महाभारत: श्री विष्णु के मुख से जानें क्यों होता है "अवतार"

punjabkesari.in Thursday, Feb 27, 2020 - 03:34 PM (IST)

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हिंदू धर्म में मुख्य रूप से ब्रह्मा जी, श्री हरि की एवं देवो के देव महाजेव की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इन्होंने ने मिलकर सृष्टि का निर्माण किया है। तो वहीं धार्मिक ग्रंथों में किए इस बारे में जो वर्णन मिलता है उसके अनुसार ब्रह्मा जी को सृष्टि के रचयिता, विष्णु जी को पालनहार व भगवान शंकर को विनाशकारी कहा गया है। अब ये तो हुई इनका परिचय। चलिए अब बात करते हैं इनके अन्य अवतारों की। जी हां, अगर आप हिंदू धर्म से संबंध रखते हैं, तो आप जानते होंगे कि भगवान शंकर व विष्णु जी ने अपने मूल रूप के अलावा कई अन्य अवतार भी धारण किए। इन अवतारों का उल्लेख शास्त्रों में अच्छे से किया गया है। मगर आख़िर ये अवतार क्यों लिए गए? अवतार से मतलब क्या है?  तो चलिए जानतें अवतार से जुड़ी खास बातें।
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जैसे कि आप लोग जानते होंगे कि जगत के पालनहार भगवान् विष्णु के कई अवतार हैं जिनके बारे में आपने अक्सर पढ़ा सुना जाता है। यहां आज हम आपको भगवान् विष्णु के अवतार के बारे में बताने वाले हैं। साथ ही ये भी बताएंगे की आख़िर क्‍यों भगवान अवतार लेते हैं।

सबसे पहले बता दें अवतार का शाब्दिक अर्थ है भगवान् का अपनी शक्ति के द्वारा भौतिक जगत् में किसी अन्‍य रूप में प्रकट होना। भगवत गीता के चतुर्थ अध्याय के सातवें और आठवें श्लोक में भगवान ने स्वयं अवतार का प्रयोजन बताते हुए कहा है। जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का उत्थान होता है, तब दुष्टों के विनाश के लिए मैं विभिन्न युगों में, माया का आश्रय लेकर उत्पन्न होता हूं।
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इसके अलावा भागवत महापुराण में भी कहा गया है कि भगवान तो प्रकृति संबंधी वृद्धि-विनाश आदि से परे अचिन्त्य, अनन्त, निर्गुण हैं। तो अगर वे इन अवतार रूप में अपनी लीला को प्रकट नहीं करते तो जीव उनके अशेष गुणों को कैसे समझते?

अतः प्रेरणा देने और मानव कल्याण के लिए उन्होंने अवतार रूप में अपने आप को प्रकट किया। विष्णु जी के अवतार की पहली व्यवस्थित सूची महाभारत में ही प्राप्‍त होती है। महाभारत के शान्तिपर्व में अवतारों की कुल संख्या 10 बताई गई है

एक श्लोक द्वारा श्री हरि विष्णु नारद जी से कहते हैं कि
हंस: कूर्मश्च मत्स्यश्च प्रादुर्भावा द्विजोत्तम,
वराहो नरसिंहश्च वामनो राम एव च,
रामो दाशरथिश्चैव सात्वत: कल्किरेव च

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अर्थात- ‘हंस, कूर्म, मत्स्य, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम,दशरथनन्दन राम, यदुवंशी श्रीकृष्ण तथा कल्कि ये सब मेरे अवतार हैं।’

कहा गया है कि ये भूत और भविष्य के सभी अवतार हैं। मूलपाठ में छह अवतारों का वर्णन है- 1.वराह 2.नरसिंह 3.वामन 4.परशुराम 5.राम और 6.कृष्ण।

इसके बाद महाभारत के दाक्षिणात्य पाठ में कहा गया है कि

“मत्स्य: कूर्मो वराहश्च नरसिंहश्च वामन:, रामो रामश्च रामश्च कृष्ण: कल्की च ते दश।”

इस श्लोक के द्वारा पिछले अवतारों में से हंस को छोड़कर तीसरे राम अर्थात् बलराम को जोड़ देने से दस की संख्या पूरी हो गई है। इससे एक बात प्रमाणित हो जाती है कि महाभारत काल तक दस से अधिक अवतारों की कल्पना नहीं की गई थी।

बाद में अन्य अवतारों की भी कल्पना सामने आई और कुल अवतारों की गिनती 24 तक पहुंच गई।

इन में से 23 अवतार अब तक पृथ्वी पर अवतरित हो चुके है जबकि 24 वा अवतार ‘कल्कि अवतार’ के रूप में होना बाकी है।
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1- श्री सनकादि मुनि 2- वराह अवतार 3- नारद अवतार 4- नर-नारायण 5- कपिल मुनि 6- दत्तात्रेय अवतार 7- यज्ञ : 8- भगवान ऋषभदेव 9- आदिराज पृथु 10- मत्स्य अवतार 11- कूर्म अवतार 12- भगवान धन्वन्तरि 13- मोहिनी अवतार

14- भगवान नृसिंह 15- वामन अवतार 16- हयग्रीव अवतार 17- श्रीहरि अवतार 18- परशुराम अवतार 19- महर्षि वेदव्यास 20- हंस अवतार 21- श्रीराम अवतार 22- श्रीकृष्ण अवतार 23- बुद्ध अवतार 24- कल्कि अवतार।


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Jyoti

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