3 दिन में हिल गई गई दुनिया! चुनावी हार...विश्वास मत और जनाक्रोशः तीन देशों के PM ने छोड़ा पद
punjabkesari.in Thursday, Sep 11, 2025 - 12:05 PM (IST)

International Desk: दुनिया की राजनीति इन दिनों बड़े उथल-पुथल से गुजर रही है। सिर्फ तीन दिनों के अंदर तीन अहम देशों जापान, फ्रांस और नेपाल के प्रधानमंत्रियों को अपना पद छोड़ना पड़ा। यह घटनाएँ एशिया से लेकर यूरोप तक राजनीतिक अस्थिरता की नई तस्वीर पेश कर रही हैं।
जापान: शिगेरू इशिबा ने इस्तीफा दिया
7 सितंबर 2025 को जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने इस्तीफा दे दिया। हाल ही में हुए हाउस ऑफ काउंसलर्स (संसद के उच्च सदन) के चुनाव में उनकी पार्टी और गठबंधन को करारी हार मिली। गठबंधन केवल 75 सीटें जीत सका, जबकि बहुमत के लिए इससे कहीं ज्यादा सीटें चाहिए थीं। चुनावी हार के बाद पार्टी के भीतर से ही इशिबा के खिलाफ विरोध की लहर उठी। लगातार बढ़ते दबाव के चलते उन्होंने पद छोड़ने का ऐलान कर दिया।इस इस्तीफे के साथ ही जापान में राजनीतिक अनिश्चितता बढ़ गई है और नए प्रधानमंत्री की तलाश तेज हो गई है।
फ्रांस: सत्ता से बाहर हुए फ्रांस्वा बायरो
8 सितंबर 2025 को फ्रांस के प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरो को संसद में विश्वास मत (No-Confidence Motion) का सामना करना पड़ा। वोटिंग में उनके पक्ष में केवल 194 वोट पड़े, जबकि विरोध में 364 सांसद खड़े हो गए। बायरो ने संसद को समझाने की कोशिश की थी कि देश का बढ़ता कर्ज रोकना जरूरी है और इसी कारण उनकी सरकार ने कड़े बजट उपाय (Austerity Measures) पेश किए थे। लेकिन जनता और सांसदों ने इसे नकार दिया और सरकार पर भरोसा जताने से इनकार कर दिया। इस हार के बाद बायरो ने इस्तीफा दे दिया। अब राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को चौथी बार नया प्रधानमंत्री चुनना पड़ेगा।
नेपाल: Gen-Z खा गए ओली की सरकार
9 सितंबर 2025 को नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को भी इस्तीफा देना पड़ा। वजह बनी Gen-Z युवाओं (18 से 28 साल के) की अगुवाई में हुए हिंसक प्रदर्शन । प्रदर्शनकारियों का गुस्सा भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर बैन के फैसले को लेकर फूटा। जधानी काठमांडू समेत कई शहरों में सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया। हालात इतने बिगड़े कि संसद भवन तक में आग लगा दी गई। स्थिति बेकाबू होने पर ओली को इस्तीफा देना पड़ा और सेना ने कई जगहों पर कर्फ्यू लागू कर दिया। इन घटनाओं ने साबित किया है कि चाहे एशिया हो या यूरोप, जनता और संसद का दबाव किसी भी सरकार को टिकने नहीं देता।