‘मैं अटल हूं’ के लिए हां करने में 7-8 दिन लगे : पंकज त्रिपाठी

punjabkesari.in Thursday, Jan 11, 2024 - 09:51 AM (IST)

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। डायरेक्टर रवि जाधव के निर्देशन में बनी फिल्म 'मैं अटल हूं' लंबे समय से सुर्खियों में हैं। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की इस बायोपिक में उनका किरदार अभिनेता पंकज त्रिपाठी निभा रहे हैं। फिल्म देश के कद्दावर राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी जी के राजनीतिक संघर्षों के बीच उनके जीवन के अनदेखे पहलुओं को छुने की कोशिश करेगी। यह फिल्म 19 जनवरी 2024 को सिनेमाघरों में दस्तक देगी। ऐसे में फिल्म के बारे में निर्देशक रवि जाधव, प्रोड्यूसर विनोद भानुशाली और संदीप सिंह, एंव पंकज त्रिपाठी ने पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स/जगबाणी/हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...

 

पंकज त्रिपाठी

Q. अटल बिहारी वाजपेयी जी का किरदार सिर्फ आप कर सकते हैं, इस बात से आप कितने सहमत हैं?   
- मैं सहमत हूं, मुझे समझ आया कि प्रोड्यूसर ने मुझे ही इसके लिए क्यों चुना। एक होता है अभिनय और दूसरा होता है आपके निजी जीवन का आचरण। इस किरदार के लिए आपका आचरण और पृष्ठभूमि बहुत जरूरी थी क्योंकि वो एक व्यक्तित्व थे। सिर्फ एक मशहूर व्यक्ति नहीं थे। एक पॉपुलर व्यक्ति, खिलाड़ी होना और एक व्यक्तित्व होने में अंतर है। आचरण के हिसाब से मैं शायद इन्हें पसंद आया होऊंगा। मैं फिल्मों में तो जरूर काम करता हूं लेकिन मेरा आचरण फिल्मी नहीं है। मैं आलतू-फालतू चीजों में रहता ही नहीं हूं। बड़ा अमाउंट मिलने के बावजूद, मैं  किसी प्रोडक्ट से नहीं जुड़ता हूं क्योंकि मेरा साफ मानना है कि जब मैं ही इसे अपने जीवन में प्रयोग नहीं करूंगा, तो इसका प्रचार कैसे करूं। तो कहीं न कहीं अटल जी के व्यक्तित्व से मेरा आचरण निर्माता को मिलता-जुलता लगा होगा।  

 

Q. फिल्म का ऑफर मिलने के बाद आपने शुरुआत में ही हां कर दिया था?  
- नहीं... फिल्म को हां करने में मुझे करीब 7-8 दिन लगे थे। उन दिनों मेरे दिमाग में चल रहा था कि क्या मैं फिल्म के साथ न्याय कर पाऊंगा? मैं ही क्यों? मेरे प्रिय नेता रहे हैं तो कहीं मिमिक्री करनी पड़े तो क्या होगा? स्क्रिप्ट कैसी होगी? मेरी संदीप से दूसरी मुलाकात थी जब उन्होंने पोस्टर दिखाया। पोस्टर देखकर मैंने कहा कि ये कौन है? तो उन्होंने कहा कि ये आप हैं? मैंने कहा कि मैं तो हूं लेकिन मैं कहां से हूं। तो बस शुरुआत में यही सब हुआ लेकिन हमने पूरी ईमानदारी से अटल जी के व्यक्तित्व पर फिल्म बनाई है। ये सिर्फ एक लेखक और निर्देशक का नजरिया है कि हम उनके जीवन को ऐसे से देखते हैं और दिखाना चाहते हैं? 

 

Q. अटल जी की कौन सी खासियत आप जीवन में उतारना चाहेंगे? और आपकी उनके साथ पहली मेमोरी कौन सी है?
- आप जितने बड़े होते हैं, उतने सहने की शक्ति बढ़ाते जाइए.. ये अटल जी ने कहा था। इस पर काम चल रहा है और ये आवश्यक है। इसके बिना आप परेशान भी रहेंगे। उनकी पहली मेमोरी के बारे में बात करें तो उन्हें दूर से रैली में सुना था। इससे पहले भईया बताते थे कि इन्हें पढ़ो क्योंकि वो उन्हें सुनने भी जाते थे। पाञ्चजन्य भी घर पर आता था तो उसमें उनका लेख भी पढ़ा था। अटल जी उस जमाने के स्टार नेता थे, जो बिना किसी सोशल मीडिया के रियल वर्ल्ड में पब्लिक से सीधा कनेक्ट होते थे। 1977 में बॉबी फिल्म रिलीज होने के बावजूद रामलीला मैदान में खचाखच भीड़ थी। उनके निकलने की जगह नहीं थी तो वो  जनता के बीच से पैदल निकलकर मंच तक पहुंचे थे। 

 

‘जब इसपर काम शुरु हुआ तो सबसे पहले मेरे मन में ख्याल आया था कि इसको हम पॉलिटिकल फिल्म कैसे न बनाएं’ रवि जाधव 

