तुर्की ने 15 लाख लोगों को उतारा था मौत के घाट, जानिए वो कहानी जिससे अब भी कांप उठता है इतिहास

punjabkesari.in Friday, May 16, 2025 - 04:41 PM (IST)

नेशनल डेस्क: तुर्की एक बार फिर चर्चा में है। वजह है उसका पाकिस्तान के प्रति झुकाव और भारत के समर्थन के बावजूद पाकिस्तान को सैन्य मदद देना। इसी बीच फिर से लोगों की जुबान पर एक पुरानी, लेकिन बेहद खौफनाक घटना लौट आई है आर्मेनियाई नरसंहार। ये वो त्रासदी है जिसे दुनिया के दर्जनों देश "Genocide" यानी नरसंहार मानते हैं, लेकिन तुर्की आज भी इससे इंकार करता है। 24 अप्रैल 1915 को ऑटोमन साम्राज्य (आज का तुर्की) ने हजारों आर्मेनियाई बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया। इसके बाद शुरू हुआ नरसंहार, जो लगभग दो साल (1915-1917) तक चला। करीब 15 लाख आर्मेनियाई लोगों को या तो फांसी दी गई या रेगिस्तान में पैदल चलाकर भूखा-प्यासा तड़पाकर मार डाला गया।

दो चरणों में चला खून का खेल

नरसंहार एक योजनाबद्ध प्रक्रिया थी।

  • पहला चरण: आर्मेनियाई पुरुषों को तलाशकर मारा गया।

  • दूसरा चरण: महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाया गया। कई गांव जलाए गए, महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और छोटे-छोटे बच्चों को भूख से मरने के लिए रेगिस्तान में छोड़ दिया गया।

इस पैदल यात्रा को इतिहास में "डेथ मार्च" कहा गया, जहाँ हज़ारों लोग रास्ते में ही मर गए।

क्यों निशाने पर आए थे आर्मेनियाई लोग?

19वीं सदी के आखिर तक आर्मेनियाई लोग तुर्की में एक अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय के रूप में रहते थे। वे पढ़े-लिखे और संपन्न थे। जैसे-जैसे राष्ट्रवाद बढ़ा, तुर्की में गैर-मुस्लिमों को लेकर अविश्वास गहराता गया। ऑटोमन शासकों को शक था कि ये लोग रूस के साथ मिलकर षड्यंत्र कर रहे हैं। इसी शक ने पूरे समुदाय को मिटा देने का तर्क तैयार कर दिया।

लूट, बलात्कार और सामूहिक अत्याचार

नरसंहार सिर्फ हत्या नहीं था, बल्कि यह सामूहिक अमानवीयता का चेहरा था।

  • महिलाओं के साथ खुलेआम बलात्कार हुए

  • घरों में घुसकर संपत्ति लूटी गई

  • बच्चों को भूख से मरने के लिए रेगिस्तान में भेज दिया गया

  • गांव के गांव तबाह कर दिए गए

यह सब सरकार की निगरानी में, आदेश पर किया गया। कोई बचा नहीं — न बूढ़ा, न बच्चा।

दुनिया ने माना, तुर्की आज भी इंकार करता है

फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, रूस और अमेरिका जैसे करीब 30 से ज्यादा देश इसे नरसंहार मानते हैं। साल 2021 में अमेरिका ने आधिकारिक रूप से इसे "Armenian Genocide" कहा, तो तुर्की तिलमिला गया।राष्ट्रपति जो बाइडेन के फैसले पर तुर्की ने विरोध जताया, लेकिन अमेरिका ने अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया। भारत ने अब तक आधिकारिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन तुर्की की पाकिस्तानपरस्ती से लोगों में नाराजगी दिख रही है। सोशल मीडिया पर #BoycottTurkey जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।


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Content Editor

Ashutosh Chaubey

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