इस मुस्लिम देश में मुसलमान लड़कियों को दी गई दूसरे धर्म में शादी की खुली छूट
punjabkesari.in Monday, Apr 14, 2025 - 04:57 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्क: इस्लामिक देशों की छवि अक्सर एक जैसे कठोर कानूनों और सामाजिक बंदिशों से जुड़ी होती है। खासकर महिलाओं को लेकर कई देशों में ऐसे नियम हैं जो उन्हें समान अधिकार देने से रोकते हैं। इनमें से एक बड़ा मुद्दा है मुस्लिम महिलाओं का गैर-मुस्लिम पुरुषों से शादी करने का हक। ज्यादातर इस्लामिक देशों में मुस्लिम लड़कियों को किसी दूसरे मजहब के लड़के से शादी करने की इजाजत नहीं होती। लेकिन इसी बीच एक देश ऐसा है जिसने इस परंपरा को तोड़ा और मुस्लिम महिलाओं को उनकी निजी जिंदगी पर फैसला लेने का अधिकार दिया है।
ट्यूनीशिया: आज़ादी की दिशा में बड़ा कदम
यह देश न तो कोई खाड़ी देश है और न ही इसे किसी इस्लामिक कट्टरपंथ से जोड़ा जा सकता है। यह है उत्तरी अफ्रीका का छोटा मगर आधुनिक सोच वाला देश ट्यूनीशिया (Tunisia)। ट्यूनीशिया ने 2017 में ऐसा ऐतिहासिक फैसला लिया जिससे पूरी दुनिया की नजरें उस पर टिक गईं। यहां की सरकार ने महिलाओं को यह कानूनी अधिकार दिया कि वे बिना किसी धर्म परिवर्तन के किसी भी धर्म के व्यक्ति से विवाह कर सकती हैं।
1973 के कानून को कहा अलविदा
ट्यूनीशिया में पहले एक पुराना नियम 1973 से लागू था जिसके अनुसार कोई गैर-मुस्लिम पुरुष तभी किसी मुस्लिम लड़की से शादी कर सकता था जब वह इस्लाम कबूल कर ले। इस कानून के चलते कई जोड़े या तो शादी नहीं कर पाते थे या फिर धर्म परिवर्तन का दबाव सहते थे। लेकिन 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति बेजी केड एसेब्सी ने इस पुराने और रूढ़िवादी कानून को हटाकर महिलाओं को धार्मिक स्वतंत्रता और विवाह की आज़ादी दी।
कट्टरपंथियों ने किया विरोध, लेकिन सरकार नहीं झुकी
इस बदलाव का विरोध भी हुआ। कट्टरपंथी मुस्लिम मौलवियों और धार्मिक संगठनों ने सरकार के फैसले की तीखी आलोचना की। उनका कहना था कि यह फैसला ट्यूनीशिया को बाकी इस्लामिक देशों से अलग और कमजोर बना देगा। लेकिन सरकार ने साफ कहा कि महिलाओं के अधिकारों पर समझौता नहीं होगा। यही नहीं, अब ट्यूनीशियाई पुलिस और प्रशासन भी ऐसी शादियों को पूरा सुरक्षा और कानूनी संरक्षण देते हैं।
महिलाओं को मिली असल आज़ादी
ट्यूनीशिया आज उन चंद इस्लामिक देशों में से एक है जहां महिलाओं को वाकई समान अधिकार मिले हैं। यहां की महिलाएं नौकरी, शिक्षा और शादी जैसे बड़े फैसलों में पूरी तरह आज़ाद हैं। ट्यूनीशिया की इस पहल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया है। इस फैसले ने यह साबित कर दिया कि इस्लाम और आधुनिक सोच एक साथ चल सकते हैं, अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति और सामाजिक समझदारी हो।