जानें कब है ईद-उल-जुहा, क्यों कहते हैं इसे बकरीद ईद

punjabkesari.in Wednesday, Aug 07, 2019 - 04:23 PM (IST)

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5 जून को विश्व के विभिन्न हिस्सों में ईद-उल-फितर का जश्न मनाया गया। कहा जाता इसके लगभग 70 दिन बाद ईद-उल-जुहा या ईद-उल-अज़हा का त्यौहार मनाया जाता है। बता दें इस बार ईद-उल-जुहा जिसे बकरीद ईद भी कहा जाता है, 12 अगस्त 2019 पड़ रहा है। इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से यह त्योहार हर साल जिलहिज्ज के महीने में आता है। इस्लामिक कैलेंडर, अंग्रेजी कैलेंडर से थोड़ा छोटा होता है। इसमें अंग्रेजी कैलेंडर से 11 दिन कम माने जाते हैं। मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए ये ईद रमज़ान के बाद आने वाली ईद की ही तरह प्रमुख मानी जाती है।
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कुछ मान्यताओं के मुताबिक बकरीद ईद को बकरों से जोड़ा जाता है, मगर बता दें इसका बकरों से कोई संबंध नहीं है। न ही यह उर्दू का शब्द है। दरअसल अरबी में 'बक़र' का अर्थ बड़े जानवर से जिसका जि़बह किया अर्थात काटा जाता है। उसी से बिगड़कर आज भारत, पाकिस्तान व बांगला देश में इसे 'बकरा ईद' बोलते हैं। ईद-ए-कुर्बां का मतलब है बलिदान की भावना। अरबी में 'क़र्ब' नजदीकी या बहुत पास रहने को कहते हैं मतलब इस मौके पर भगवान इंसान के बहुत करीब हो जाता है। कुर्बानी उस पशु के जि़बह करने को कहते हैं जिसे 10,11,12 या 13 जि़लहिज्ज (हज का महीना) को खुदा को खुश करने के लिए ज़िबिह किया जाता है। कुरान में लिखा है: हमने तुम्हें हौज़-ए-क़ौसा दिया तो तुम अपने अल्लाह के लिए नमाज़ पढ़ो और कुर्बानी करो।

इससे जुड़ी प्रचलित पौराणिक मान्यता के अनुसार बकरीद का त्योहार पैगंबर हजरत इब्राहिम द्वारा दी गई कुर्बानी के बाद शुरू हुआ। सपने में मिले अल्लाह के आदेश पर इब्राहिम को अपनी सबसे प्रिय चीज कुर्बान करनी थी। इस पर उन्होंने अपने सभी प्रिय जानवर कुर्बान कर दिए। मगर जब उन्हें दोबारा वही सपना आया तो उन्होंने अपने बेटे को कुर्बान करने का मन बना लिया। जब उन्होंने आंखों पर पट्टी बांधकर अपने बेटे की कुर्बानी दी और बाद में आखें खोली तो देखा कि उनका बेटा जीवित है और खेल रहा है। उसकी जगह वहां एक जानवर की कुर्बानी हो स्वत: हो गई थी। जिसके बाद इस दिन को पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।
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कैसे होती है शुरुआत-
जिन के घर में बकरा पालन हो रहा होता है, वे लोग इस दिन यानि ईद-उल-जुहा को अपने प्रिय बकरे की कुर्बानी देते हैं। मगर जिन लोगों के घर में ऐसा नहीं होता किंतु आप कुर्बानी देना चाहते हैं तो उन्हें कुछ दिन पहले बकरा खरीदकर लाना होता है ताकि उस बकरे से उन्हें लगाव हो जाए।

ईद-उल-जुहा को मुस्लिम समुदाय के लोग अल सुबह की नमाज अदा करते हैं। इसके बाद बकरे की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के बाद बकरे का मीट तीन भागों में विभाजित किया जाता है। गोश्त के इन तीन भागों में एक भाग गरीबों के लिए, दूसरा भाग रिश्तेदारों में बांटने के लिए और तीसरा भाग अपने लिए रखा जाता है।
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Jyoti

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