Exclusive interview: किसी भी फिल्म के लिए कंटेंट और कहानी सबसे जरुरी है- शशांक खेतान

punjabkesari.in Tuesday, Oct 07, 2025 - 01:39 PM (IST)

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। वरुण धवन और जाह्नवी कपूर रोहित सराफ और सान्या मल्होत्रा की फिल्म ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ 2 अक्टूबर को रिलीज हो चुकी है। फिल्म को दर्शकों का मिला-जुला रिस्पॉन्स मिल रहा है। वहीं बॉक्स ऑफिस पर मूवी ने अच्छी शुरुआत की है। इस रोमांटिक-कॉमेडी ड्रामा मूवी का निर्देशन शशांक खेतान ने किया है। फिल्म के बारें में निर्देशक शशांक खेतान ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश...

सवाल: सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी एक फुल-ऑन एंटरटेनमेंट पैकेज है। इससे पहले भी आपने कई रॉमेंटिक-कॉमेडी फिल्में बनाई हैं तो क्या ये आपका फेवरेट जोनर है।

बिल्कुल ये मेरे पसंदीदा जोनर मे से एक है मुझे इसे बनाकर भी मजा आता है और मुझे लगता है जब मैं लिखता हूं तो मैं नैचुरली इस जॉनर में अपने आप को एक्सप्रेस कर पाता हूं।  जो किरदार मैं चुनता हूं, जो मेरे लाइफ के अनुभव हैं मुझे लगता है कि उनमें भी यह बहुत अच्छी तरह फिट हो जाती है। तो मैं बिल्कुल ये कह सकता हूं कि ये मेरा फेवरेट जोनर है।

सवाल: जब आप कोई रोमांटिक-कॉमेडी फिल्म बनाते हैं तो उसका शशांक खेतान टच क्या होता है?

मुझे लगता है कि उसमें अगर मेरी यूनिक्वेस होगी तो वह यह होगी कि वह फिल्मी भी होगी बस थोड़ी रियल भी होगी। वो बिना जरुरत वाली मेलोड्रमैटिक नहीं होगी। उसमें ड्रामा होगा, मस्ती होगा। लेकिन कहीं ना कहीं वो कनेक्टेबल और रिलेटेबल भी होगा। वो वह फिल्म नहीं होगी जिसको आपको देख कर लगेगा कि यह कौन लोग हैं, मैं इन किरदारों से मेल नहीं खा पा रहा हूं। तो यही मेरी कहानी और फिल्मों में अलग बात होगी।

सवाल: इस फिल्म में कॉमेडी, रोमांस और इमोशन का मिक्स है। इन तीनों को बैलेंस करना एक डायरेक्टर के तौर पर कितना चुनौतीपूर्ण होता है?

नहीं, आदत तो कभी नहीं होती क्योंकी हर फिल्म एक नई फिल्म होती है। एक नई चैलेंज होती है और आपको उसे उसपे खरा उतरना ही पड़ता है। जब मैं यह लिखता हूं तो मैं दिमाग में यह रखता हूं कि मुझे अपने किरदारों को अच्छी तरह पेश करना है, उनके बारे में सिंसियरली लिखना है और कोशिश करनी है कि मैं उसे और निखार कैसे सकूं। जैसे कि  कॉमेडी, इमोशन, मस्ती सबका बैलेंस होना बहुत जरूरी है। तो आई थिंक वो उसका ध्यान मैं सबसे पहले राइटिंग स्टेज पर रखता हूं और फिर उसको मैं अपनी फिल्म में उतारने की कोशिश करता हूं। 

सवाल: इस फिल्म की कास्टिंग को लेकर कुछ बताइए, क्या आइडिया पहले से था या आप कुछ नया एक्सप्लोर करना चाहते थे? 

