रियल लोकेशन, रियल लोग और रियल इमोशन ही मेरी फिल्म की जान हैं- अनुराग कश्यप

punjabkesari.in Wednesday, Sep 17, 2025 - 01:07 PM (IST)

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। 19 सितंबर को सिनेमाघरों में अनुराग कश्यप द्वारा डायरेक्टेड निशांची रिलीज होने वाली है। इस फिल्म में मोनिका पवार, ऐश्वर्य ठाकरे, वैदिकी पिंटो मुख्य भूमिका में नजर आएंगे। कनपुरिया टच वाली इस फिल्म के जरिए बालासाहेब ठाकरे के पोते ऐश्वर्या ठाकरे फिल्मी करियर शुरू करने जा रहे हैं। इस फिल्म के बारे में डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश...  

सवाल: फिल्म की स्क्रिप्ट आपने 2016 में लिखी थी। इतनी लंबी देरी क्यों हुई और इसकी प्रेरणा कहां से मिली?
जवाब:
बहुत-सी कहानियां सालों तक पड़ी रहती हैं। इस स्क्रिप्ट को हमने बहुत संजोकर रखा। हम गलत तरीके से इसे बनाना नहीं चाहते थे। सही माहौल, सही लोग और सही कलाकार मिलने का इंतज़ार था। इंस्पिरेशन मुझे हमेशा किसी घटना, किताब या कहानी से मिलती है। जैसे इस बार कहानी में “दीवार” के दोनों बच्चों की तरह एक पात्र कानून के इस पार है और दूसरा उस पार। जब हमने सोचा कि इसे कानपुर में सेट करेंगे तो वहां की मिट्टी, बोली और माहौल से कहानी को असली रंग मिला। फिर धीरे-धीरे कलाकार जुड़ते गए। सही एक्टर मिलने में वक्त लगा लेकिन जब मिल गए तो उन्होंने भी तीन-चार साल का समय मुझे दिया। यही वजह है कि फिल्म बनने में लंबा वक्त लगा।

सवाल: आपकी फिल्मों में हमेशा एक अलग वर्ल्ड नजर आता है। इस बार दर्शकों को नया क्या देखने को मिलेगा?
जवाब:
देखिए, मैं खुद ऑब्जेक्टिव होकर ये नहीं कह सकता। दर्शक जब देखेंगे तभी असली फर्क बता पाएंगे। मैं बस इतना कह सकता हूं कि मैं फॉर्मूला नहीं फॉलो करता। मैं वही कहानियां सुनाता हूं जो मुझे पसंद आती हैं और जो असलियत के करीब होती हैं।

सवाल: आपकी फिल्मों की लोकेशन और कास्टिंग हमेशा रियल लगती है। इसका राज क्या है?
जवाब:
मैं कास्टिंग को बहुत गंभीरता से लेता हूं। सही एक्टर मिल जाए तो आधा काम आसान हो जाता है। लेकिन मैं किसी एक्टर को कभी यह नहीं बताता कि कैसे एक्टिंग करनी है। मैं उन्हें होमवर्क देता हूं ताकि वो पूरी तरह से किरदार में ढल जाएं। जैसे ऐश्वर्या को कहा कि कनपुरिया बनना पड़ेगा, और उन्होंने पूरी मेहनत की। सेट पर मैं स्क्रिप्ट लाइन-बाय-लाइन नहीं पढ़वाता। वहां पर सीन उसी दिन, उसी फ्लो में बनता है। मैं चाहता हूं कि चीजें नेचुरल निकलें। यही मेरा तरीका है।

सवाल: आपकी फिल्मों में अक्सर खून-खराबा, गालियां और रियलिस्टिक हिंसा दिखाई देती है। इस पर आप क्या कहेंगे?
जवाब:
ये सब परसेप्शन है। मेरी हर फिल्म में ऐसा नहीं होता। जैसे मनमर्जियां या मुक्काबाज इनमें कहां खून-खराबा है? लेकिन गैंग्स ऑफ वासेपुर में हां हिंसा थी पर मैंने उसे ग्लोरिफाई नहीं किया। न स्लो मोशन, न ओवरड्रामैटिक इफेक्ट्स। मैं चाहता था कि हिंसा वैसी दिखे जैसी असल में होती है। भाषा की बात करें तो जहां जो बोली है वही इस्तेमाल करता हूं। असली माहौल से समझौता नहीं करता।

सवाल: आपकी फिल्मों का म्यूजिक हमेशा फ्रेश और अलग होता है। ये बैलेंस कैसे बनाते हैं?
जवाब:
म्यूजिक में हम कभी मार्केट ट्रेंड फॉलो नहीं करते। हम वो गाना बनाते हैं जो कहानी के हिसाब से सही लगे। टाइमलेस म्यूजिक बनाने के लिए आपको इमोशन पकड़ना पड़ता है। इमोशनल अत्याचार को ही देख लीजिए जब बना रहे थे तब हमें डर था कि ये चलेगा या नहीं, लेकिन 16 साल बाद भी शादियों में बजता है। इसका मतलब है कि असली चीज समय की कसौटी पर टिकती है।

सवाल : सत्या से लेकर आज तक आपकी फैन फॉलोइंग बरकरार है। आप नई, युवा ऑडियंस को आकर्षित करने के लिए क्या स्ट्रेटजी बनाते हैं?
जवाब:
कोई खास स्ट्रेटजी नहीं। मैं बस वही बनाता हूं जो मुझे अच्छा लगे। जब मुझे मज़ा आता है तो दर्शकों को भी मज़ा आता है। आज की युवा ऑडियंस भी ईमानदारी से बनी फिल्मों को समझती और सराहती है।

सवाल: साउथ इंडस्ट्री लगातार नए वर्ल्ड बना रही है, हिंदी सिनेमा की तुलना में आप इसे कैसे देखते हैं?
जवाब:
साउथ के फिल्मकार लगातार एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। वहीं हिंदी सिनेमा अक्सर फॉर्मूला में फंसा रहता है। यहां लोग ज्यादा रिकॉर्ड तोड़ने और बॉक्स ऑफिस सोच में लगे रहते हैं। असली क्रिएटिविटी तभी आती है जब आप फॉर्मूले से बाहर निकलें।

सवाल: आपके फ्यूचर प्रोजेक्ट्स क्या हैं?
जवाब:
मैं अपने प्रोजेक्ट्स के बारे में पहले से बात करना पसंद नहीं करता। जब फिल्म तैयार होती है या फेस्टिवल में सिलेक्ट होती है तभी लोग जान पाते हैं। मैं सरप्राइज देना पसंद करता हूं। फिलहाल बस इतना कहूंगा कि मैं ईमानदारी से काम करता रहूंगा।

 


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Content Editor

Jyotsna Rawat

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