WHO की चेतावनी: बढ़ता जा रहा है भारत में एंटीबायोटिक प्रतिरोध, जानलेवा संक्रमणों की संख्या लाखों में
punjabkesari.in Friday, Oct 17, 2025 - 09:06 AM (IST)

नेशनल डेस्क: दुनिया भर में बढ़ती एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमणों (Antimicrobial Resistance - AMR) की समस्या को WHO ने गंभीर रूप से लिया है। 2023 के अपने ताजा रिपोर्ट में WHO ने बताया कि हर छह में से एक बैक्टीरियल संक्रमण अब दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी हो गया है। इसी वैश्विक संकट के केंद्र में भारत भी है, जहाँ यह समस्या विशेष रूप से गंभीर रूप ले चुकी है।
भारत में एंटीबायोटिक प्रतिरोध की स्थिति चिंताजनक
साल 2021 में प्रकाशित द लांसेट के शोध के अनुसार, भारत में लगभग 10.7 लाख लोग ऐसे खतरनाक बैक्टीरिया से संक्रमित हुए जो कार्बापेनेम जैसे अंतिम विकल्प एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति भी प्रतिरोधी हैं। इन संक्रमितों में से केवल 8% को ही उचित इलाज मिला, जिससे लगभग एक मिलियन लोग जीवन रक्षक उपचार से वंचित रह गए। खासतौर पर भारत के आईसीयू (Intensive Care Unit) में 30% से अधिक मरीज ऐसे हैं जिनके संक्रमण दवाओं के लिए प्रतिरोधी हो चुके हैं।
कार्बापेनेम-प्रतिरोधी बैक्टीरिया: अस्पतालों में फैला गंभीर खतरा
यह प्रतिरोधी संक्रमण खासकर अस्पतालों में तेजी से फैल रहे हैं। 'क्लेब्सिएला न्यूमोफिलिया' जैसे बैक्टीरिया भारत के अस्पतालों में तेजी से फैल रहे हैं, जो ना केवल दवाओं के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी हैं, बल्कि अन्य बैक्टीरिया को भी अपनी प्रतिरोधी क्षमता ट्रांसफर कर सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन्हें ‘क्रिटिकल प्रायोरिटी’ बैक्टीरिया घोषित किया है।
खराब दवाओं का दुरुपयोग और निगरानी की कमी बन रही बड़ी बाधा
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में एंटीबायोटिक दवाओं का गलत और अत्यधिक उपयोग इस संकट को बढ़ा रहा है। इसके साथ ही कमजोर स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, अधूरी निगरानी और खराब गुणवत्ता वाली दवाओं की उपलब्धता इस समस्या को और गहरा रही है। केरल के वरिष्ठ माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. अरविंद आर के अनुसार, दवाओं के दुरुपयोग को नियंत्रित करने में विफलता ने इस स्थिति को और खराब किया है।
नई दवाओं की कमी से डॉक्टरों की चुनौती बढ़ी
डॉ. सचिन भगवत, मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी, वॉकरहाट फार्मा के अनुसार, नई और प्रभावी एंटीबायोटिक्स की कमी ने डॉक्टरों को पुराने और जहरीले विकल्पों जैसे कोलिस्टिन और पॉलिमाइक्सिन पर निर्भर कर दिया है, जो अक्सर प्रभावहीन और खतरनाक साबित हो रहे हैं। वॉकरहाट द्वारा विकसित एक नई दवा ‘ज़ैनिच’ इस चुनौती का संभावित समाधान हो सकती है। इस दवा ने उन मरीजों में सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं जो अन्य दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे। यह दवा फिलहाल अमेरिकी एफडीए की मंजूरी के लिए समीक्षा में है।
वैश्विक समस्या, लेकिन भारत पर भारी पड़ रहा असर
हालांकि एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमण एक वैश्विक समस्या है, लेकिन भारत जैसे कम और मध्यम आय वाले देशों पर इसका प्रभाव सबसे ज्यादा पड़ रहा है। दुनिया भर में 2018 से 2023 के बीच लगभग 40% एंटीबायोटिक्स सामान्य संक्रमणों पर असर खो चुके हैं। 2021 में लगभग 4.7 मिलियन मौतों में से लगभग 1.14 मिलियन मौतें सीधे इस प्रतिरोध के कारण हुईं।
जागरूकता और नीतिगत बदलाव जरूरी
विशेषज्ञों का जोर है कि दवाओं का जिम्मेदाराना उपयोग ही इस संकट से लड़ने का पहला कदम है। लेकिन लंबी अवधि में स्थिति से निपटने के लिए नई दवाओं का विकास और अनुसंधान बेहद आवश्यक है। डॉ. भगवत ने चेतावनी दी कि एक नई दवा ही पर्याप्त नहीं होगी, बल्कि लगातार नवाचार और कई प्रभावी एंटीबायोटिक्स की जरूरत है ताकि हम सुपरबग्स की दौड़ में आगे रह सकें।