चीन ने तिब्बत पर कसा शिकंजा: नेपाल सीमा पर लगाया सख्त पहरा, जान बचाकर भागना भी मुश्किल
punjabkesari.in Thursday, Feb 27, 2025 - 07:20 PM (IST)
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Bejing: चीन ने तिब्बत-नेपाल सीमा पर सुरक्षा और कड़ी कर दी है, जिससे तिब्बती शरणार्थियों के नेपाल और भारत भागने का रास्ता लगभग बंद हो गया है। तिब्बती भाषा, संस्कृति और धर्म पर लगातार दमन की नीति अपनाते हुए चीन अब तिब्बतियों को जबरन चीनी पहचान में ढालने की कोशिश कर रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन ने नेपाल के कोराला बॉर्डर क्रॉसिंग प्वाइंट को हाई-टेक निगरानी क्षेत्र में तब्दील कर दिया है। पहले यहां मस्तंग के स्थानीय निवासियों को विशेष पास के जरिए आने-जाने की अनुमति थी, लेकिन अब चीन ने इस इलाके में एक पूरा नया शहर बसा दिया है, जिससे नेपाल में प्रवेश बिना चीनी अनुमति के असंभव हो गया है। नेपाल ने भी अपने इलाके में नए इमिग्रेशन प्वाइंट बना दिए हैं, जिससे तिब्बती शरणार्थियों की आवाजाही पूरी तरह से प्रतिबंधित हो गई है।
सीमा पर बस्तियां और निगरानी चौकियां
नेपाल-तिब्बत के बीच लगभग 4,000 किलोमीटर लंबी सीमा है, जिसमें कुल 14 बॉर्डर क्रॉसिंग प्वाइंट हैं। चीन ने अपर मस्तंग के कोराला बॉर्डर पर नए कस्टम केंद्र, क्वारंटाइन सेंटर, पार्किंग सुविधाएं, होटल और निगरानी चौकियां बनाई हैं। इसका मुख्य उद्देश्य तिब्बती शरणार्थियों को भागने से रोकना और तिब्बती बौद्ध मठों की गतिविधियों पर सख्त निगरानी रखना है।
दलाई लामा के पुनर्जन्म से चिंतित चीन
तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा निर्वासन में भारत में रह रहे हैं और तिब्बती संस्कृति व धर्म को बचाने के प्रयास कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने तिब्बती भिक्षुओं को धर्म ग्रंथों का गहराई से अध्ययन करने की सलाह दी थी। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि **15वें दलाई लामा का पुनर्जन्म तिब्बत के बाहर हो सकता है जिससे चीन की चिंता बढ़ गई है। चीन ने घोषणा की है कि अगला दलाई लामा केवल चीन में पैदा होगा और सरकार ही उसे मान्यता देगी।** यह दावा तिब्बतियों के लिए अस्वीकार्य है और इससे तिब्बत में व्यापक विद्रोह की आशंका बढ़ गई है। इसी कारण चीन ने नेपाल में स्थित शक्तिशाली बौद्ध मठों की गतिविधियों को सीमित करने के लिए नए प्रतिबंधों की लिस्ट तैयार की है।
तिब्बती भाषा और संस्कृति पर हमले
हालांकि चीन का संविधान अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा और संस्कृति बनाए रखने की अनुमति देता है, लेकिन तिब्बत में इसका पालन नहीं किया जाता। रिपोर्ट्स के अनुसार ब्बती भाषा में पढ़ाने वाले स्कूलों को तेजी से बंद किया जा रहा है। चीन का लक्ष्य तिब्बतियों को उनकी जड़ों से पूरी तरह अलग करना है। न केवल उनकी भाषा और धर्म पर हमले किए जा रहे हैं, बल्कि उनकी भौगोलिक स्वतंत्रता भी छीनी जा रही है। नेपाल के साथ सीमा पर बनाई गई नई निगरानी व्यवस्था और संरचनाएं तिब्बतियों की आवाजाही को खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम है।