थलसेना दिवस: सैनिकों को सलाम

punjabkesari.in Friday, Jan 15, 2021 - 09:23 AM (IST)

मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि -“ मैं भारत के संविधान का वफादार रहूंगा। चाहे इसके लिए मुझे अपने जीवन का बलिदान ही क्यों ना करना पड़े । मेरी अपनी सुविधा, आराम और सुरक्षा हमेशा आखिर में आएंगे”।  यह शुरुआत है साहस के सफर की। हर सैनिक सेना में प्रवेश से पहले यह शपथ लेता है। हर वर्ष सैकड़ों सैनिक इस शपथ को निभाते हुए मातृभूमि पर अपने प्राण न्योछावर कर देते हैं। 15 जनवरी को थल सेना दिवस मनाया जाता है। आइए, अपनी भारतीय सेना से जुड़े कुछ तथ्य (Facts about Indian Army) जाने और आने वाली पीढ़ी को भी अपने सैनिकों की बहादुरी से अवगत कराएं। 

 

स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही भारत और पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध कश्मीर  को लेकर हुआ। ये हमारे सैनिकों की वीरता का परिणाम था कि कश्मीर के एक बड़े हिस्से को पाकिस्तानी सेना के अनधिकृत कब्जे से बचाया जा सका। भारतीय सैनिकों द्वारा दिखाई गई दृढ़ता और साहस ने भारत की नियति को बदल दिया। सन 1962 में चीन के साथ युद्ध के रूप में देश को बहुत बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। दुश्मन हम से अधिक तादाद में 14000 फीट की ऊंचाई से लगातार हमला कर रहा था।तब हमारे बहादुर सिपाहियों ने देश के सम्मान के लिए उन चुनौतियों का डटकर सामना किया। उनके अमर बलिदान ने भारतीय सेना की देशभक्ति के संकल्प को और भी मजबूत कर दिया।सीमित संसाधनों और राजनीतिक कमियों को सैनिकों ने अपनी जान देकर पूरा किया। सन 1965 में पाकिस्तान ने एक बार फिर कश्मीर के बहाने युद्ध किया।इस युद्ध में भी सेनाओं की बहादुरी का परिचय मिला।

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दुश्मन ने 1971 में एक बार फिर से भारत पर आक्रमण किया ।इस युद्ध में पाकिस्तान को बहुत बड़ी हार का सामना करना पड़ा।पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया और एक नया देश, बांग्लादेश दुनिया के मानचित्र में आया। सन 1984 में भारतीय सैनिकों को वायु सेना द्वारा ग्लेशियर की उन चोटियों पर पहुंचाया गया,जहां दुश्मन को उम्मीद भी नहीं थी कि उनसे पहले उनकी मौत उनका रास्ता देख रही है। सन 1999 में पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध हुआ।घुसपैठी पाकिस्तानी सेना और आतंकियों को अपनी सीमा से खदेड़ने के लिए सेना ने अहम भूमिका निभाई। ऑपरेशन विजय अब भी हमारे मस्तिष्क पर अंकित है और हमारे सैनिकों की वीरता की असंख्य कहानियां भी। परमवीर कैप्टन विक्रम बत्रा  का जोश भरा नारा यह दिल मांगे मोर आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। इन युद्धों के अलावा हमारे सैनिकों ने संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के रूप में विश्व भर में अपनी वीरता और  कर्तव्यपरायणता का अपना लोहा मनवाया है।मालदीव, श्रीलंका, भूटान आदि में बड़े सैनिक अभियान भी हमारी सेनाओं  ने सफलतापूर्वक किए और क्षेत्र में शांति स्थापित करने में योगदान दिया। इसके साथ ही प्राकृतिक और मानव कृत आपदाओं में हमारी सेना देश का अंतिम सहारा बनी है और हमेशा ही हर मापदंड पर खरी उतरी है। सेना दिवस के अवसर पर अपनी सेना के स्वर्णिम इतिहास को फिर याद किया जाना चाहिए।

