मंत्र शक्तियों में समाए हैं रहस्य

punjabkesari.in Tuesday, Oct 06, 2015 - 03:41 PM (IST)

श्री रामचरित मानस में संत महाकवि तुलसीदास ने मंत्र शक्ति के संबंध में वर्णन किया है।

मंत्र महामणि विषय ब्याल के।
मेटत कठिन कुअंक भाल के॥
 
आज के व्याधि, रोग-शोक, कलह-क्लेश, ईर्ष्या-द्वेष, बैर-हिंसा, अकाल-अभाव, अनाचार-स्वेच्छाचार आदि से पीड़ित मानव को भगवदुपासना, ईश्वराधन मंत्र जप से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। शारदा तिलक एवं मंत्र महोदधि में मंत्र तीन प्रकार के बताए गए हैं। पुलिंग-स्त्रीलिंग-नपुंसक लिंग।
 
जिस मंत्र के अंत में ‘हुं फट्’ हो उसे पुरुषमंत्र कहते हैं जैसे ‘ऊं हं हनुमते रुद्रात्मकाय हूं फट्’ यह हनुमान जी का मंत्र है। इस मंत्रानुष्ठान से साधक को तत्काल फल मिलता है।
 
मंत्र महार्णव पूर्व खण्ड में मंत्रोल्लेख मिलता है। जिस मंत्र के अंत में ‘स्वाहा’ शब्द हो उसे स्त्री मंत्र अर्थात स्त्री लिंग कहा जाता है ‘यथोक्तं ऊं पूर्व कपि मुखायच्च मुख हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु संहारणाय स्वाहा’। यह शत्रु संकट निवारणार्थ हनुमद्-मंत्र है। जिस मंत्र के अंत में ‘नम:’ हो वह नपुंसक लिंग कहलाता है जैसे - ‘रां रामाय नम: अथवा कृष्णाय नम:। श्रीकृष्ण पंचाक्षर मंत्र या श्री गणेशाय नम:।’
 
एक ही परमत्व परम प्रभु को शिव अथवा राम या विष्णु, रुद्र, सदाशिव, परब्रह्म परमेश्वर महेश्वर, सर्वेश्वर कहा गया है। परब्रह्म परमात्मा शिव महेश्वर रुद्र नर भी हैं नारी भी हैं। अत: उनके उपासकों के लिए उनके पुलिंग मंत्र भी हैं स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग मंत्र भी हैं क्योंकि शिव से भिन्न कुछ है ही नहीं, शिव से भिन्न शिव नहीं है। तभी उन्हें भगवान अद्र्धनारीश्वर भी कहा जाता है। वह भगवान हैं वही भगवती भी है तभी कहा गया है कि शिव नर उमा नारी तस्मै तस्यै नमो नम:।
 
भगवान के लिए कहा गया है त्वम् स्त्री त्वम् पुमान्। शिव कुटस्थ तत्व है और आद्यशक्ति परिणामिनी तत्व है जैसे पुष्प में गंध, सूर्य में प्रभा नित्य और स्वभाव सिद्ध है उसी प्रकार शिव में शक्ति भी, भगवान में भगवती स्वभाव सिद्ध है। सदाशिव का अर्थ है नित्य मंगल त्रिकाल मंगल अर्थात मंगलमय कल्याण कर्ता शंकर। 

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