चीन के खिलाफ हांगकांग का क्यों साथ दे रहा ब्रिटेन ? बहुत गहरा है कनैक्शन

punjabkesari.in Sunday, Jan 31, 2021 - 01:04 PM (IST)

लंदनः चीन की नीतियांऔर रणनीतियां पूरी दुनियाके लिए मुसीबत बनी हुई हैं। भारत और अमेरिका के साथ-साथ चीन का अब ब्रिटेन से भी तनाव बढ़ा चुका है।  चीन  हांगकांग को लेकर ब्रिटेन पर भड़का हुआ  है। दरअसल हांगकांग में सुरक्षा कानून लागू होने के तुरंत बाद ही ब्रिटेन ने वहां के 54 लाख लोगों को 5 साल तक अपने देश में काम देने और रहने की इजाजत दे दी है। और यही बात चीन के गले की हड्डी बन गई है।

 
दरअसल ब्रिटेन रविवार रात से हांगकांग  निवासियों के लिए नागरिकता की योजना शुरू करने जा रहा है। इसपर चीन ने ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज (BNO) पासपोर्ट को मान्यता देने से ही इनकार कर दिया है। चीन का कहना है कि ब्रिटेन हांगकांग के लोगों को  उसके खिलाफ भड़का रहा है और नागरिकता देकर उसके अंदरुनी मामले में दखल दे रहा है।

 

 जाने क्या है मामला
हांगकांग में साल 2019 में ही राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के खिलाफ चीन विरोधी आंदोलन चलाया गया था। हांगकांग में लागू होने  लोकतंत्र के खिलाफ कहे जा रहे इस कानून के विरोध में  दुनियाभर के देश  एकजुट हो गए । पूरी दुनिया ने  चीन के इस  कानून की आलोचना। अमेरिका से लेकर भारत तक हांगकांग के आंदोलनकारियों के पक्ष में थे लेकिन ब्रिटेन इस सबसे आगे निकल गया।  उसने न केवल प्रदर्शनकारियों से संवेदना जताई,बल्कि उन्हें अपने यहां आने और काम करने का निमंत्रण तक दे दिया। 

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 ब्रिटेन का हांगकांग से ऐतिहासिक कनैक्शन
 ब्रिटेन का  हांगकांग से एतिहासिक कनैक्शन है।    हांगकांग ब्रिटिश उपनिवेश हुआ करता था। ये किस्सा शुरू हुआ  ब्रिटेन और चीन के बीच अफीम को लेकर लड़ाई से ।   दरअसल चीन को ब्रिटिश व्यापारी चाय के बदले अफीम सप्लाई करते थे। चीन में अफीम का इस्तेमाल दवाएं बनाने और खाने के लिए होता था। हालांकि अफीम वहां अवैध थी लेकिन मांग के साथ चुपके-चुपके वहां ब्रिटेन भारत से अफीम पहुंचाने लगा। यहां तक कि वहां के लोगों को इस नशे की लत लग गई। साल 1839 में अपने लोगों की हालत देखते हुए चीन के राजा डाओग्वांग ने नशे के खिलाफ युद्ध शुरू किया। छापेमारियां हुईं और नशा जब्त होने लगा।

 

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चीन पर अफीम पड़ी भारी
चूंकि ब्रिटिश सरकार को भारत से मिलने वाले राजस्व में बड़ा प्रतिशत अफीम के व्यापार से था इसलिए ब्रितानी हुकूमत भड़क गई। उन्होंने चीन में समुद्र के रास्ते सेना भेज दी। चीनी सेना उनसे लड़ाई के लिए तैयार नहीं थी। साथ ही सैनिकों को भी अफीम की लत थी। वे नशे में होने की वजह से लड़ाई नहीं कर सके। इस अफीम युद्ध में हजारों चीनी सैनिक मारे गए, वहीं ब्रिटिश सेना का नहीं के बराबर नुकसान हुआ।

 

एक समझौते ने बिगाड़ दी चीन की गेम
युद्ध के बाद साल 1842 में ब्रिटेन और चीन के बीच एक समझौता हुआ। ये इतना गैरबराबरी का था कि इसे अनइक्वल ट्रीटी के नाम से जाना जाता है।  समझौते के तहत चीन को अपने बंदरगाह ब्रिटिश व्यापारियों के लिए खोलने पड़े।  यहां तक कि अफीम के कारोबार को नुकसान पहुंचाने के लिए उसे ब्रितानी हुकूमत को बड़ा हर्जाना भी देना पड़ा। यही वो संधि है, जिसके तहत ब्रिटेन को हांगकांग पर कब्जा मिला। आगे चलकर साल 1984 में हुए नए समझौते के तहत तय हुआ कि ब्रिटेन अपने उपनिवेश हांगकांग को चीन को वापस सौंप देगा। ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर और चीन में जाओ जियांग ने साझा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें 13 सालों बाद हांगकांग चीन के पास जाना था। साल 1997 में ऐसा ही हुआ। ब्रिटेन से 155 सालों बाद हांगकांग चीन के पास पहुंचा। 

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चीन का हांगकांग के आंतरिक मामलों में दखल
चीन ने समझौते के तहत स्वायत्ता की शर्त समेत कई बातों पर हामी भरी थी, जैसे इसे विशेष प्रशासनिक क्षेत्र घोषित किया गया। चीन में कम्युनिस्ट व्यवस्था है, जबकि हांगकांग में पूंजीवादी। चीन ने हांगकांग को लेते हुए ब्रिटेन के साथ पक्का किया कि वहां के नागरिकों को जिस तरह के अधिकार थे, वो चीनी हाथों में आने के बाद भी बने रहेंगे। इस बीच एग्रीमेंट तोड़ते हुए चीन लगातार हांगकांग के आंतरिक मामलों में दखल देता रहा।  यहां तक कि उसने वहां राष्ट्रीय सुरक्षा कानून भी लगा दिया, जिससे हांगकांग के लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। यही देखते हुए इस मामले में ब्रिटिश सरकार ने दखलंदाजी की और हांगकांग के लोगों को अपने देश आने का न्यौता दिया। 


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Tanuja

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