बारूद के जख्म

punjabkesari.in Saturday, Apr 11, 2015 - 01:21 PM (IST)

जम्मू: भारत और पाकिस्तान की रंजिश का खामियाजा सबसे ज्यादा सीमांत लोगों को भरना पड़ता है। कारगिल युद्ध को हुए बरसों हो गए। उस बारूद ने लोगों को जो घाव दिए वो आज भी हरे हैं। सीमांत क्षेत्रों में बारूदी सुरंगों का जाल बिछाया गया था। यह जाल दुश्मनों के लिए था लेकिन इसका निशाना अपने भी बने।

कई ऐसे युवक इसकी चपेट में आए जिन्होंने जवानी की दहलीज सिर्फ पांव ही रखा था लेकिन बारूद ने उनके पांव ही छीन लिए। बदले में मिली दो सौ रुपए की मासिक पैंशन। सांबा सैक्टर के बैनग्लाड गांव के युवक सुनील कुमार को वर्ष 2003 का वो काला दिन आज भी नहीं भूलता। सेना में भर्ती होने का उसका सपना टूट गया और आज सुनील अपाहिज की जिन्दगी जी रहा है। चक फकीरा का सुरिन्द्र कुमार 11 नवंबर 2002 को अपने घर जा रहा था। बारूदी सुरंग पर पांव पड़ गया और पांव उड़ गया।

ऐसे बहुत से युवक हैं। बारूद ने उनके सपनों को तार-तार कर दिया। कोई उनकी सुध लेनेनहीं गया। आरएसपुरा सैक्टर के सुरेश कुमार संतोख सिंह, अर्जुन सिंह और श्रवन सिंह सबकी कहानी एक जैसी। दर्द इतना की सुनते ही आंखों में आंसू आ जाएं लेकिन बांटने कोई नहीं पहुंचता। अखनूर का छंब सैक्टर आजभी बारूदी सुरंगोंं के जाल से भरा पड़ा है। जम्मू के इस दर्द को सुनने और समझने के लिए कभी किसी ने कोई कोशिश और पहल नहीं की। 


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