भारत की सुरक्षा व सैन्य तैयारियों के लिए ‘ङ्क्षहद-प्रशांत क्षेत्र’ महत्वपूर्ण

punjabkesari.in Sunday, Nov 19, 2017 - 04:28 AM (IST)

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की पहली विदेश यात्रा के लिए साढ़े सात लाख की आबादी वाले अफ्रीकी सागर तटीय देश जिबूती को चुना गया, तो लोग समझे न होंगे कि उसका महत्व क्या है पर मनीला में आसियान देशों की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी और अमरीकी राष्ट्रपति की वार्ता में उभरा हिंद-प्रशांत शब्द का महत्व समझा गया।

भारत के बढ़ते कद और प्रभाव का ही यह परिणाम है कि विश्व की आधी आबादी वाला सागर क्षेत्रीय संसार आज ङ्क्षहद-प्रशांत क्षेत्र के नाम से जाना जाता है, जिससे भारत के सामरिक हित गहराई से जुड़े हैं। यदि कहा जाए कि आसियान की फिलीपींस में हुई 31वीं बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खास जलवा दिखा, तो गलत न होगा।

फिलीपींस में रह रहे भारतीय मूल के लोगों को हिन्दी में संबोधित करने से लेकर वहां जयपुर फुट द्वारा हजारों लोगों को नई जिंदगी देने वाले केंद्र में उनकी भेंट यदि मूल बैठक की ‘प्रभा’ बनी तो आस्ट्रेलिया, जापान, अमरीका के साथ भारत का चतुर्भुज शक्ति संकुल अद्भुत सामरिक उपलब्धि कही जा सकती है। आसियान में 10 सदस्य देश हैं और भारत सहित इनकी आबादी 1.85 अरब है यानि दुनिया की एक चौथाई आबादी। आसियान का कुल सकल घरेलू उत्पादन 8.8 अरब डालर है। भारत में कुल विदेशी निवेश का 17 प्रतिशत आसियान देशों से आता है और भारत ने इन देशों में 40 अरब डालर का निवेश किया है। 

आसियान हिंद प्रशांत क्षेत्र का अत्यंत महत्वपूर्ण खंड है। हालांकि हिंद प्रशांत क्षेत्र के बारे में 1952 में के.एम. पणिक्कर ने भी उल्लेख किया था लेकिन जनवरी 2007 में सागर क्षेत्रीय समरनीति के विशेषज्ञ गुरदीप खुराना ने सागर क्षेत्रीय सामरिक दृष्टि और जापान की भूमिका नामक लेख में हिंद प्रशांत क्षेत्र का व्यापक उल्लेख किया। उस शब्द का अगस्त, 2007 में भारत यात्रा पर आए जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने संसद में अपने भाषण में उल्लेख किया। यह भाषण श्ंिाजो आबे द्वारा दाराशिकोह की ‘दो सागरों का मिलन’ अवधारणा के उल्लेख हेतु भी जाना जाता है। उसके बाद यद्यपि विभिन्न विश्लेषणों में हिंद प्रशांत क्षेत्र शब्द का उपयोग हुआ, परंतु अमरीका, भारत, जापान, आस्ट्रेलिया चतुर्भुज की बैठक के समय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा इस शब्द के उपयोग से चीन में बेचैनी फैल गई और उसने कहा कि हम आशा करते हैं कि हिंद प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में यह चतुर्भुज चीन के विरुद्ध नहीं होगा। 

