डॉक्टर बनने का सपना देख रहे युवाओं के लिए बुरी खबर, नहीं कर पाएंगें प्रैक्टिस

punjabkesari.in Sunday, Dec 31, 2017 - 05:01 PM (IST)

नई दिल्ली :  डॉक्टर बनने का सपना देख रहे युवाओं के लिए अब डॉक्टर बनना आसान नहीं होगा। एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे  युवा अब डॉक्टरी की प्रैक्टिस नहीं कर पाएगें। अगर मेडकिल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की जगह नैशनल मेडिकल कमिशन (NMC) बिल आ गया तो देश में एमबीबीएस की डिग्री वाले डॉक्टर मरीजों का इलाज नहीं कर पाएंगे, उन्हें प्रैक्टिस के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं मिलेगा। उम्मीदवारों को डॉक्टरी की प्रेक्टिस के लिए एमबीबीएस के बाद भी एक परीक्षा पास देनी होगी और उम्मीदवार सीधे डॉक्टरी की प्रेक्टिस नहीं कर सकेंगे। हाल ही में एमबीबीएस कोर्स में बदलाव किया गया था, जिसके तहत उम्मीदवारों को हर सेमेस्टर के बाद एक परीक्षा में भाग लेना होगा। प्रत्येक सेमेस्टर के बाद छात्रों का एक टेस्ट होगा, जिनमें उनके सीखे गए टेलेंट की जांच होगी। बताया जा रहा है कि इसका उद्देश्य यह है कि उम्मीदवारों को प्रेक्टिकल नॉलेज मिल सके। साथ ही इस दौरान कई अन्य जानकारी भी दी जाएगी। 

एनएमसी बिल के अनुसार एमबीबीएस की डिग्री वाले डॉक्टरों को क्वॉलिफाइ करना होगा। उन्हें एक और एग्जाम देना होगा जिसमें पास होने पर ही वो प्रैक्टिस कर पाएंगे। वहीं अब विदेशी डॉक्टरों या विदेश से डिग्री लेकर आने वाले डॉक्टरों को राहत मिलेगी। अब तक जहां एमसीआई के कानून के तहत ऐसे डॉक्टरों को भारत में प्रैक्टिस करने के लिए क्वॉलिफाइ एग्जाम पास करना पड़ता था, वहीं नए कानून के तहत उन्हें इससे छूट दे दी गई है। इससे कम मार्जिन से पास होने वाले भारतीय डॉक्टरों की परेशानी बढ़ सकती है।

हो रहा है विरोध 
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रेजिडेंट डॉक्टर के के अग्रवाल ने कहा कि यह पूरी तरह से नाकाम सिस्टम होगा। हम एक साल से मंत्रालय से इस मामले में विमर्श करने को कह रहे हैं, लेकिन वो हमें बुला ही नहीं रहे हैं। यह लागू हो गया तो इससे करप्शन बढ़ेगा। तीन लोगों की एक कमिटी होगी जो कॉलेज को अप्रूवल देगी और कमिटी में ये तीनों लोग भी नॉमिनेटेड होंगे। पहले 130 लोगों में से 80 लोग चुनकर आया करते थे। यहां तो कोई वॉच डॉग भी नहीं होगा। एमसीआई के मेंबर डॉक्टर विनय अग्रवाल ने कहा कि इस तरह से तो एनएमसी सरकार के हाथ की कठपुतली होगी और इसे सरकार ही चलाएगी। उन्होंने कहा कि इसमें जुर्माना 5 करोड़ से लेकर 100 करोड़ रुपये तक का है। इतना बड़ा अंतर क्यों है? इससे मेंबर अपने चाहने वाले को कम और दूसरे को ज्यादा जुर्माना कर सकते हैं। इसी प्रकार कॉलेज की 40 पर्सेंट सीटों पर ही एनएमसी की नजर होगी, बाकी 60 पर्सेंट सीटों का चयन और उसकी फीस प्राइवेट मेडिकल कॉलेज वाले अपनी मर्जी से करेंगे। इससे प्राइवेट कॉलेज वालों को भारी फायदा होगा जबकि पहले मैनेजमेंट कोटा के तहत कॉलेज के पास केवल 10 पर्सेंट सीट ही होती थीं। 


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