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भारतीय सेना का इतिहास-
भारतीय सेना की स्थापना अब से लगभग  123 साल पहले 1 अप्रैल 1895 को अंग्रेजों द्वारा की गई थी। लेकिन भारत में सेना दिवस 15 जनवरी को मनाया जाता है। यह दिन सैन्य परेडों, सैन्य प्रदर्शनियों व अन्य आधिकारिक कार्यक्रमों के साथ नई दिल्ली व सभी सेना मुख्यालयों में मनाया जाता है। इस दिन उन सभी बहादुर सेनानियों को सलामी भी दी जाती है, जिन्होंने अपने देशवासियों के लिये अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। सेना दिवस के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष दिल्ली छावनी के करिअप्पा ग्राउंड में परेड निकाली जाती है, जिसकी सलामी थल सेना अध्यक्ष लेते हैं ।इस वर्ष परेड की सलामी थलसेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे लेंगे। भारत की स्वतंत्रता के बाद से 14  जनवरी 1949  तक भारतीय सेना की कमान अंग्रेज कमांडर जनरल रॉय फ्रांसिस बुचर के पास थी। अब भारत की संपूर्ण सत्ता भारतीय हाथों में सौंपने का समय था। उस समय भारत के 3 सबसे वरिष्ठ अफसर थे- केएम करिअप्पा, श्री नागेश और नाथू सिंह राठौर।

पहला आर्मी चीफ बनने की कहानी भी बहुत ही रोचक है। इस मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय बैठक चल रही थी। जवाहरलाल नेहरू ने कहा- “क्योंकि किसी के पास अनुभव नहीं है ,तो क्यों ना किसी अंग्रेज को ही सेना अध्यक्ष बना दिया जाए” ? तब नाथू सिंह राठौर ने कहा  कि - “देश चलाने का अनुभव भी तो किसी के पास नहीं तो क्यों ना किसी अंग्रेज को ही प्रधानमंत्री बना दिया जाए”। आखिरकार नाथू सिंह से  सेना अध्यक्ष बनने को कहा गया। नाथू सिंह ने कहा- “नहीं, जो सबसे वरिष्ठ है वहीं सेना अध्यक्ष बनना चाहिए।” और सबसे वरिष्ठ थे जनरल करियप्पा। इसलिए 15 अगस्त 1949 को फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय सेना प्रमुख बने। क्योंकि यह मौका भारतीय सेना के लिए बहुत ही उल्लेखनीय था,इसलिए यह दिन  सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है। जनरल करिअप्पा जब सेनाअध्यक्ष बने,उस समय भारतीय सेना में लगभग 2 लाख सैनिक थे। आज यह संख्या बढ़कर 13.5 लाख तक पहुंच गई है। करिअप्पा स्टाफ कॉलेज जाने वाले, बटालियन कमांड करने वाले और इंपीरियल डिफेंस कॉलेज जाने वाले पहले भारतीय अफसर बने। 1944 में जब करिअप्पा ब्रिगेडियर बने तो अयूब खान एक कर्नल के तौर पर उनके जूनियर थे। यही अयूब खान 1958 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने। 