Q. इस फिल्म में आप अटल बिहारी बाजपेयी जी के व्यक्तित्व के किस भाग को दिखाएंगे? 
A- जब इसपर काम शुरु हुआ तो सबसे पहले मेरे मन में यही ख्याल आया था कि इसको हम पॉलिटिकल फिल्म कैसे न बनाएं। हमारा मानना था कि एक इंसान की कहानी आपको बतानी है, जिनका सफल राजनीतिक करियर रहा। हमारे भाग्य से यह कहानी ऐसे इंसान की थी, जो गांव से आता है और देश का प्रधानमंत्री बनता है। तो राजनीति कहीं न कहीं इसका एक प्रमुख हिस्सा बना गया, जिसे आप नजरअंदाज नहीं कर सकते। कहानी लिखते समय दिमाग में एक ही सवाल था कि हमें राजनीति में न जाते हुए और उनका राजनीतिक सफर ध्यान में रखते हुए सिर्फ उनकी कहानी बतानी है, जो जिंदगी में अपने तत्वों, विचार और सकारात्मकता की वजह से इतने कामयाब हुए। अगर हम लोग सोचते कि अटल जी का राजनीतिक सफर स्क्रीन पर दिखाना है, तो हमारी कहानी और सोच शायद अलग होती। यह हमारे लिए बड़ा चैलेंज था। 

 

Q. ऐसा कभी हुआ कि आप फिल्म की कहानी से भटक गए?  
A- हां ऐसा होता था क्योंकि अटल जी कि जिंदगी में इतने महत्वपूर्ण किस्से व प्रेरणात्मक घटनाएं हुई हैं, कि आपको लगेगा ही कि ये भी जरूरी है। ये अच्छा है और इसे बताना तो जरूरी है। ऐसा कई बार हुआ जब मैं उलझन की स्थिति में था लेकिन इसमें अनुभव बहुत काम आया। 2011 में मैंने फिल्म 'बालगंधर्व' की थी, जिसे तीन राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे। वो दिग्गज गायक की बायोग्राफी थी,  जिसकी शुरुआत में मैं भूल गया था कि बाल गंधर्व बहुत बड़े सिंगर हैं। कुल मिलाकर कहूं तो डर तो लगना चाहिए,जो मुझे बहुत लगा था। इसका फायदा यह हुआ कि मुझे अटल जी के बारे में बहुत कम पता था और मेरी हिंदी भी अच्छी नहीं है। इसके बाद मैंने लिखना शुरू कर दिया। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अलावा और क्या चीजें हैं, जो हमें पता नहीं हैं। रिसर्च के बाद मुझे एक अलग अटल बिहारी वाजपेयी जी दिखने लगे। फिर लगा ये फिल्म आज के युवाओं को जरूर देखनी चाहिए। ये जर्नी फिल्म बनाने के अलावा मुझे खुद को बहुत चीजें सीखने की भी थी। मैं पहले कभी उत्तर प्रदेश नहीं गया था। सिर्फ 8 दिनों में मैं बटेश्वर, ग्वालियर, कानपुर, लखनऊ और दिल्ली बाय रोड घूमकर आया था। 

 

प्रोड्यूसर विनोद भानुशाली

Q. इस फिल्म के बनने के पीछे आपके अपने निजी विचार क्या थे? 
A- हम किसी लीडर को क्यों लीडर मानते हैं? क्योंकि उन्होंने अपने बारे में न सोचकर देश के लिए कुछ ऐसे काम किए, जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। उनके लिए पूरा देश ही स्वजन था। अपना पूरा जीवनकाल देकर उन्होंने देश की जनता के लिए जो भी कार्य किए, यह फिल्म सिर्फ उसका शुक्रिया अदा करती है। फिल्मों की स्क्रिप्ट तो कई आती हैं लेकिन कुछ ही कहानियों का आप हिस्सा बनना चाहते हैं, चाहें वह बतौर एक्टर हो, चाहे प्रोड्यूसर हो या डायरेक्टर। इसके अलावा आज के युवाओं को अटल जी के बारे में जरूर जानना चाहिए। उनके जीवन में कितने ही उतार-चढ़ाव आए वो कभी डिप्रेस नहीं हुए। 

 

Q. पूरे देश में रामधुन का माहौल है, ऐसे में फिल्म में भी रामधुन गाना क्या संदेश देता है? 
A- रामधुन इस फिल्म में आशीर्वाद की तरह ही आया है। हमें फिल्म में सिर्फ राम की धुन किसी तरह चाहिए थी। हमने कैलाश खेर को इस बारे में बताया। उन्होंने दो-तीन दिन बाद कहा कि मैं आपको धुन नहीं रामधुन पर पूरा गाना दे रहा हूं। जब हमने स्टू़डियो में इसे सुना तो बिल्कुल मंत्रमुग्ध हो गए।  

 

प्रोड्यूसर संदीप सिंह

Q. क्या यह फिल्म अटल बिहारी वाजपेयी जी के व्यक्तित्व से लोगों को प्रभावित कर पाएगी? 
A- मैं पूरी तरह श्योर नहीं हूं कि ये फिल्म देखकर लोगों में बदलाव आएंगे। वो एक-दूसरे से नफरत करना छोड़ देंगे। लोग इंसानों को अपना मानना और देश के लिए सोचना शुरु कर देंगे। ये फिल्में जिंदगीभर के लिए रह जाती हैं। आज भी जब हम पुरानी फिल्मों को देखते हैं, तो उनसे काफी कुछ सीखते और समझते हैं। 'मैं अटल हूं' फिल्म नहीं सिनेमा है, जो लोगों को हमेशा याद रहेगी। तो इसे देखकर लोगों की आंखों में खुशी के आंसू भी आएंगे और लोग एक-दूसरे को प्रेरित भी करेंगे।


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Content Editor

Jyotsna Rawat

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