हमारी फिल्म जब लिखना खत्म हुई उसके बाद धीरे धीरे करके हमने एक एक किरदार को अप्रोच करना चालू किया। वरुण सबसे पहले ऑन बोर्ड आए, फिर जाह्नवी की कास्टिंग हुई। फिर मैं सानिया से मिला, मैं रोहित से मिला। उनको मैं एक नए तरीके से प्रेजेंट करना चाहता था, जो मुझे एक्साइटिंग लगा। उसके बाद मनीष पॉल की कास्टिंग हुई, अक्षय ओबरॉय की कास्टिंग हुई। उसमें मेरे कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा, उनका भी हाथ था। हम लोग का इंटेंड था कि हम कुछ यूनिक करें, कुछ अच्छा करें, कुछ इंटरेस्टिंग आर्टिस्ट को साथ में लेकर आए और बस वही हमारी कोशिश थी। 

सवाल: वरुण धवन के साथ ये आपकी तीसरी फिल्म है इसकी कोई खास वजह?

जी हां, उनके साथ यह मेरी तीसरी फिल्म है। वरुण धवन के साथ मेरा एक खास रिश्ता है न सिर्फ पेशेवर रूप से, बल्कि निजी तौर पर भी। मुझे उनका काम बहुत पसंद है और वह मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं। सच कहूं तो, उन्हें मैं अपने परिवार जैसा मानता हूं। उनका पूरा परिवार भी मेरे बहुत करीब है। जब भी मैं कोई फिल्म लिखता हूं, तो वरुण सबसे पहले मेरे दिमाग में आते हैं। खासकर जो फिल्में मैं 'सनी-संस्कारी' जॉनर में बनाता हूं, उनके लिए वरुण मेरी पहली पसंद रहते हैं।

सवाल: दर्शक बहुत स्मार्ट हो चुके हैं वो अब केवल फिल्म मनोरंजन के नजरिए से नहीं देखते, क्या ये डायरेक्टर पर एक एक्स्ट्रा प्रेशर डालता है?

मुझे लगता है कि सभी डायरेक्टर्स की एक ही कोशिश होती है अच्छी और दिलचस्प कहानियां सुनाना। हर कहानी की अपनी एक अलग जरूरत होती है। कुछ कहानियां हंसाने के लिए होती हैं, कुछ रुलाने के लिए, कुछ डराने के लिए और कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि असल ज़िंदगी क्या होती है। एक कहानी के जरिए आप अलग-अलग तरह के अनुभव और भावनाएं दर्शकों तक पहुंचा सकते हैं। मेरा मानना है कि फिल्ममेकर्स को सबसे पहले खुद पर भरोसा होना चाहिए और जो कहानी वो कहना चाहते हैं, उसमें ईमानदारी होनी चाहिए। अगर हम ईमानदारी से काम करते रहें, तो हमारी उम्मीदें सबसे पहले खुद से होनी चाहिए। 

सवाल: आपको क्या लगता है कि जो आजकल की जो ऑडियंस है वह केवल स्टार पावर पर नहीं बल्कि कंटेंट पर भी ध्यान देती है? 
कंटेंट सबसे जरूरी है क्योंकि अगर कहानी ही नहीं है, तो फिर फिल्म बनाने का मतलब क्या है? इसलिए एक अच्छी कहानी का होना बहुत जरूरी है। लेकिन मेरे हिसाब से आज भी हमारे देश में फिल्में देखने के कई कारण होते हैं। मैं नहीं मानता कि स्टार पावर पूरी तरह खत्म हो गई है। लेकिन मुझे लगता है कि हर चीज का होना जरूरी है। अच्छी कहानी होनी चाहिए, नए कलाकारों को मौका मिलना चाहिए और साथ ही अच्छे स्टार्स का होना भी जरूरी है। अगर ये तीनों चीज़ें साथ चलेंगी, तो हमारी फिल्म इंडस्ट्री और बेहतर हो सकती है।


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Content Editor

Jyotsna Rawat

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