ऐसी जिंदगी से तो बीहड़ ही अच्छा था- मलखान

punjabkesari.in Sunday, Jul 12, 2015 - 07:36 PM (IST)

जालंधर। छबीस साल की उम्र में बागी बने मलखान सिंह इकलौते ऐसे बागी है जिन्हें दद्दा के नाम से जाना जाता है। चंबल घाटी में खौफ का दूसरा नाम रहे मलखान सिंह अब ''''पहले बसाया बीहड़, अब बचाएंगे बीहड़'''' कार्यक्रम चलाने वाले हैं। लंबे समय बाद मीडिया से रूबरू हुए मलखान ने जंगलों पर मंडराते खतरे पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि समर्पण के बाद से आजतक किसी व्यक्ति या संस्था ने बागियों को सामाजिक कार्यों से जोड़ने की कोशिश नहीं की। 

मंदिर की जमीन मंदिर के नाम लगवाने की मांग को लेकर बागी बने मलखान सिंह ने आज के सारे वन विभाग को भ्रष्ट बताया। उन्होंने कहा कि हमने बागी रहते भी आदर्श गांव बनाए। आज भी सरकार सहयोग करे तो वे आदर्श ग्राम बनाने की इच्छा रखते हैं। मलखान को बागी रहते जो कुछ हुआ उसका तनिक भी पछतावा नहीं। उसका कहना है कि हमने जो किया अन्याय के खिलाफ किया। हमारे जमाने में गाय काटनेवाले को हम छोड़ते नहीं थे लेकिन आज देश के हर कौने में मां कही जानेवाली गाय का खून जमीं पर गिर रहा है। उन्होंने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग की। 

अन्याय सहन करने से ज्यादा बीहड़ को अच्छा बताते हुए मलखान सिंह ने कहा कि पंद्रह साल बीहड़ में रहा, पर कोई तकलीफ़ नहीं हुई। लेकिन जेल में रहते हुए खाने या किसी दूसरी बात पर गलत हुआ तो जेलर से लड़ना पड़ता था। वे मानते हैं कि आज भी कैदियों की स्थिति दयनीय है। पांच सौ में से ढाई सौ कैदी बेक़सूर हैं, जो बंद है। यह सही है कि बागी रहते हम ईमानदार लोगों की मदद किया करते थे, इसलिए आज हम राष्ट्रहित में नरेंद्र मोदी के साथ है। 

मलखान सिंह के जीवन पर निर्माता-निदेशक आरके चौकसे फिल्म ''''दद्दा मलखान सिंह'''' बना रहे हैं, जिसमें डिम्पल कपाड़िया और मुकेश तिवारी सहित कई नामी स्टार काम कर रहे हैं। इस फिल्म की शूटिंग चंबल के बीहड़ों के साथ-साथ ग्वालियर सेंट्रल जेल में होगी, जहां समर्पण के बाद मलखान बंद रहे थे। बीहड़ में उनके रुतबे का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीबीसी लंदन ने उस समय मलखान सिंह को तीन दिन तक दस्यु सम्राट कहकर संबोधित किया था।  

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