UN को सीधी टक्कर!  दुनिया पर कब्जे को चीन ने खेला बड़ा दाव, पाकिस्तान समेत 33 देश हुए शामिल

punjabkesari.in Monday, Jun 02, 2025 - 01:52 PM (IST)

International Desk: चीन ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र के समानांतर एक नया अंतरराष्ट्रीय मंच स्थापित कर दुनिया को चौंका दिया है। इस मंच का नाम है  International Organization for Mediation (IOMED) जिसका उद्देश्य वैश्विक विवादों को बातचीत और मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाना बताया जा रहा है। इस नई पहल के पीछे चीन की वैश्विक सत्ता संतुलन को बदलने और वैश्विक शासन में अपनी भूमिका को मजबूत करने की रणनीति मानी जा रही है।
 

85 देशों की भागीदारी, 33 देश बने संस्थापक सदस्य 
 हांगकांग में आयोजित IOMED स्थापना सम्मेलन में एशिया, अफ्रीका, यूरोप और लैटिन अमेरिका के 85 देशों और लगभग  20 अंतरराष्ट्रीय संगठनों  के करीब 400 वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन के दौरान 33 देशों ने औपचारिक रूप से समझौते पर हस्ताक्षर कर संस्थापक सदस्य का दर्जा हासिल किया। इनमें पाकिस्तान, इंडोनेशिया, लाओस, कंबोडिया और बेलारूस जैसे देश शामिल हैं।


चीन का दावा-शांतिपूर्ण समाधान का प्रतीक होगा IOMED 
 चीनी विदेश मंत्री वांग यी जो कि सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) की केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य भी हैं, ने कहा कि  “IOMED का गठन अंतरराष्ट्रीय कानून के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह वैश्विक विवादों को सुलझाने के लिए एक शांतिपूर्ण और संवादात्मक माध्यम प्रदान करेगा।” वांग यी ने IOMED को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों का विस्तार बताया और यह भी कहा कि यह वैश्विक मध्यस्थता की कमी को दूर करेगा।


संयुक्त राष्ट्र को सीधी चुनौती 
कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि यह मंच चीन की उस नीति का हिस्सा है जिसके ज़रिए वह  संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं को चुनौती देने और उन्हें कमजोर करने की रणनीति पर काम कर रहा है। विश्लेषकों के अनुसार, IOMED चीन के “शांतिपूर्ण वैश्विक नेता” की छवि को गढ़ने का प्रयास है, जिससे विकासशील देशों के बीच उसका प्रभाव और वर्चस्व बढ़े। ग्लोबल टाइम्स से बातचीत में  हांगकांग एंड मकाऊ स्टडीज़ एसोसिएशन  के सदस्य चू कार-किन ने कहा कि  “IOMED एक आधिकारिक प्रतीक है जो दिखाता है कि दुनिया को संघर्षों से बाहर निकालने के लिए चीन अब ‘कूटनीतिक नेतृत्व’ देने को तैयार है।”

 

भारत की स्थिति क्या होगी? 
भारत ने इस मंच में न तो भाग लिया और न ही किसी भी आधिकारिक प्रतिक्रिया दी है। भारत पहले से ही संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सुधारों की मांग करता रहा है और वैश्विक संस्थानों में अधिक निष्पक्षता और प्रतिनिधित्व की वकालत करता है। विश्लेषकों के अनुसार, भारत जैसी बड़ी लोकतांत्रिक शक्ति IOMED जैसे मंचों से दूरी बना सकती है, क्योंकि ये चीन के वर्चस्व वाले एकपक्षीय ढांचे में काम कर सकते हैं।


  IOMED की सफलता पर संदेह 
हालांकि इस नए मंच की स्थापना को चीन की एक बड़ी कूटनीतिक चाल माना जा रहा है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी स्वीकृति और प्रभावशीलता अभी अनिश्चित है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, जब तक अमेरिका, यूरोपीय संघ, भारत और जापान जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश इस मंच को मान्यता नहीं देते, तब तक इसका असर सीमित रह सकता है। IOMED की स्थापना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चीन अब केवल आर्थिक महाशक्ति नहीं, बल्कि एक वैकल्पिक वैश्विक व्यवस्था का निर्माता बनने की ओर बढ़ रहा है। यह संयुक्त राष्ट्र के प्रभुत्व को चुनौती देने की दिशा में एक ठोस कूटनीतिक कदम है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि दुनिया के प्रमुख लोकतांत्रिक देश इस पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं और वैश्विक शासन का संतुलन किस दिशा में बदलता है।
 
 


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Content Writer

Tanuja

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