सूर्य कृष्ण के आदेश पर घूमता है

punjabkesari.in Monday, Mar 30, 2015 - 07:25 AM (IST)

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद  अध्याय 4 (दिव्य ज्ञान)

श्री भगवानुवाच इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।

विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।1।।

अनुवाद : भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: मैंने इस अमर योगविद्या का उपदेश सूर्यदेव विवस्वान् को दिया और विवस्वान् ने मनुष्यों के पिता मनु को उपदेश दिया और मनु ने इसका उपदेश इक्ष्वाकु को दिया।

तात्पर्य  यहां हमें भगवद्गीता का इतिहास प्राप्त होता है। यह अत्यंत प्राचीन बताया गया है, जब इसे सूर्यलोक इत्यादि सम्पूर्ण लोकों के राजा को प्रदान किया गया  था। समस्त लोकों के राजा विशेष रूप से निवासियों की रक्षा के निमित्त होते हैं अत: राजन्यवर्ग को भगवद्गीता की विद्या को समझना चाहिए जिससे वे नागरिकों (प्रजा) पर शासन कर सकें और उन्हें काम-रूपी भवबंधन से बचा सकें।  

सारे राज्य के शासनाध्यक्ष कृष्णभावनामृत विद्या का प्रचार करने के लिए होते हैं, जिससे जनता इस महाविद्या का लाभ उठा सके और मनुष्य जीवन के अवसर का लाभ उठाते हुए सफल मार्ग का अनुसरण कर सके।इस कलियुग में सूर्यदेव विवस्वान् कहलाता है और वह सूर्य का राजा है, जो सौरमंडल के अंतर्गत समस्त ग्रहों (लोकों) का उद्गम है।                                                                                                                                                                                                                                                                                 (क्रमश:)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News