ङ्क्षहद प्रशांत क्षेत्र वास्तव में 3 खंडों में बंटा है। पश्चिमी हिंद प्रशांत क्षेत्र में पूर्वी अफ्रीका, लाल सागर, अदन की खाड़ी, फारस की खाड़ी, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और अंडेमान सागर तो हैं ही, साथ  ही मैडागास्कर, सेशेल्स कोमोरूस, मसकरेन द्वीप, मालदीव और छगोहा द्वीप समूह शामिल हैं। मध्य हिंद प्रशांत क्षेत्र में हिंद महासागर तथा प्रशांत को जोडऩे वाले अनेक सागर, इंडोनेशियाई द्वीप समूह, दक्षिण चीन सागर, फिलीपींस सागर, आस्ट्रेलिया के उत्तरी सागर तट पर न्यूगिनी, पश्चिमी और मध्य माइक्रोनेशिया, न्यू कैलेडोनिया, सोलोमन द्वीप, वनुआतु, फिजी और टोंगा जैसे देश आते हैं और तीसरे खंड में मध्य प्रशांत महासागर क्षेत्र में अधिकांश ज्वालामुखी बहुल द्वीप मार्शल द्वीप से लेकर मध्य व दक्षिणपूर्वी पोलिनेशिया ईस्टर द्वीप और हवाई द्वीप आते हैं। 

भारत विश्व का ऐसा एकमात्र देश है, जिसके नाम पर एक महासागर ‘ङ्क्षहद महासागर’ है। अब दूसरा बड़ा महासागर  प्रशांत भी भारत के नाम से जुड़ गया है। यह सागर क्षेत्र में भारत के नवोदय एवं भारतीय कूटनीति और समरनीति के प्रभावी मिलन का प्रतीक है। विश्व में अब सभी राजनयिक, राजनीति के आर्थिक एवं सामरिक घटनाक्रम पश्चिमी रंगशाला से हटकर पूर्व की ओर आ रहे हैं और भविष्य केवल सागर क्षेत्रीय घटनाक्रमों पर अवलंबित है। इस ओर भारत ने नवीन ऊर्जा एवं भविष्यदृष्टि के साथ ध्यान केंद्रित किया है, जिसके परिणामस्वरूप जो देश भारत के प्रति शत्रुता एवं वैमनस्य की भावना रखते हैं, उनका तनाव में आना स्वाभाविक ही है। यहां दिलचस्प बात यह है कि जबसे हिंद प्रशांत क्षेत्र का प्रयोग बढ़ा है, चीन ने एशिया प्रशांत क्षेत्र शब्द का उपयोग शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि ङ्क्षहद प्रशांत क्षेत्र सागर-क्षेत्रीय भाव सम्प्रेषित करता है, जबकि एशिया प्रशांत क्षेत्र भू-क्षेत्रीय है। जो भी हो, भारत ने अपनी कूटनीति और समरनीति का डंका तो बजा ही दिया है। 

मनीला में आसियान की शिखर बैठक आतंकवाद, क्षेत्रीय विस्तारवाद तथा भारत विरोधी अंतर्राष्ट्रीय जोड़-तोड़ के विरुद्ध भारत के नेतृत्व को प्रतिष्ठित एवं सर्वमान्य करने वाली तो सिद्ध हुई ही, साथ ही सागर के हिंदू देवता वरुण के नए पराक्रमी उदय का भी एक संकेत दे गई। भारत की सुरक्षा, अखंडता एवं सैन्य तैयारियों के लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र कितना महत्वपूर्ण है, इस बारे में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने गत 9 अगस्त को कहा था कि दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती इस समय हिंद प्रशांत क्षेत्र से है। बिना किसी देश का नाम लिए उनका संकेत दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा अपना प्रभुत्व स्थापित करने की ओर था। 

पूर्वी चीन सागर क्षेत्र में जापान के तटवर्ती क्षेत्र से सटे इलाके में चीन ने अपनी ओर से पाबंदी लगा दी है और कहा है कि उस क्षेत्र के आकाश से गुजरने वाले प्रत्येक विमान को पहले चीनी सुरक्षा अधिकारियों को अपनी पहचान बतानी होगी तभी उन्हें उस क्षेत्र से उडऩे की इजाजत मिलेगी। भारत इस स्थिति को गलत समझता है। सागर क्षेत्र से गुजरने की निर्बाध स्वतंत्रता, आकाश मार्ग से विमानों की निर्बाध आवाजाही का अधिकार, समुद्र क्षेत्रीय कानून, ये सब अंतर्राष्ट्रीय मानक हैं। हिंद प्रशांत क्षेत्र तथा हिंद महासागर भारत की सागर क्षेत्रीय समरनीति के ‘वरुण’ हैं।-तरुण विजय 


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