विदेशी ताकतों ने रोका था मोदी का "400 पार रथ" दुनिया के हर 9वें चुनाव में अमेरिका और रूस दखल

punjabkesari.in Wednesday, Jul 24, 2024 - 03:06 PM (IST)

International Desk:  लोकसभा चुनाव  2024 के नतीजों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा ने सीटों का आंकड़ा 400 के पार जाने के दावे किए थे लकिन ये आंकड़ा 300 की संख्या भी पूरी नहीं कर पाया था। परिणाम आने  के बाद भाजपा की कई बैठकों में  दिग्गज नेताओं ने चुनावों में इसके पीछे विदेशी ताकतों के दखल की बात कही । मई में लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विदेशी ताकतें भारत के आम चुनावों को प्रभावित करने में लगी हुई हैं लेकिन वो इसमें सफल नहीं हो पाएंगी। एक इंटरव्‍यू में उन्होंने यह भी दावा किया था कि। चीन आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए भारत के चुनावों में हस्‍तक्षेप करने में लगा हुआ है। ये सच भी है कि दुनिया के कई देशों के चुनावों में किसी न किसी रूप में विदेशी दखल की बात सामने आती रही है।

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PM मोदी का अमेरिका की  रिपोर्ट पर निशाना 
PM मोदी के इस बयान को कहीं न कहीं अमेरिका की उस रिपोर्ट पर निशाना भी माना जा रहा है, जिसमें मानवाधिकार, भ्रष्टाचार के आरोपी विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के साथ सीएए समेत कई मुद्दों का जिक्र था। इस रिपोर्ट में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार की आलोचना की गई थी। पिछले दिनों विदेश मंत्रालय की तरफ से भी अंतरराष्‍ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (USCIRF) की साल 2024 की रिपोर्ट पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी। इस रिपोर्ट में भारत पर 'धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के विशेष रूप से गंभीर उल्लंघनों में शामिल होने या उसे बर्दाश्त करने' का आरोप लगाया गया था। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि पश्चिमी मीडिया खुद को भारतीय चुनाव प्रक्रिया में एक पॉलिटिकल एक्‍टर मानता है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा था कि-हमारे विरोधी जिसमें यह सच है कि विदेशी ताकतें भी शामिल हैं।  कई विदेशी ताकतें भाजपा को नुकसान पहुंचना चाहती है। हमें इसे लेकर सतर्क रहना होगा। उन्होंने कहा कि विदेशी ताकतें किसी भी कीमत पर सत्तारूढ़ पार्टी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं क्योंकि वे भारत की विकास दर से नाखुश हैं।

 

दुनिया के हर 9 में से 1 चुनाव में अमेरिका-रूस का दखल
लेविन ने अपनी किताब किताब 'मेडलिंग इन द बैलेट बॉक्स: द कॉजेज एंड इफेक्ट्स ऑफ पार्टिजन इलेक्टोरल इंटरवेंशन' में लिखा है 1946 से वर्ष 2000 के दौरान 938 चुनावों का परीक्षण किया गया। इनमें से 81 चुनावों में अमेरिका, जबकि 36 चुनावों में रूस ने दखल दिया। दोनों के आंकड़े अगर मिला दिए जाएं तो अमेरिका और रूस ने 938 में से 117 चुनावों में हस्तक्षेप किया। यानी हर 9 चुनाव में से 1 चुनाव में ये दोनों देश दखल देते रहे हैं। यह स्टडी 148 देशों में करीब 1 लाख लोगों पर की गई थी।

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प्रो. लेविन की  किताब ने पूरी दुनिया में मचाया तहलका
जानते हैं चुनावों में किस तरह और क्यों विदेशी दखल दिया जाता है । चुनाव में दखल देने वालों में सबसे पहले अमेरिका, रूस और चीन के नाम सामने आते हैं। चुनावों में दखल देने के आरोप अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों पर शीतयुद्ध के जमाने से ही लगते रहे हैं। अमेरिका दक्षिण अमेरिका के देशों में तो रूस यूरोप के देशों में अपनी पसंद की सरकारें बनवाते रहे हैं। रूस ने तो 1972 में पश्चिम जर्मनी के नेता की कॉन्फिडेंस वोट हासिल करने में मदद की थी। हांगकांग यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटिक्स एंड पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में असिस्टेंट प्रोफेसर डोव एच लेविन की 2020 में एक किताब आई, जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया। यह किताब थी-Meddling in the Ballot Box: The Causes and Effects of Partisan Electoral Interventions। यह किताब 1946 से लेकर वर्ष 2000 तक के पूरी दुनिया में चुनावों में विदेशी दखल पर हुए एक अध्ययन पर आधारित है। इसके मुताबिक, यह कहा गया है कि 54 साल के दौरान अमेरिका ने कई देशों में चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा दखल दिया है। नीचे दिए ग्राफिक से समझते हैं कि किन देशों के चुनाव में किसने सबसे ज्यादा दखल दिया था।


