विविधता में एकता की प्रतीक Holi

punjabkesari.in Thursday, Mar 05, 2015 - 12:20 PM (IST)

होली के आते ही सारा वातावरण इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर हो जाता है । भाईचारे को बांधे रखने वाले इस पर्व पर लोग सब गिले-शिकवे भूल कर एक-दूसरे को बधाई देते हुए गले मिल जाते हैं । यह सच है कि रंगों के बिना हमारा जीवन एकदम नीरस है और होली का त्यौहार इंसान को अपनी भावनाएं प्रकट करने का रंगीन अवसर प्रदान करता है । देश के अनेक भागों में बड़ी गर्मजोशी से मनाए जाने वाले इस पर्व को अलग-अलग ढंग से मनाने के पीछे हर स्थान के अपने रीति-रिवाज और परम्पराएं हैं लेकिन भावना एक ही है-आपसी प्रेम और एकता ।

मंदिरों में घूमती है ब्रज को होली : श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली ब्रज के मंदिरों में होली की शुरूआत बसंत से ही हो जाती है जब गुलाल से होली खेली जाती है । असली तेजी फाल्गुन की प्रथमा को होती है जब द्वारिकाधीश मंदिर में रसिया गायन शुरू होता है । इस दौरान सम्पूर्ण ब्रजमंडल होलीमय हो जाता है तथा ब्रज का पुराना इतिहास पुन: जीवंत हो उठता है । वैसे तो ब्रज की होली में लट्ठ का प्रयोग प्रचलित है लेकिन बरसाने की लट्ठमार होली सबसे निराली होती है । इस गांव में अष्टमी को पांडे लीला का आयोजन होता है जिसमें नंदगांव का पंडा श्रीकृष्ण की ओर से बरसाने में ब्रज-गोपियों को होली के मेले का निमंत्रण देता है । नंदगांव के पुरुष हंसी-ठिठोली करते गोपियों पर रंग डालते हैं तो सजी-धजी गोपियां लाठियों से उन पर प्रहार करती हैं जिसे वे ढालों से रोकते हैं ।

राजस्थान की होली : राजस्थान की संस्कृति किसी परिभाषा की मोहताज नहीं है जितने रंगीले इसके परिधान है उतनी ही रंगीली यहां की होली है । राजस्थान में जयपुर की होली के तो आप दीवाने हो जाएंगे । यहां हाथी उत्सव के साथ होली का मजा दोगुना हो जाता है । स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी पूरा साल इस उत्सव की प्रतीक्षा करते हैं । राजस्थान के बंसवारा में लोग परम्परागत परिधानों में सजे-धजे डंडे की मदद से नृत्य का आयोजन करते हैं । ब्यावर में कोड़े-मार होली होती है जिसमें देवर अपनी भाभियों पर रंग डालते हैं और भाभियां उन्हें कोड़े मारती हैं ।

मध्यप्रदेश की होली :
यहां होली पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है । यहां धुलैंडी के दिन लोग नए कपड़े पहन कर एक स्थान पर एकत्र होकर आपसी समस्याओं और विवादों का निपटारा करते हैं। यह विलक्षण रिवाज मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले के गांव धूधड़का में आज तक पूरी शान से कायम है । इस राज्य के मालवा क्षेत्र में भील समाज के लोग होली को ‘भगौरिया’ कहते हैं । भील युवकों के लिए होली का पर्व अपने लिए प्रेमिका चुन कर उसे भगा कर ले जाने का त्यौहार है । यहां के बस्तर जनपद में होली साल में दो बार मनाई जाती है । एक बार फाल्गुन महीने में और दूसरी बार चैत्र महीने में ।

गुजरात की होली : गुजरात में आदिवासी इस त्यौहार को 14 दिन पहले ही मनाना आरंभ कर देते हैं। 14 दिनों तक गांव के सभी स्त्री-पुरुष एक स्थान पर इक्ट्ठे होकर छोटी होली जलाते हैं । अंतिम फाल्गुन की पूर्णिमा को गांव के चौराहे पर सेमल पेड़ की डाल को गाड़ कर गांव का पुजारी फल, फूल, चावल, रोली आदि चढ़ा कर विधिवत पूजन करता है । लकडिय़ों का ढेर लगाकर होलिका-दहन किया जाता है । इस दिन नृत्य का आयोजन होता है और अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है । अन्य स्थानों पर होली की पूर्व संध्या पर फूलों और फलों से सजा एक अलाव माता के मंदिर से लाकर जलाया जाता है जिस पर लोग कच्चे आम, नारियल, मक्का, चीनी के खिलौने और खोया आदि होलिका पर चढ़ाते हैं ।

पंजाब का होला-मोहल्ला :
पंजाब में इस त्यौहार की बहुत धूम रहती है । सिखों के महत्वपूर्ण धर्मस्थल गुरुद्वारा श्री आनंदपुर साहिब जी में होली से अगले दिन ‘होला मोहल्ला’ मनाया जाता है जो 6 दिन तक चलता है। इस मेले की शुरूआत सिखों के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने की थी । इस मेले में सिख शौर्यता के हथियारों का प्रदर्शन और कई मुकाबले होते हैं । घोड़ों पर सवार निहंग हाथों में निशान साहिब उठाए साहस और शौर्य का प्रदर्शन करते हैं । इस मेले में विशाल लंगर आयोजित किए जाते हैं ।

पश्चिम बंगाल की होली :
बंगाल में फाल्गुन पूर्णिमा के मौके पर श्री कृष्ण जी की मूर्ति बना कर वेदी पर सोलह खंभों वाले मंडप में प्रतिष्ठित किया जाता है । इससे पहले  मूर्ति  को पंचामृत से स्नान कराया जाता है । मूर्ति प्रतिष्ठा के बाद सात बार उन्हें झुलाया जाता है । दक्षिण-पश्चिम भारत में होलिका के पांचवें दिन ‘रंग-पंचमी’ का आयोजन होता है तथा विघ्नहर्ता के रूप में श्री गणेश जी की पूजा होती है ।

महाराष्ट्र की होली : यहां होली ‘शिमगा’ के नाम से मनाई जाती है । इस पर्व पर पुरुष तो महिलाओं पर रंग डाल सकते हैं पर महिलाएं नहीं । इस दिन घर-घर में झाड़ू लगाकर पूजन का विधान है व बाद में झाड़ू को जला दिया जाता है । व्यंजनों की बात करें तो पूरनपोली खासतौर से शामिल की जाती है ।

ओडिशा की होली : ओडिशा में यह पर्व ‘तिग्या’ के नाम से जाना जाता है। पूर्णिमा की रात को ‘ढोल-पूर्णिमा’ कहा जाता है । इस दिन देव मूर्तियां को झूले झुलाए जाते हैं और चने-बताशे प्रसाद स्वरूप वितरित किए जाते हैं ।


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