जिसके शासन में देश की आबादी हो गई थी आधी, अपने ही परिवार को मिटा डाला...कौन है ये इतिहास की सबसे क्रूर रानी?
punjabkesari.in Sunday, Sep 28, 2025 - 06:03 AM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः इतिहास सिर्फ शक्तिशाली राजाओं और योद्धाओं की कहानियों से नहीं भरा है, बल्कि कुछ रानियों की कहानियां भी इतनी खौफनाक हैं कि आज भी उनके नाम से रूह कांप उठे। ऐसी ही एक रानी थीं मेडागास्कर की रानी रानावलोना I सत्ता में आईं इस अफ्रीकी शासिका ने क्रूरता, दमन और नरसंहार के नए कीर्तिमान स्थापित किए।
शासन की शुरुआत: यूरोपीय प्रभाव के खिलाफ कड़ा रुख
रानावलोना का शासनकाल 1828 से 1861 तक चला। इस दौर में यूरोपीय ताकतें अफ्रीका और एशिया में उपनिवेश स्थापित कर रही थीं। ब्रिटिश और फ्रांसीसी साम्राज्य मेडागास्कर पर भी नियंत्रण जमाना चाहते थे, लेकिन रानी रानावलोना ने उनका डटकर विरोध किया और देश को विदेशी कब्जे से बचा लिया। हालांकि, उनका देशभक्ति भाव सराहनीय था, परंतु अपने ही नागरिकों के प्रति उनका बर्ताव इतना अमानवीय था कि इतिहासकार उन्हें "मेडागास्कर की ब्लडी क्वीन" भी कहते हैं।
कत्लेआम से आधी हो गई थी आबादी
रानी रानावलोना का शासनकाल इतना भयावह था कि कहा जाता है कि उनके अत्याचारों के चलते मेडागास्कर की आबादी लगभग आधी हो गई थी। माना जाता है कि जब उन्होंने सत्ता संभाली थी, तब मेडागास्कर की आबादी करीब 5 मिलियन थी, लेकिन उनके शासन के अंत तक यह घटकर लगभग 2.5 मिलियन रह गई। यह गिरावट युद्ध, जबरन मजदूरी, बीमारी, भूख और जनसंहारों का परिणाम थी। उन्होंने न केवल दुश्मनों बल्कि अपने ही नागरिकों पर भी क्रूरता की सारी सीमाएं पार कर दीं।
ईसाइयों का नरसंहार और धर्म पर अत्याचार
शासन के शुरुआती वर्षों में रानी ने अपने दिवंगत पति की तरह ईसाई धर्म को स्वीकार्यता दी थी। लेकिन बाद में उन्होंने यूरोपीय मिशनरियों और स्थानीय ईसाइयों को राज-द्रोही मानना शुरू कर दिया।
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चर्चों को जलाया गया
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बाइबल रखने पर मौत की सजा दी गई
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हजारों ईसाइयों को ज़िंदा जला दिया गया या ज़बरदस्ती जहर पिलाया गया
ईसाई धर्म के प्रति नफरत उनकी धार्मिक नीति का प्रमुख हिस्सा बन गई, जिससे हजारों निर्दोष लोग मारे गए।
सड़क बनवाने के लिए 10,000 लोगों की बलि
एक और भयावह उदाहरण उनके शिकार अभियान से जुड़ा है। रानी अपने दरबारियों और परिवार के लिए एक भैंस-शिकार यात्रा पर जाना चाहती थीं, लेकिन घने जंगल के कारण रास्ता नहीं था। उन्होंने तुरंत सड़क बनवाने का आदेश दिया। हजारों नागरिकों को जबरन सड़क निर्माण में झोंक दिया गया। खाने, पानी और आराम की व्यवस्था नहीं की गई। करीब 10,000 लोग सिर्फ एक सड़क बनाने के दौरान थकावट, भूख और बीमारी से मर गए। यह घटना रानी की सोच और क्रूरता की भयावह झलक देती है।
षड्यंत्र के शक में 'टैंजेना ट्रायल' से कराई हत्या
रानी को बार-बार षड्यंत्र और तख्तापलट का डर सताता था। इसी डर में उन्होंने एक कुख्यात न्याय प्रणाली शुरू की, जिसे "टैंजेना ट्रायल" कहा जाता था।
इस परीक्षण में आरोपी को मुर्गे की खाल के 3 टुकड़े निगलने पड़ते थे फिर उसे एक जहरीला अखरोट (टैंजेना) खाने को दिया जाता था। अगर उल्टी में तीनों टुकड़े बाहर आ जाते, तो आरोपी निर्दोष माना जाता। यदि नहीं, तो मौत निश्चित थी। इतिहासकारों का कहना है कि इस प्रक्रिया में हर साल हजारों लोग मारे जाते थे, जिनमें कई निर्दोष भी होते थे।
परिवार भी नहीं था सुरक्षित: अपने ही खून का कत्ल
रानी रानावलोना की क्रूरता की हद ये थी कि उन्होंने अपने ही परिवार के सदस्यों को भी नहीं छोड़ा। अपने पति के भतीजे और बहन को भूख से मरवा दिया। एक प्रेमी को दूसरी महिला के साथ देखने पर उसका सिर काटकर भाले पर टांग दिया। राजदरबार में किसी भी प्रकार की आलोचना करने वाले को मौत का सामना करना पड़ता। रानी को सिर्फ सत्ता प्यारी थी। उनके लिए रिश्तों, धर्म और मानवता का कोई मूल्य नहीं था।
मौत और विरासत: एक विवादित इतिहास
1861 में रानी रानावलोना की मौत प्राकृतिक रूप से उनके महल में हुई। लेकिन उनके शासनकाल की खूनी विरासत आज भी इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज है। कुछ इतिहासकार उन्हें एक राष्ट्रवादी शासिका मानते हैं, जिसने विदेशी कब्जे से देश को बचाया। लेकिन अधिकांश इतिहासकार उन्हें क्रूर, निर्दयी और तानाशाह मानते हैं, जिनके शासन में लाखों लोगों की जान गई।