वायु प्रदूषण को लेकर पूरे साल हुई फजीहत, एन.जी.टी. और हाईकोर्ट से भी पड़ी फटकार

punjabkesari.in Tuesday, Dec 31, 2019 - 02:34 PM (IST)

चंडीगढ़ (विजय गौड़): वायु प्रदूषण एक ऐसा मुद्दा है जिसके लिए हरियाणा सरकार को पूरे वर्ष फजीहत का सामना करना पड़ा। प्रदेश के कुछ जिले तो ऐसे रहे जहां पर वायु की गुणवत्ता का स्तर पूरे देश में सबसे खराब रहा। यही नहीं,कभी नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तो कभी केंद्र सरकार से बार-बार वायु प्रदूषण पर नियंत्रण न रख पाने से हरियाणा को फटकार लगती रही। 


देश की राजधानी दिल्ली में इस साल फिर वायु प्रदूषण के स्तर ने कईं रिकॉर्ड बना डाले। जिस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सीधे तौर पर हरियाणा और पंजाब को जिम्मेदार ठहराया। खासकर हरियाणा को केजरीवाल ने आड़े हाथों लिया। जिससे साबित हो गया कि वायु प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए जो एक्शन प्लान तैयार किया गया था उस पर अधिकारियों ने गंभीरता से काम नहीं किया।

 

एन.जी.टी. के निर्देशों का कोई असर नहीं
एन.जी.टी. ने 30 जुलाई को हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। वायु प्रदूषण का स्तर बढऩे के मामले पर एन.जी.टी. ने सख्ती के साथ न सिर्फ उद्योंगों की जांच का आदेश दिया, बल्कि कहा कि पर्यावरणीय क्षति वसूलने में यह भी हिस्सा जोड़ें कि उद्योगों के जरिए कितना वायु प्रदूषण किया जा रहा है। इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने इस संबंध में राज्य सरकार को रिपोर्ट देने को भी कहा था। प्रदेश सरकार द्वारा रिपोर्ट तो दी गई लेकिन उसके बाद कोई सख्त फैसले नहीं लिए गए।

 

16 जिलों के स्कूल बंद करने पड़े
3 नवम्बर को वायु प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया था कि प्रदेश के 16 जिलों में स्कूलों को 2 दिन के लिए बंद करने के निर्देश तक जारी करने पड़े। करनाल, जींद, फरीदाबाद, पानीपत, गुरुग्राम, कुरुक्षेत्र, झज्जर, हिसार, सोनीपत, रोहतक, पलवल, कैथल, भिवानी, फतेहबाद, महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी जिलों के नाम शामिल थे। इन सभी जिलों के प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में 2 दिन अवकाश रहा। इनमें से गुरुग्राम, फरीदाबाद, फतेहबाद, जींद और करनाल में पी.एम.-2.5 का आंकड़ा 500 के पार तक पहुंच गया था।

 

सड़कों पर उतरे लोग
प्रदेश में वायु प्रदूषण का मुद्दा इतना गंभीर रहा कि सरकार को नींद से जगाने के लिए लोगों को सड़कों पर उतरना पड़ा। खासकर एन.सी.आर. में स्थिति काबू से इतनी बाहर हो गई कि गुरुग्राम में लोगों ने विरोध स्वरूप काला दिवस मनाया। जिसमें स्कूली बच्चे और डाक्टर्स काले कपड़े पहनकर सड़कों में विरोध प्रदर्शन करते हुए नजर आए। केवल गुरुग्राम ही नहीं, बल्कि सोनीपत और करनाल में भी लोगों ने इसी तरह से सरकार के खिलाफ अपना विरोध प्रकट किया।

 

नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के दावे भी फेल
उच्चतम न्यायालय द्वारा बार-बार नसीहत दिए जाने के बावजूद यमुना और घग्गर नदी को इस साल भी पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त नहीं किया जा सका। इस बारे में उच्चतम न्यायालय द्वारा वायु की गुणवत्ता, पेयजल और  कचरा निष्पादन के मुद्दों पर हरियाणा सरकार को नोटिस भी जारी किया था। साथ ही केंद्र से कहा था कि दिल्ली-एन.सी.आर. में प्रदूषण से निपटने के लिए 10 दिन के भीतर स्मॉग टावर लगाने के बारे में ठोस निर्णय लिया जाए।  शीर्ष अदालत ने प्रदूषण से निबटने के मामले में हरियाणा सहित कुछ अन्य राज्यों के प्रदर्शन पर नाराजगी व्यक्त की और पूछा कि क्यों नहीं आपको प्रभावित व्यक्तियों को मुआवजा देने का निर्देश दिया जाना चाहिए।

 

6,630 पराली जलाने के मामले आए
किसानों द्वारा पराली जलाए जाने के मामले में एक बार फिर प्रदेश सरकार को पूरी तरह कामयाबी नहीं मिल पाई। अगस्त में एच.एस.पी. सी.बी. ने ऐसे सैंकड़ों गांवों की सूची जारी की जहां पिछले साल सबसे अधिक पराली जलने के मामले सामने आए थे। 

 

जिसका मकसद था कि इन गांवों में पहले से ही स्थिति को संभाल लिया जाए लेकिन बावजूद इसके हरियाणा में इस साल 30 नवम्बर तक पराली जलने के 6,630 मामले दर्ज किए गए। जिसके लिए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य के चीफ सैक्रेटरी को तलब कर लिया।

 

5 जिलों में बंद रखने पड़े निर्माण कार्य
हरियाणा के 5 जिलों में वायु प्रदूषण का स्तर इतना अधिक हो गया कि वहां सभी प्रकार के निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई। इसके साथ इसी तरह का ऑर्डर कोल,फ्यूल इंडस्ट्रीज और हार्ड मिक्स प्लांट्स के लिए भी जारी किया गया। ये आदेश दिल्ली-एन.सी.आर. में प्रदूषण का स्तर बढऩे पर ई.पी.सी.ए. की ओर से जारी किए गए। ई.पी.सी.ए. के ये निर्देश गुरुग्राम, फरीदाबाद, भिवानी, सोनीपत और बहादुरगढ़ जिलों में लागू हुए। साथ ही बच्चों पर वायु प्रदूषण का असर कम हो इसके लिए स्कूलों में आउटडोर गतिविधियां न करवाने के भी निर्देश दिए गए।

 

मीटिंग तक सीमित रही कार्रवाई
एक तरफ जहां जहरीली हवा से लोग परेशान रहे वहीं, दूसरी ओर हरियाणा स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (एच.एस.पी.सी.बी.) के अधिकारी पूरा साल मीटिंग में ही व्यस्त रहे। एच.एस.पी.सी.बी. ने मीटिंग्स में जो भी फैसले लिए उनमें से अधिकांश केवल कागजी कार्रवाई बनकर रह गए। पॉल्यूशन फैलाने इंडस्ट्रीज पर शिकंजा कसने के मामले में भी अधिकारियों ने केवल मीटिंग्स में ही बड़े-बड़े दावे किए।


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pooja verma

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