मोदी को 2019 में रोकने के ‘तीन तरीके’

punjabkesari.in Tuesday, Nov 21, 2017 - 04:06 AM (IST)

अपनी पहली राजनीतिक पुस्तक में तृणमूल कांग्रेस सांसद एवं पार्टी के राज्यसभा में नेता डेरेक ओ ब्रायन ने भाजपा के विजयी रथ को रोकने के लिए एक रोडमैप पेश किया है। यहां हम पाठकों के लिए उनकी पुस्तक ‘इनसाइड पार्लियामैंट: व्यूज फ्राम द फ्रंट रो’ से लिए कुछ अंश प्रस्तुत कर रहे हैं। विमुद्रीकरण एक ‘क्रांतिकारी’ परिवर्तन था।

नागरिक धैर्य रखे हुए थे क्योंकि उनका मानना था कि प्रधानमंत्री की योजना कालेधन को सामने लाने तथा भ्रष्टाचार से गम्भीरतापूर्वक लडऩे की थी। अब वे खुद को लुटा हुआ महसूस करते हैं। फिर भी, चूंकि विमुद्रीकरण एक बहुत बड़ी कार्रवाई थी जिसकी बहुत गहरी तथा कई तरह की बाध्यताएं थीं, इसे महज एक अन्य राजनीतिक असफलता कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। इसका असर कई तरह के लोगों पर पड़ा-सामान्य किसानों से लेकर मोटे बैंकरों पर, राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं से लेकर आर्थिक पंडितों पर, जो पूछ रहे थे कि क्या भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार इतनी परिपक्व तथा चतुर है कि अपने नीति निर्णयों के दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में सोच सके या ये केवल अविवेकी तथा जल्दबाजी में की गई नौटंकी थी। अब व्यर्थ किए गए साढ़े 3 वर्षों को लेकर लोगों का गुस्सा भड़क रहा है। 

मेरे लिए विमुद्रीकरण का एपिसोड अन्य मामलों में भी शिक्षाप्रद था। यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस अभी भी 2014 में मिली पराजय से झटके से उभरी नहीं है। भाजपा के डींगें मारने वाले दावों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के मामले में वह अभी भी संकोच बरत रही थी। स्पष्ट कहूं तो नोटबंदी के बाद शुरूआती दिनों में वह सकुचा रही थी तथा तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों के प्रदर्शनों में काफी आनाकानी के बाद शामिल हुई। जब संसद में गतिरोध पैदा करने की बात आई तो कांग्रेस की आंतरिक राजनीति सबके सामने खुलकर आ गई। वरिष्ठ तथा अनुभवी कांग्रेस नेताओं ने अपना-अपना खेल खेला।

आर्थिक मुद्दों पर स्पष्ट तथा जानकार आवाज होने के बावजूद पी. चिदम्बरम को संसदीय चर्चाओं से बाहर रखा गया या बाहर रहे। एक ऐसे समय में, जब हम सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे थे ये सब बहुत निराशाजनक था। शुक्र है कि अमरीकी यूनिवर्सिटियों में राहुल गांधी की टाऊन हाल स्टाइल बैठकों तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बेटे के एक बड़े विवाद में फंसने के बाद कांग्रेस में कुछ जान आई। जय हो से लेकर जय के विलाप तक भाजपा की कहानियां लगातार बिखर रही हैं। 2014 में परेशान तथा घोटालों में घिरी हुई यू.पी.ए. सरकार को आड़े हाथों लेने से भाजपा ने भ्रष्टाचार विरोधी मूड को बढ़ावा दिया और लोगों के गुस्से का दोहन किया।

अब भाजपा अध्यक्ष के ‘सन स्ट्रोक’ के बाद तथा यह खुलासा होने पर कि अच्छे दिन केवल एक कम्पनी के लिए आते दिखाई दे रहे हैं, पार्टी का तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी शब्दाडम्बर अब संघर्ष कर रहा है। अब कोई भी इसका खरीदार नहीं है। इस पर लोग हंस रहे हैं और इसका मखौल उड़ा रहे हैं। मेरा मानना है कि भाजपा तथा नरेन्द्र मोदी को 2019 में रोका जा सकता है। यह कैसे हो सकता है? मैं यहां इसके लिए तीन कदमों की विचारधारा पेश करता हूं। पहली, इसे नरेन्द्र मोदी तथा एक अकेले वैकल्पिक उम्मीदवार के बीच राष्ट्रीय स्पर्धा न बनाएं। यह भाजपा के हक में जाता है। इसकी बजाय एक राष्ट्रीय चुनाव बनाएं जिसे मोदी बनाम राज्यों में 29 मुकाबलों की तरह माना जाना चाहिए।

विपक्ष को भाजपा से विभिन्न मुद्दों पर 29 विभिन्न क्षेत्रीय मंचों से लडऩा चाहिए। चुनाव अलग-अलग राज्यों के मुद्दों और समस्याओं के साथ उसके मुहावरों और भाषाओं में लड़ा जाना चाहिए। इसे भाजपा को बीफ जैसे ध्रुवीय मुद्दों पर नहीं लडऩे देना चाहिए। दूसरी, विपक्ष इस बात पर विचार करे कि भाजपा के विजयी रथ को 2014 में कहां रोका गया था। बंगाल में ममता बनर्जी, ओडिशा में नवीन पटनायक तथा तमिलनाडु में जयललिता ने कर दिखाया। इसके अलावा हाल ही में अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने पंजाब में भाजपा को हराया। कर्नाटक में सिद्धरमैया के नेतृत्व में भाजपा पर लगाम कसी गई। 

इस तरह से 2019 में 29 में से प्रत्येक राज्य में लड़ाई लड़ी जानी चाहिए। जहां-जहां कांग्रेस मजबूत तथा जनाधार वाले नेता उपलब्ध करवा सके और कड़ी मेहनत करने को तैयार हो, वहां वह लड़ाई का नेतृत्व करे और प्रासंगिक बने। अन्यथा अपने-अपने राज्यों में जो पार्टियां मजबूत हैं उनके  कंधों पर जिम्मेदारी डाली जाए। यह एक संयुक्त प्रयास है। तीसरी, भाजपा गलत व्याख्यानों से गुमराह करने का प्रयास करेगी मगर विपक्ष को 2019 के चुनावों में मोदी सरकार की कारगुजारी को जनादेश के लिए सामने रखने हेतु अनुशासित होना होगा, न अधिक और न इससे कुछ कम। हमें नौकरियों, विमुद्रीकरण घोटाले, जल्दबाजी में लागू किए गए जी.एस.टी., किसानों की आत्महत्याओं, कीमतों तथा अर्थव्यवस्था की बात करनी चाहिए। यही वह समय है जब हमें भाजपा सरकार के रिकार्ड की समीक्षा करनी है।


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