वह बीजेपी के साथ खत्म कर दे। सूत्रों के अनुसार, इसी के बाद एजीपी अध्यक्ष ने दिल्ली में गठबंधन खत्म करने का ऐलान किया।
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एजीपी ने पहले भी नागरिकता विधेयक का विरोध किया था। पार्टी का कहना था कि इससे उनकी सांस्कृतिक पहचान को नुकसान होगा। पार्टी के अध्यक्ष अतुल बोरा ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को पत्र लिखकर इस बिल पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा, असम समझौता, नागरिकता विधेयक और अन्य मुद्दों पर बीजेपी की समझ के आधार पर गठबंधन करने का फैसला लिया गया था। सरकार ने नागरिकता संसोधन विधेयक 2016 को संसद में पेश करके उसका उल्लंघन किया है।
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असम विधानसभा में कुल 126 सीटें हैं, असम विधानसभा चुनाव 2016 में इनमें से असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट समेत एनडीए के पास कुल 86 सीटें थीं। 2016 विधानसभा चुनाव में अकेले बीजेपी ने 60 सीटों पर जीत हासिल की थीं, जबकि असम गण परिषद के पास 14 सीटें और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के पास 12 सीटें हैं। इसलिए एजीपी के गठबंधन तोड़ने के बाद भी सरकार को कोई खतरा नहीं है। अगर आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखा जाए, तो इससे असम में कुछ हद तक नजीते प्रभावित हो सकते हैं।
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नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016, नागरिकता अधिनियम 1955 में संसोधन करेगा। ये विधेयक अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को भारत में छह साल बिताने के बाद नागरिकता देने के लिए लाया गया है। यह बिल लोकसभा में 15 जुलाई 2016 को लोकसभा में पेश हुआ था, जबकि 1955 नागरिकता अधिनियम के अनुसार, बिना किसी प्रमाणित पासपोर्ट, वैध दस्तावेज के बिना या फिर वीजा परमिट से ज्यादा दिन तक भारत में रहने वाले लोगों को अवैध प्रवासी माना जाएगा। 
 


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Yaspal

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