नजरिया : MFN और सुरक्षा वापसी के बाद क्या अब सिंधु जल संधि की बारी ?

punjabkesari.in Monday, Feb 18, 2019 - 06:02 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीवशर्मा): जनभावनाओं के विपरीत हिंदुस्तान शायद ही अब सर्जिकल स्ट्राइक करेगा इसके तकनीकी कारण हैं पिछली बार यह अप्रत्याशित कदम था। अबके पाकिस्तान सजग होगा। उसकी उन सब जगहों पर नज़र होगी जहां से सर्जिकल स्ट्राइक हो सकती है। ऐसे में अन्य रास्ते  ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। उसी के तहत भारत ने पकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्ज़ा वापस ले लिया है। अगले बड़े कदम के तहत कश्मीर में अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस ले ली गयी है।अब भारत के तीसरे कदम का इंतज़ार है। यह कदम है- सिंधु जल संधि। अगर भारत इसे तोड़ता है तो यह पाकिस्तान के विरुद्ध अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई होगी। 

वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2016 में बठिंडा की रैली में इसका संकेत दे चुके हैं। उड़ी हमले के बाद उन्होंने सिंधु जलसंधि की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता। हालांकि उसके बाद ऐसा कोई प्रयास भारत के भीतर नहीं हुआ जिससे यह लगे कि सिंधु जलसंधि को तिलांजलि दी जा सकती है और तो और इस संधि के तहत आने वाली भारत की अपने हिस्से की नदियों का जल भी अनवरत रूप से पाकिस्तान जा रहा है। लेकिन यदि इस जलसंधि को रोका जाता है तो इससे निश्चित तौर से पाकिस्तान की कमर टूट सकती है। यह एक तरह से जलयुद्ध होगा।  पकिस्तान की अस्सी फीसदी आर्थिकी भारत से निकलने वाली नदियों या यूं कह लें सिंधु बेसिन पर निर्भर करती है। 
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यदि हिंदुस्तान इनका पानी रोक देता है तो पाकिस्तान में खेती, बिजली और पीने तक के लिए पानी मिलना मुश्किल हो जायेगा। हालांकि बड़ा सवाल यही है कि क्या भारत यह कदम उठा पायेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत ने अभी तक कोई अंतर्राष्ट्रीय समझौता नहीं तोडा है। तीन-तीन युद्ध लड़ने के बावजूद सिंधु जलसंधि जारी रही लेकिन अब वक्त बदला है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ऐसे समझौते टूट रहे हैं। अमेरिका को ही ले लें वो बड़े आराम से जलवायु समझौते से  बाहर हो गया। उसने जापान से अपने समझौते तोड़ डाले।  ईरान ने भी यही किया। तो क्या भारत जैसा बड़ा राष्ट्र यह नहीं सकता ? मामला सिर्फ और सिर्फ नैतिक मोर्चे का है रणनीतिक मोर्चे पर इस फैसले को देर नहीं लगेगी।  

क्या है सिंधु जल संधि
सिंधु जलसंधि 19 सितंबर 1960 को हुई थी। इस पर भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान ने हस्ताक्षर किये थे। संधि के मुताबिक सिंधु नदी बेसिन में बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में बांटा गया। पूर्वी हिस्से में बहने वाली नदियों सतलुज, रावी और ब्यास के पानी पर भारत का पूर्ण अधिकार है, लेकिन पश्चिमी हिस्से में बह रही सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित इस्तेमाल कर सकता है। संधि के मुताबिक भारत इन नदियों के पानी का कुल 20 प्रतिशत पानी ही रोक सकता है।  वह चाहे तो इन नदियों पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना सकता है, लेकिन उसे रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट ही बनाने होंगे, जिनके तहत पानी को रोका नहीं जाता. भारत कृषि के लिए भी इन नदियों का इस्तेमाल कर सकता है।
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पाकिस्तान को पड़ेगा कितना फर्क 
सिंधु दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है। इसकी लंबाई 3000 किलोमीटर से अधिक है यानी ये गंगा नदी से भी बड़ी नदी है। सहायक नदियों चिनाब, झेलम, ससतलुज, राबी और ब्यास के साथ इसका संगम पाकिस्तान में होता है। पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां आती हैं। इसके अलावा, पाकिस्तान की 3 करोड़ एकड़ ज़मीन की सिंचाई इन नदियों पर निर्भर है। अगर भारत पानी रोक दे तो पाक में पानी संकट पैदा हो जाएगा, खेती और जलविधुत  बुरी तरह प्रभावित होंगे। सिंधु नदी बेसिन करीब साढ़े ग्यारह लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है। यानी उत्तर प्रदेश जैसे 4 राज्य इसमें समा सकते हैं। सिंधु और सतलुज नदी का उद्गम स्थल चीन में है, जबकि बाकी चार नदियां भारत में ही निकलती हैं। सभी नदियों के साथ मिलते हुए विराट सिंधु नदी कराची के पास अरब सागर में गिरती है। 

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भारत को नुकसान 
हालाकि भारत को इसके कुछ नुक्सान भी संभावित हैं। मसलन चीन जैसा पाकिस्तान का दोस्त यही नीति भारत के खिलाफ अपनाकर पाकिस्तान को स्पोर्ट कर सकता है। सतलुज और खासकर ब्रह्मपुत्र नदी में चीन शरारत कर सकता है। उधर बांग्लादेश के साथ जल समझौतों को लेकर भी नए सिरे से विवाद हो सकते हैं। तीस्ता, फरक्का और गंगा जल समझौते प्रभावित हो सकते हैं। ऊपर से सबसे बड़ी बात कि पानी रोकने और उसके इस्तेमाल के लिए भारत के पास जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है।  दो साल पहले जब मोदी जी ने घोषणा की थी उसके बाद भी ऐसा कुछ ज़मीन पर नहीं दिखा  जिससे लगे की भारत  इन नदियों के पानी को अपने यहां ही सहेज सकता है। बस भाषण हुआ और बात आई गयी हो गयी। 


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vasudha

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