अनोखा मंदिर, गजब पंरपरा: भगवान शिव नहीं लिंग रूप में होता है देवी पूजन

punjabkesari.in Monday, Nov 02, 2015 - 08:40 AM (IST)

भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा तो जगजाहिर है लेकिन क्या आपने कभी देवी की पूजा लिंग रूप में होती देखी या सुनी है। आईए आज आपको यात्रा करवाते हैं छत्तीसगढ़ के अलोर गांव में एक पहाड़ी पर स्थित अनोखे मंदिर की जहां देवी पूजन लिंग रूप में होता है कहते हैं इस लिंग में भगवान शिव और शक्ति दोनों समाहित हैं इसलिए दोनों की पूजा लिंग स्वरूप में होती है।
 
इस मंदिर की अन्य विशिष्टता है की यह साल में सिर्फ एक बार भक्तों के दर्शनों के लिए खुलता है। एक दिवसीय पूजा के उपरांत मंदिर के कीवाड़ बंद कर दिए जाते हैं और बाहर रेत डाल दी जाती है। एक साल बाद जब मंदिर खुलता है तो रेत पर अंकित चिन्ह से अनुमान लगाया जाता है कि आने वाला साल कैसा रहेगा। कहते हैं कि कमल चिन्ह हो तो धन संपत्ति में बढ़ौतरी होती है।
 
* बाघ के पैर के निशान मिलें तो दहशत बढ़ती है। 
 
* बिल्ली के पैरों के निशान होने पर डर संवृद्घि वाला वर्ष। 
 
* मुर्गियों के पैरों के निशान अकाल पड़ने का संकेत देते हैं।
 
* हाथी के पैरों के निशान दिखें तो सफलता प्राप्त होती है।
 
* घोड़े के पैरों के निशान का अर्थ है युद्घ होना।
 
इस मंदिर में मनोकामनाएं पूरी करने की भी गजब पंरपरा है। निःसंतान दंपत्ति इस मंदिर में विशेष रूप से दर्शनों के लिए जाते हैं और वहां मांगी गई मन्नत देवी जरूर पूरी करती हैं।
 
लिंगई गट्टा पहाड़ी पर माता लिंग रूप में गुफा में वास करती हैं। लिंग की ऊंचाई औसतन दो फीट है। माना जाता है कि पहले इस लिंग की ऊंचाई इतनी नहीं थी लेकिन समय के साथ-साथ ये बढ़ रही है।
 
इस मंदिर में प्रवेश करना मुश्किल है क्योंकि प्रवेश द्वारा बहुत ही छोटा और तंग है । भक्तों को लेटकर अथवा बैठकर मंदिर में प्रवेश करना पड़ता है। मंदिर में पंहुचने पर इतना खुला स्थान है की 25 से 30 लोग एकसाथ देवी पूजन कर सकते हैं।
 

इच्छा पूर्ति के लिए आए भक्त देवी को खीरे का प्रसाद अर्पित करते हैं। पंडित जी पूजन के बाद संतान प्राप्ति की इच्छा से आए दंपत्ति को खीरा लौटा देते हैं। फिर नाखून से खीरे को दो भागों में बांटकर तोड़ा जाता है। एक एक हिस्सा लिंग के समक्ष ही पति-पत्नी खा लेते हैं। ऐसे करने से निःसंतान दंपत्ति को संतान अवश्य ही प्राप्त होती है। 


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