सूर्य से लेकर मानव शरीर तक, योग कैसे जोड़ता है सृष्टि की हर ऊर्जा को ?
punjabkesari.in Friday, Dec 26, 2025 - 12:12 PM (IST)
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योग संपूर्ण सृष्टि का विज्ञान है। सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और मानव शरीर सृष्टि के विभिन्न पहलू हैं, योग इन सबका सार है। सृष्टि के विभिन्न पहलुओं को शक्ति प्रदान करने वाली, उन्हें क्रियाशील बनाने वाली शक्ति क्या है, यही योग का विषय है।
जब आप गुरु के मार्गदर्शन में योग का अभ्यास करते हैं, तो आप प्रकृति के इन तत्वों और सूक्ष्म शक्तियों के साथ संवाद स्थापित करने लगते हैं। उदाहरण के तौर पर, हमारा शरीर पंचतत्वों से निर्मित है, फिर भी हम उन्हें प्रत्यक्ष नहीं देख पाते। किंतु योग की उच्च अवस्थाओं में आप इन तत्वों को अपने भीतर अनुभव करने लगते हैं और उनके आधारभूत सिद्धांत को समझने लगते हैं। तब ये तत्व आपके आदेश का अनुसरण करने लगते हैं। आप उनके माध्यम से शरीर में वांछित परिवर्तन लाने में सक्षम हो जाते हैं। योग का विज्ञान क्रमशः प्रकट होता है पहले तत्वों के स्तर पर, फिर चेतना के स्तर पर और अंततः दिव्यता के रूप में।
योग को अक्सर शरीर को ठीक करने वाली एक उपचार प्रणाली समझ लिया जाता है। वास्तव में, यह कोई चिकित्सा विज्ञान नहीं है बल्कि यह यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का समग्र रूप है। योग सूत्रों में वर्णित आसन और प्राणायाम बीमारियों को ठीक करने के लिए नहीं हैं। पतंजलि कहते हैं स्थिर सुखम् आसनम् अर्थात वह मुद्रा जिसमें आप स्थिर हों। यहां स्थिरता का अर्थ मन की वृत्तियों को शांत करके प्राप्त की गई आंतरिक और बाहरी मौन अवस्था है, इसके बाद ही योग के अनुभव शुरू होते हैं।
आइए उदाहरण के तौर पर प्राणायाम के विज्ञान को समझते हैं। आज, ऐसे गुरुओं और शिक्षकों की कोई कमी नहीं है जो प्राणायाम को भौतिक शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने और एड्रेनालिन को बढ़ावा देने के व्यायाम के रूप में बेच रहे हैं। तथ्य यह है कि प्राणायाम भौतिक शरीर या अन्नमय कोष से संबंधित नहीं है। यह प्राण की वंदना है और प्राण प्राणमय कोष में प्रवाहित होता है, जो सीधे अन्नमय कोष को प्रभावित करता है।
प्राणायाम करने पर ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। फेफड़ों में एल्वियोली नामक छोटी-छोटी थैलियां होती हैं जहां गैसों का आदान-प्रदान होता है। एल्विओली द्वारा गैसों के अवशोषण के लिए एक विशिष्ट समय अवधि हेतु दबाव में अंतर की आवश्यकता होती है। नाड़ी शोधन जैसे प्राणायाम इस दबाव को समान कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप गैसों का विसरण नहीं हो पाता। यहां तक कि भस्त्रिका और कपालभाति जैसे तीव्र प्राणायामों में भी गति इतनी अधिक होती है कि गैसों के अवशोषण के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता। परिणामस्वरूप, ऑक्सीजन की आपूर्ति कम होती है और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता है। यह प्रक्रिया मस्तिष्क के निचले केंद्रों को शांत कर देती है और उन उच्च केंद्रों को सक्रिय करती है जिन्हें आधुनिक विज्ञान अभी तक नहीं समझ पाया है।
प्राणायाम की प्रक्रिया त्रिकोणीय है। कुंडलिनी शक्ति मूल चक्र पर एक ऊपर की ओर इशारा करते हुए त्रिभुज के रूप में होती है। यदि आप ध्यान दें, तो प्राणायाम में श्वास की गति त्रिकोणीय होती है। हमारी नाक में एक इरेक्टाइल टिश्यू होता है, जो रक्त प्रवाह बढ़ने पर फूल जाता है। आपने देखा होगा कि जब आप यौन रूप से अधिक सक्रिय होते हैं, तो कभी-कभी नाक बंद हो जाती है, जिसे हनीमून नोज कहा जाता है, यह इरेक्टाइल टिश्यू के फूलने के कारण ही होता है। प्राणायाम में, आप एक त्रिभुज बनाते हैं और नाक के दोनों किनारों पर इरेक्टाइल टिश्यू को लगातार दबाते हैं। यह त्रिभुज कुंडलिनी ऊर्जा को ऊपर की ओर धकेलता है, जिससे मस्तिष्क के इष्टतम क्षेत्र जाग्रत होते हैं। यह पूर्ण सक्रियता तब होती है जब तीन नाड़ियां इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना, संतुलित होती हैं। तब कुंडलिनी ऊर्जा ऊपर उठती है और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होते हैं। यही वास्तविक प्राणायाम है।
जैसे-जैसे आप योग की गहराइयों में उतरते हैं, आप महसूस करते हैं कि सभी भारी चीजें आपका साथ छोड़ देती हैं, आयु का प्रभाव थम जाता है और शारीरिक शक्ति में असीमित वृद्धि होती है। परंतु इसके लिए एक आश्रम की मर्यादा और गुरु के सानिध्य की आवश्यकता होती है। इस ज्ञान को खरीदा नहीं जा सकता क्योंकि जो बिकाऊ है वह माया से बंधा है और जो स्वयं बंधा हुआ है वह आपको बंधनों से मुक्त नहीं कर सकता। योग का अर्थ ही है शरीर के मोह से मुक्त होकर सृष्टि की अनंत ऊर्जा से एकाकार होना।
अश्विनी गुरुजी ध्यान आश्रम
