Ek Chatur Naar Review : सस्पेंस, रिवेंज और मनोवैज्ञानिक खेल का संगम, यहां पढ़ें रिव्यू
punjabkesari.in Saturday, Sep 13, 2025 - 09:24 AM (IST)

फिल्म- एक चतुर नार (Ek Chatur Naar)
स्टारकास्ट- दिव्या खोसला (Divya Khosla), नील नितिन मुकेश (Neil Nitin Mukesh), छाया कदम (Chhaya Kadam), सुशांत सिंह (Sushant Singh), रजनीश दुग्गल (Rajneesh Duggal), जाकिर हुसैन (Zakir Hussain)
निर्देशक: उमेश शुक्ला (Umesh Shukla)
रेटिंग- 3.5*
एक चतुर नार: निर्देशक उमेश शुक्ला की फिल्म ‘एक चतुर नार’ एक ऐसी कहानी है जिसमें ब्लैकमेलिंग, रिवेंज और सस्पेंस के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चलता है। फिल्म का प्लॉट दिलचस्प है और मुख्य कलाकार दिव्या खोसला और नील नितिन मुकेश अपने-अपने किरदारों में गहरी छाप छोड़ते हैं। हालांकि, कहानी कई जगह दोहरावपूर्ण लगती है और स्क्रीनप्ले की ढीलापन इसे और असरदार बनने से रोक देता है। बावजूद इसके, मनोवैज्ञानिक खींचतान और सस्पेंस से भरपूर अंत दर्शकों को आख़िर तक जोड़े रखता है। चलिए आपको बताते हैं कैसी है फिल्म...
कहानी
फिल्म की कहानी ममता (दिव्या खोसला) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने बेटे और सास के साथ रहने वाली एक अकेली मां है। साधारण सी दिखने वाली ममता की ज़िंदगी तब अप्रत्याशित मोड़ लेती है जब अभिषेक (नील नितिन मुकेश), जो सरकारी पैसे का गबन करता है उसका फोन चोरी हो जाता है और ममता उसे पकड़ने निकलती है। इसी घटना से कहानी में कई उतार-चढ़ाव आते हैं लेकिन कई जगह यह कमजोर और दोहरावपूर्ण लगती है। फिल्म में किसान आत्महत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे को छूने की कोशिश की गई है जो कहानी से थोड़ा असंबद्ध लगता है।
एक्टिंग
दिव्या खोसला ने ममता के रूप में अपने मासूम स्क्रीन-इमेज से हटकर एक जटिल और परतदार किरदार को जीवंत किया है। उनकी बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलीवरी और बारीक चारित्रिक बुनावट दर्शकों को चौंकाती है। दब्बू से लेकर शातिर तक के बदलाव को उन्होंने सहजता से आत्मसात किया है। वहीं, नील नितिन मुकेश ग्रे शेड वाले हीरो के रूप में पूरी तरह फिट बैठते हैं और उनके तथा दिव्या के बीच का चूहे-बिल्ली का खेल फिल्म का बड़ा आकर्षण बन जाता है।
डायरेक्शन
निर्देशक उमेश शुक्ला ने कहानी को दिलचस्प प्लॉट के साथ शुरू किया लेकिन किरदारों को स्थापित करने में वे वक्त ज्यादा खर्च कर देते हैं। ब्लैकमेलिंग से शुरू होकर रिवेंज ड्रामा तक पहुंचने वाली इस कहानी में ट्विस्ट तो हैं लेकिन स्क्रीनप्ले में कसावट की कमी और सहायक किरदारों की अधूरी बुनावट कई जगह फिल्म को कमजोर बना देती है। फिर भी, कुछ मनोरंजक पलों और मनोवैज्ञानिक टकराव को उन्होंने प्रभावी ढंग से पेश किया है।