इन तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध करने से पूर्वजों के लिए खुलता है स्वर्ग का द्वार

punjabkesari.in Tuesday, Oct 06, 2015 - 03:41 PM (IST)

श्राद्धों में पितृगणों के तर्पण, श्राद्ध व पिंडदान के लिए उत्तम माना गया है। श्राद्ध के नियमों के अनुसार जिस तिथि को सगे-संबंधी की मृत्यु होती है, उसी दिन उनके निमित्त श्राद्ध करना चाहिए। उचित तरीके से श्राद्ध करने से पितृगणों का आशीर्वाद मिलता है। दिव्य लोकवासी पितृगणों के पुनीत आशीर्वाद से कुल में दिव्य आत्माएं अवतरित हो सकती हैं। जिन्होंने जीवन भर खून-पसीना एक करके इतनी साधन-सामग्री व संस्कार देकर आपको सुयोग्य बनाया उनके प्रति सामाजिक कर्त्तव्य-पालन अथवा उन पूर्वजों की प्रसन्नता, ईश्वर की प्रसन्नता अथवा अपने हृदय की शुद्धि के लिए साकाम व निष्काम भाव से यह श्राद्धकर्म करना चाहिए।

भारत में श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए बहुत सारे तीर्थ हैं लेकिन कुछ तीर्थ ऐसे हैं जिनका उल्लेख हमारे धार्मिक पुराणों में किया गया है। आईए जानें, उन तीर्थ स्थलों के बारे में जहां किया गया श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण पंहुचा देता है आपके पूर्वजों को स्वर्ग लोक में।
 
राजस्थान के विख्यात लोहागर तीर्थ की रक्षा स्वयं ब्रह्मा जी करते हैं। कहते हैं यहां पिंडदान, श्राद्ध और अस्थि विसर्जन करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस तीर्थ की विशिष्टता है की पर्वत से सात धाराएं निकलती हैं। यहां मुख्य रूप से सूर्य देव का पूजन होता है। 
 
बिहार का दूसरा सबसे बड़ा शहर गया फल्गु नदी के तट पर स्थित है। माना जाता है कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।  श्राद्ध पक्ष के दौरान असंख्य श्रद्धालु अपने पितरों का पिंडदान करने यहां आते हैं। जितने तृप्त पितृ इस तीर्थ पर होते हैं उतने अधिक किसी तीर्थ पर नहीं होते।
 
तीर्थों के राजा प्रयाग को ऋगवेद के समय से ही अत्यंत पवित्र तीर्थ माना गया है क्योंकि यहां गंगा और यमुना का संगम होता है। मान्यता है कि संगम के तट पर अंतिम सांसे लेने से व्यक्ति जन्म मरण के बंधनों से मुक्त हो मोक्ष को प्राप्त करता है। अधिकतर लोग यहां मुंडन और श्राद्ध कर्म करवाने आते हैं। विधवा महिलाएं भी यहां मुंडन करवाती हैं।
 
गुजरात में द्वारिका से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पिण्डारक या पिण्डतारक तीर्थ। यहां पर एक विशाल सरोवर है, श्राद्ध करने के उपरांत पिंड सरोवर में बहा दिए जाते हैं। हैरानी की बात है पिण्ड सरोवर में डूबते नहीं बल्कि तैरने लगते हैं। माना जाता है कि महर्षि दुर्वासा के वरदान से इस तीर्थ में पिंड तैरते रहते हैं। इसके अतिरिक्त यहां कपालमोचन महादेव, मोटेश्वर महादेव, श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक और ब्रह्मा जी मंदिर हैं।  

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