राम दरबार की मूर्ति बनाते समय हुआ चमत्कार! मूर्ति बनाते समय दिखी प्रभु लीला, जानें मूर्तिकार ने क्या बताया...

punjabkesari.in Sunday, Jun 08, 2025 - 10:40 AM (IST)

नेशनल डेस्क: जयपुर के प्रसिद्ध मूर्तिकार सत्य नारायण पांडेय और उनके बेटे प्रशांत पांडेय ने अयोध्या में राम दरबार की स्थापना के लिए मूर्तियां तैयार कीं। परिवार की यह चौथी पीढ़ी है जो गर्भ गृह की प्रतिमाएं तराश रही है। वर्षों का शिल्प–अनुभव और गहरी आस्था दोनों ने मिलकर इस कार्य को साधना बना दिया। राम दरबार की मुख्य प्रतिमा के लिए पिता–पुत्र ने लम्बा शोध किया। आखिरकार उन्हें एक अत्यन्त पुराना पत्थर मिला जिसे शास्त्रों में ‘कृष्ण शिला’ कहा जाता है। यही शिला आगे चलकर सीता राम की संयुक्त मूर्ति का आधार बनी। पत्थर इतना अनूठा था कि उसने आगे एक अलौकिक रूप धारण किया। प्रतिमा तराशते समय सत्य नारायण पांडेय ने पहले श्री राम के हाथ तथा वक्ष भाग को आकार दिया। उसी क्षण शिला का वह हिस्सा श्यामल हो उठा जबकि पत्थर का वह भाग जहां माता सीता विराजमान हैं गौरवर्ण का बना रहा। पिता ने इसे कुदरत का साक्षात चमत्कार माना। उनका कहना है कि बिना किसी रासायनिक प्रक्रिया के एक ही पत्थर पर दो अलग रंग उभर आना प्रभु की विशेष लीला है।

राम दरबार का सजीव दृश्य

  • मध्य में एक ही शिला से तराशी गई सीता राम की युगल प्रतिमा

  • पीछे की पंक्ति में लक्ष्मण और शत्रुघ्न

  • सामने दास भाव में बैठे हनुमान

  • उसी पंक्ति में भरत का स्थान

पूरे समूह को इस प्रकार सजाया गया है कि दर्शन करते समय भक्तों को परिवार–भाव की पूर्ण अनुभूति हो।

मोर तथा बंदर ने बढ़ाया आस्था

मूर्ति निर्माण के दौरान कार्यशाला के आसपास बार बार मोरों का नाचना तथा बंदरों का अनायास पहुंचना मूर्तिकारों के लिए संदेश समान था। प्रशांत पांडेय का मानना है कि ये घटनाएं प्रभु की उपस्थिति का संकेत थीं जिन्हें शब्दों में पूरी तरह व्यक्त नहीं किया जा सकता। 
मंदिर का वातावरण अत्यन्त ऊर्जावान होने के कारण शिल्पकारों ने सामान्य से भिन्न स्पंदन महसूस किया। पत्थर नाजुक था अतः अत्यधिक सावधानी बरतनी पड़ी। हथौड़ी और छैनी की हर चोट के साथ वे मानसिक जाप करते रहे ताकि प्रतिमा पर भक्तिभाव बना रहे। उनका कहना है कि इसी कारण कठिनाइयां भी ‘साधना’ बन गईं।

‘भक्ति में डूबे तो भगवान प्रकट’

सत्य नारायण पांडेय के शब्दों में—“कलाकार जब भक्ति और आनंद में डूबकर मूर्ति गढ़ता है तब भगवान भी आनंदित होते हैं तथा वही आनंद मूर्ति के रूप में स्थिर हो जाता है।” यही भाव सीता राम की प्रतिमा में स्पष्ट झलकता है जहाँ कोमलता और दिव्यता एक साथ दिखाई देती है।

क्यों खास है यह मूर्ति

  1. एक ही पत्थर में दो रंग—माता सीता गौरवर्ण, प्रभु राम श्यामवर्ण

  2. पीढ़ियों का शिल्पज्ञान—चौथी पीढ़ी की अनुभवी कला

  3. पूर्ण पारिवारिक दृश्य—सीता राम के साथ भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न और हनुमान

  4. प्राकृतिक संकेत—मोर और बंदर की बार बार उपस्थिति

  5. भक्ति आधारित तकनीक—हर प्रहार के साथ मंत्र और ध्यान

भक्तों के लिए संदेश

पांडेय परिवार मानता है कि मूर्ति केवल पत्थर नहीं बल्कि श्रद्धालुओं के विश्वास का साकार रूप है। उनका आग्रह है कि दर्शन करते समय भक्त इस चमत्कारिक रंग–भेद को अवश्य देखें जिसमें प्रभु राम का नील वर्ण और माता सीता का गौर वर्ण साथ साथ चमकता है। यही दृश्य भक्त–हृदय में रमता और प्रार्थना को और गहरा बना देता है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Ashutosh Chaubey

Related News