बिहार की परंपरा से IFFI, गोवा तक, दीपक सिंह और उनकी फिल्म ‘छठ’ की अनोखी उड़ान
punjabkesari.in Saturday, Nov 15, 2025 - 04:51 PM (IST)
नई दिल्ली/टीम डिजिटल। बिहार की जमीन से उठी कहानियों में एक अलग ही मिट्टी की खुशबू होती है और उसी खुशबू को लेकर अभिनेता दीपक सिंह आज अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँच चुके हैं। उनकी फिल्म ‘छठ’ हाल ही में Waves OTT पर रिलीज़ हुई थी और देखते ही देखते दर्शकों के दिलों में जगह बना गई। अब इस फिल्म ने एक बड़ा मुकाम हासिल किया है: इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (IFFI), गोवा में आधिकारिक चयन।
इफी, जिसे भारत सरकार आयोजित करती है, सिर्फ़ फिल्मों का उत्सव नहीं है यह उन कहानियों का उत्सव है जो अपनी सांस्कृतिक जड़ों को सच्चाई से दिखाती हैं। ऐसे मंच पर ‘छठ’ का पहुँचना इस बात का संकेत है कि यह फिल्म सिर्फ़ एक सिनेमाई अनुभव नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति की नयी आवाज़ है।
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक नितिन चंद्रा द्वारा निर्देशित यह फिल्म छठ पर्व की आस्था, परिवार और समाज के मेल का बेहद सरल और भावनात्मक चित्रण करती है। फिल्म में दीपक सिंह एक ऐसे व्यक्ति की भूमिका निभाते हैं जो अपनी परंपरा, परिस्थिति और निजी भावनाओं के बीच रास्ता खोजता है। उनका अभिनय बिना शोर किए दिल पर असर करता है शांत, सच्चा और बेहद मानवीय।

दीपक सिंह कहते हैं, छठ हमारे घर-आँगन, हमारी नदियों, हमारी माँओं की प्रार्थना में बसता है। हमने फिल्म को कहानी से ज्यादा अपनी संस्कृति की पूजा की तरह बनाया। इफी में चयन होना लगा जैसे हमारी मिट्टी की बात अब दुनिया तक पहुँच रही है।”
इफी में ‘छठ’ की चर्चा सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि यह एक धार्मिक पर्व पर आधारित फिल्म है, बल्कि इसलिए भी कि यह पर्व को उसके असल भाव रिश्तों, जिम्मेदारियों, त्याग और विश्वास के साथ दिखाती है। फिल्म यह याद दिलाती है कि छठ केवल व्रत नहीं, बल्कि जीवन को नया अर्थ देने वाला उत्सव है।
दीपक सिंह इससे पहले ‘Deswa’, ‘Ek Bura Aadmi’, ‘Aayam’, ‘Once Upon a Time in Bihar’, ‘The Super Husband’ और ‘Kariyatthi’ जैसी फिल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। उनका चयन हमेशा ऐसी फिल्मों में रहा है जो दर्शक को मनोरंजन के साथ विचार भी देती हैं।

उनके शब्दों में, मेरे लिए सिनेमा सिर्फ़ भूमिका निभाने का माध्यम नहीं समाज को समझने और उससे संवाद करने का तरीका है। हर फिल्म में मैं कुछ न कुछ ऐसा छोड़ना चाहता हूँ जो दर्शकों को भीतर तक छू ले।”
‘छठ’ का IFFI तक पहुँचना इस बात का प्रमाण है कि जब कहानी अपनी जड़ों में सच्ची होती है, तो उसकी गूँज सीमाओं के पार भी सुनाई देती है। सिवान से निकला एक कलाकार आज यह साबित कर रहा है कि सच्चा कलाकार मंच नहीं ढूँढता वह अपनी मेहनत से अपना मंच खुद बना लेता है।
