यहां मासूम कंधों पर बढ़ रहा स्कूल बस्तों का बोझ

punjabkesari.in Sunday, Feb 26, 2017 - 04:35 PM (IST)

नई दिल्ली: एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जेएस राजपूत ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों को अपनी किताबें चुनने का हक तो मिल गया है, लेकिन यह अच्छा व्यापार बन कर बच्चों के शोषण का जरिया भी बन गया है । स्कूल अधिक मुनाफा कमाने की फिराक में बच्चों का बस्ता भारी करते जा रहे हैं। एसोचैम के एक सर्वे के अनुसार, बस्ते के बढ़ते बोझ के कारण बच्चों को नन्ही उम्र में ही पीठ दर्द जैसी समस्याआें का सामना करना पड़ रहा है। इसका हड्डियों और शरीर के विकास पर भी विपरीत असर होने का अंदेशा जाहिर किया गया है।

दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बंगलूर, मुंबई और हैदराबाद जैसे दस शहरों में करवाए गए इस सर्वे में कहा गया है कि काफी संख्या में बच्चे अपने वजन का 35 प्रतिशत बोझ बस्ते के रूप में रोजाना पीठ पर ढोते हैं। उसके अलावा उन्हें अपनी रुचि के अनुसार स्केट्स बैग तथा क्रिकेट किट जैसा भारी सामान भी किसी न किसी दिन ढोना पड़ता है। एेसे में बच्चों का किसी तरह के शारीरिक तनाव से प्रभावित होना स्वाभाविक है।   एेसी शिकायतें देश के विभिन्न हिस्सों से आमतौर पर मिलती है कि स्कूलों के लिए एनसीईआरटी द्वारा तैयार पुस्तकें शैक्षणिक सत्र का काफी समय गुजरने के बाद भी बच्चों तक नहीं पहुंचती।

जाहिर है कि बच्चों को निजी प्रकाशकों की विभिन्न पुस्तकों एवं कुंजियों का सहारा लेना पड़ता है। एेसे में उन पर पढ़ाई का बोझ कम होने की बात करना बेमानी ही होगा।  हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड :सीबीएसई: ने बच्चों के बस्ते का बोझ कम करने के मकसद से सुझाव दिया है कि शिक्षकों को उच्च कक्षा के छात्रों को वजनदार पुस्तकें लाने के प्रति हतोत्साहित करना चाहिए जबकि स्कूलों को कक्षा दो तक स्कूल में ही पुस्तकें रखने का सुझाव दिया गया है।


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