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जनरल करिअप्पा ने अपने 4 साल के कार्यकाल में इस बात की बुनियाद रखी कि सेना और राजनीति में सदैव एक  फ़ासला रहे। उन्होंने सेना के मामलों में सरकारी दखलअंदाजी  का पुरजोर विरोध किया। भारतीय सेना का मौजूदा स्वरूप उन्हीं की देन है। यह पहले चीफ थे जिन्होंने कहा कि हम स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत की सेना है । हमारी वफादारी देश के  साथ रहेगी और पार्टी की राजनीति से हम दूर रहेंगे। जनरल करिअप्पा 1953 में सेना से रिटायर हुए। 30 साल बाद उन्हें सेना के सर्वोच्च पद फील्ड मार्शल पर उन्नति दी गई। आज हमारे सैनिक एक ऐसे दुश्मन का सामना कर रहे हैं जिनका कोई चेहरा नहीं है। भारतीय सेना नित्य प्रतिदिन एक परोक्ष  युद्ध लड़ रही है। जम्मू कश्मीर के दुर्गम क्षेत्रों में सरहद पार से आने वाले घुसपैठियों को रोकती है। यदि उनमें से कोई भी दुश्मन हमारे इलाके में पहुंच जाए तो हमारी सेना, स्थानीय पुलिस और अर्धसैनिक बलों के साथ मिलकर उनके गलत इरादों को कुचल डालती है। देश के सुदूर क्षेत्रों में भी वहां के आवाम के हित में कार्य करती है। भारतीय नागरिक जो किसी अन्य देश में रहते हैं, उनकी सुरक्षा का दायित्व भी हमारी सेना बखूबी निभाती है। हाल ही में यमन और लीबिया में भारतीय नागरिक  संकट में फंसे थे, उन्हें भारतीय नौसेना  एवं भारतीय  वायुसेना  का पूरा सहयोग मिला। भारतीय सेना जो काफी समय से युवाओं की कर्म स्थली रही है , आज वहां महिलाएं भी विभिन्न भूमिका बखूबी निभा रही हैं। रजिया सुल्तान और झांसी की रानी की इस धरा पर आधुनिक भारतीय नारी सशक्त बलों की कसौटी पर कैसे ना खरी उतरती ?

 

भारतीय सेना की पहचान सिर्फ युद्धस्थल तक सीमित नहीं है, बल्कि मानवीय गुणों से ओतप्रोत एक मददगार बल के रूप में भी है। फिर चाहे अंडमान निकोबार के समुद्रों की सुनामी हो या भुज का भूकंप,कश्मीर और गुजरात में आई बाढ़ हो या उत्तराखंड में फटा हुआ बादल, हर आपदा में हमारी सेनाओं ने हर परिस्थिति का सामना करते हुए असैनिक जनसंख्या को राहत पहुंचाई है।विश्व के अनेक राष्ट्रों में संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित किए गए शांति अभियान में भी हमारी सेना ने अपनी जान की परवाह किए बिना सक्रिय भागीदारी निभाई है। हमारी सेना,मित्र देशों के साथ सैनिक अभ्यास भी करती है, जिससे आतंकवाद से निपटने के नए तौर तरीकों की जानकारी आपस में बाटी जाती है।  इन्हें नए हथियारों और नई तकनीकों को अपने रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करने के लिए रोज नए प्रशिक्षण लेने की भी जरूरत पड़ती है। 

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तभी तो हमारी सेना के लाखों  सेवा निवृत्त और कार्यरत सेना के जवान पूरे देश में सेना के लोकाचार,धर्मनिरपेक्षता, सहिष्णुता, नैतिक ईमानदारी और निस्वार्थ अनुशासन का संदेश देते रहे है। हमारी सेना साहसिक गतिविधियों द्वारा अपने सैनिकों के वैयक्तिक गुणों का विकास भी करती है। सेना के खिलाड़ियों ने विश्व के विभिन्न मंचों पर तिरंगा लहराया है। मिल्खा सिंह , सूबेदार जीतू रॉय,सूबेदार विजय कुमार,  कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर, फ्लाइट लेफ्टिनेंट शिखा पांडे जैसे खिलाड़ियों के नाम प्रमुख हैं। देश की भौगोलिक एकता और आंतरिक सुरक्षा में सेना का  योगदान सर्वोपरि है । ऐसे ही भारतीय सैनिक जो दिन रात हमारी रक्षा करते हुए देश की सीमाओं पर निरंतर तैनात रहते हैं । उन्हें हमारा शत-शत नमन है । यह देश का दायित्व है कि हम अपने भूतपूर्व सैनिकों और उनके परिजनों के  धैर्य तथा साहस का सम्मान करें। उनके मनोबल और सम्मान को सदैव ऊंचा रखें, जिन्होंने अपने जीवन के बहुमूल्य वर्ष देश की सेवा में समर्पित कर  दिए । 72वे  सेना दिवस पर आइए अपने सैनिकों को हृदय से याद करें। जय हिंद।

(श्रीमती नीलम हुंदल, सैनिक पत्नी), जालंधर कैंट


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vasudha

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