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सरकार बदलवाने में चीन और रूस के  झूठे फंडे  
एक जर्मन पॉलिटिकल साइंटिस्ट और अलायंस 90 द ग्रींस पार्टी की सदस्य अन्ना लुहरमैन की 2019 में एक स्टडी आई। यह स्टडी वैराइटीज ऑफ डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट, स्वीडन में प्रकाशित हुई। इसमें कहा गया है कि 2019 में हर देश ने कहा है कि मुख्य राजनीतिक मुद्दों को लेकर सबसे ज्यादा झूठ बोले गए। सबसे ज्यादा झूठ फैलाने में चीन और रूस माहिर हैं। चीन ने ताइवान तो रूस ने लातविया के चुनावों में यही किया। बहरीन, कतर और हंगरी, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, स्विट्जरलैंड और उरुग्वे जैसे देशों में झूठे अफवाहों के आधार पर चुनावों को प्रभावित किया गया।
 
 चुनावों में दखल देने के तरीके
दक्षिण एशियाई यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. देवनाथ पाठक के अनुसार, 2012 में एक स्टडी आई, जिसमें दूसरे देशों के चुनावों में दखल को दो कैटेगरी में बांटा गया। पार्टिजन इंटरवेंशन और प्रॉसेस इंटरवेंशन। यह थ्योरी कॉर्सटैंज और मैरीनोव ने दी थी। पार्टिजन इंटरवेंशन थ्योरी के मुताबिक विदेशी ताकतें जिस देश में दखल देती हैं, उस देश के किसी एक पार्टी का समर्थन करती हैं और उसके चुनाव जितवाने में मदद करती हैं। वहीं, प्रॉसेस ऑफ इंटरवेंशन थ्योरी के तहत विदेशी ताकतें लोकतांत्रिक नियमों का समर्थन करती हैं, चाहे जो भी जीते।

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रूसी खुफिया एजेंटों ने फेसबुक का लिया था सहारा
2018 में अमेरिकी सीनेट ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि 2016 में डोनाल्ड ट्रंप को जितवाने के लिए रूसी खुफिया एजेंटों ने फेसबुक विज्ञापनों का इस्तेमाल चुनावों को प्रभावित किया था। रूसी खुफिया एजेंट दुनिया में विरोधियों की हत्याएं करने में माहिर तो माने जाते ही हैं, मगर वो विरोधी देशों में चुनावों को भी प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। 'मेडलिंग इन द बैलेट बॉक्स: द कॉजेज एंड इफेक्ट्स ऑफ पार्टिजन इलेक्टोरल इंटरवेंशन' के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने टिकटॉक को बैन करने या उसे बेचने का दबाव बनाने के एक बिल पर दस्तखत किए थे। अमेरिकी संसद का यह मानना था कि चीन की सत्तारूढ़ कम्यूनिस्ट पार्टी ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और मतदाताओं को प्रभावित किया था।

 

चीन की साइबर आर्मी चुनावों में कर रही बेड़ा गर्क
सेबेस्टियन व्हाइटमैन की किताब 'द डिजिटल डिवाइड इन डेमोक्रेसी' में कहा गया है कि माइक्रोसॉफ्ट ने भी अपनी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि चीनी सरकार के समर्थन से चीन की साइबर आर्मी आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों, दक्षिण कोरिया और भारत के चुनावों को प्रभावित कर सकती है। उत्तर कोरिया की मदद से चीन दूसरे देशों में अपनी पसंद की सरकार बनवा रहा है। ताइवान में चीन ने यह प्रयोग करने की कोशिश की थी, मगर ताइवानी जनता ने चीन विरोधी राष्ट्रपति चुना है।


एशिया के इन देशों के चुनावों में भी दखल के आरोप
ऐसा नहीं है कि चुनावों में दखल के आरोप सिर्फ अमेरिका, रूस या चीन पर ही लगते रहे हों। भारत पर भी मालदीव, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल के चुनावों में दखल देने के आरोप लगते रहे हैं। हालांकि, ये आरोप कभी साबित नहीं हो पाए। ये आरोप भारत विरोधी नेताओं श्रीलंका में राजपक्षे, मालदीव में अब्दुल्ला यामीन और बांग्लादेश में खालिदा जिया लगाती रही हैं। यूरोपियन यूनियन ने भी बीते जून में यूरोपीय संसद के लिए होने वाले चुनावों में विदेशी दखल की आशंका को लेकर एक रिपोर्ट जताई थी।
 


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Content Writer

Tanuja

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